26 January, 2011

29-सुख कल्पना...!!

जड़ को चेतन कर जाती है -
                    सुख कल्पना ..!!
दुःख में भी गहरा साथ निभाती है -
                    सुख कल्पना ..!!
सुधा सलिल की धार बनाती  है -
                    सुख कल्पना ..!!
घर आंगन अल्पना सजाती है -
                    सुख कल्पना ..!!
भूखे को रोटी की आस दिलाती है -
                    सुख कल्पना ..!!
एकाकी जीवन को मृदु राग सुनाती   है -
                    सुख कल्पना ..!!
भीनी खुशबु के  स्पर्श सा- छा जाती है -
                    सुख कल्पना ..!!
ठहरे जल को स्पंदन दे जाती है -
                      सुख कल्पना ..!!
तुम्हारे अस्तित्व का एहसास कराती  है -
                       सुख कल्पना ..!!
हाँ प्रभु चरणों तक खींच ले जाती है -
                       सुख कल्पना ..!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

04 January, 2011

धुन्ध (DHUNDH) 26

रात अँधेरी सूनसान -
कैसी धुन्ध  में लिपटे हैं प्राण-
क्षीण सी होती जाती है दृष्टि 
व्यथा मिटा सके
 बरसे जो  नयन - वृष्टि -


कहाँ छुप गया है
 सभ्यता -संस्कृती का 
वो अनमोल खज़ाना -
जिसका डंका पीटता है -
आज भी सारा ज़माना-


हम क्यों बदलने पर आमादा हो गए ..?
आस्था के कच्चे धागे कहाँ खा गए ..?
पत्थर की पूजा करके -
कैसे मिलेंगे भगवान .? 
श्रद्धा भक्ति और सेवा का -
कौन करेगा अब गुणगान .?


काश बीत जाये ये शीतलहर ......!!
नष्ट हो हमारी सभ्यता पर छाया -
ये धुन्ध का कहर .....!!
शीत से थरथराता  कंपकपाता है मन -
नित्य ही करता है जप -
जीवन विलास  है या तप..?


बरसों से जाग-जाग कर -
की थी आराधना -
साध साध कर की थी साधना -
और किया था अंतर्मन का -
गहन अध्ययन ...!!
जैसे सागर मंथन से
 विषपान कर चुका था मन ...!!
गहराते तम  से -
सहसा हट गए नयन -


कैसे व्योम पर पहुंची मेरी दृष्टि -
शुभप्रभात की अमृत बेला -
देख रही थी सृष्टि .............!!!!
छंट चुकी थी धुन्ध ...!!
साफ़ दिख रही थी उषा की प्रथम किरण...
अकस्मात् ही गुनगुना उठा मेरा  मन -
न बदलेंगे हम -
न बदलने देंगे ज़माने को 
आओ शपथ लें ये  नया वर्ष मनाने को ........!!!!!