22 February, 2011

33-विस्तार समेटती हूँ मैं . .......!


फैली हुई हैं कितनी खुशियाँ -
कितनी स्मृतियाँ ...!!
क्या -क्या भर लूँ 
मन की इस झोली में ....!!
कैसे समेट लूँ सब कुछ -
अपनी छोटी सी मुठ्ठी में ....!!

जीवन के बसंत का छाया 
आनंद ही आनंद है .
जैसे खिले -खिले फूल सा 
खिला -खिला मन -
और खिलखिलाती हैं
 खुशियाँ संग -संग.

उस दिन असंख्य कुसुमों  की सुरभि से 
भर  उठी थी हथेली मेरी ...!
सुरभिमय प्राणवायु ले
महक उठा था
कण-कण मन का !
वही एक  सूखे हुए फूल से 
आज भी महकता है
खुशबू सा बिखेरता हुआ ....
 यादों का फिर बहना .........!!
और  साथ ही महकता है ,
मेरी प्रिय किताब का ये पन्ना ...!!

कितना विस्तार दिया तुमने -
समुद्र जैसा  अथाह -
आत्मसात कर लिया है मैंने -
समेट लिया है...
उन दृश्यों को नयनों में .-
और मूँद कर पलकों को -.
अब समेट लिया है
अपने आप को 
बन गयी हूँ मैं ..
कल -कल करती 
बहती हुई
सुरभित नदिया ..!
उन यादों से अब
 बह निकले हैं भाव मेरे -....!
झरने लगे हैं ...!
निरंतर बहते हुए ...!!
आगे बहती हूँ
बहती ही रहती हूँ --
हैं साथ   वही यादें ...!!!
झरती हूँ झर-झर सी -
झरने जैसी ..!!
फिर और सिमटते हुए -
बन जाती हूँ -
पतली सी धार-
और सूक्ष्म 
एक बूँद ...!!
उलटी गिनती ...?
कितनी सुखद है ये अनुभूति
इतने अपार  विस्तार को
 सूक्ष्म किया है मैंने ... ..!!
मूँद कर  पलकों को ...
बुने हुए अतीत के ख्वाब -
जी लिए हैं फिर से -.
अपनी इस छोटी सी कृति में ...
अब तुम
फिर करो--
नया  विस्तार ....
और फिर....
विस्तार समेटती हूँ मैं . .......!!

18 February, 2011

32-दूर गगन में उड़ता पाखी


दूर गगन में उड़ता पाखी ,
अब क्यों उड़ता है एकाकी ,
मन-भाई उन्मुक्त उड़ान,
देखकर स्वर्णिम  विहान ,
 विस्तृत नभ मैं लूँ  पहचान ......!!

 पंख पसारे उड़ता जाता ,
सीमाहीन क्षितिज तक जाता ,
ऊपर से जग छोटा दिखता, 
खूब हवा से बातें करता ,
नापता है आसमान...!!

जिजीविषा खींचे ले जाती  ,
विजय गान करता रसपान,
गैरों की दुनियां में रहता ,
 जग दर्शन का मेला है ,
तो फिर क्यूँ आज अकेला है ...?

सुन ले पाखर प्रीत की पाती ,
अंत  नहीं है इस उड़ान का ,
वसुधा पर है आशियाना ,
देख विहंगम दृश्य धरा का ,
नीड़ से दूर चले मत जाना ...!!

क्यूँ खोया है सपनो में.......?
पंछी  वो तो है देस बेगाना ,
है तुझको वापस ही आना ,
नैन बिछाए राह तके   है 
छोटी सी पाखरिया  ....!!!!!

10 February, 2011

31-क्षणभंगुर जीवन अनमोल

हरी  नाम की जप ले माला -
कटुक वचन मत बोल -
बीत रहा है पल-पल तेरा -
क्षणभंगुर जीवन अनमोल ...!!

दिवस गवांया खाए  के -
फिर रैना गंवाई सोए -
देख करम की पातळ रेखा -
अब मनवा क्यों रोए ..?


पढ़ा -लिखा है गुनी है ज्ञानी -
खुद बांचे अपनी ही लिखी कहानी -
पाप गठरिया बाँध सहेजे -
दीनन के दुःख हरे नहीं -
कटुक वचन से घायल करता -
घाव अभी तक भरे नहीं ...!!


पानी के बुलबुले सरीखा -
पलक झपकते फूट जाएगा -
बस पछतावा करते रहना -
होना है जो हो जायेगा ......!!!
पल दो पल का साथ ख़ुशी दे -
अंत समय सब छूट जाएगा ...!!!!


रे $$$$$$म$$$से गीत गा -
रिशब  मध्यम का साथ निभा -
सा $$$$प् $$$ को मीत बना -
षडज पंचम का साथ निभा-
पी ले निजघट  जीवन अमृत -
सुर में रम  या राम में रम -
जीवन नश्वर रहे समर्पित -


हरी नाम का पी ले प्याला -
रम जा राही मतवाला -
पंछी सा मत डोल -
ऐसे ही न बीते तेरा -
क्षणभंगुर  जीवन अनमोल ......!!!!!!!!!!!!

02 February, 2011

30-क्या नाता जोडूं जीवन से ...!!!!

जीवन जाग रहा सदियों से -
मेरे सपनो में नींद भरी है -
जीवन भाग रहा है सरपट -
मेरी चाल अभी धीमी है -


बिंदु सी आकृती है मेरी -
विराट भुवन सा कलाकृत जीवन -
चलते चलते रुक जाता मन -
रुक रुक कर चलता है ऐसे -


सघन सोच में डूबी व्याकुल -
नित ही पूछूं अपने मन से -
क्या नाता जोडूं  जीवन से-
क्या नाता जोडूं जीवन से  ....?


स्निग्ध श्वेत झीनी चुनरिया -
जीवन के रंग रंगे बसंती -
स्वरित शांत रहने का मन है -
जीवन की बातें चटकीली-


स्वप्निल सी अनुभूति मेरी -
कटु सत्य जीवन हो जैसे -
मैं सपना तो सच है जीवन -
चलूँ भी तो संग-संग  कैसे....?


सघन सोच में डूबी व्याकुल -
नित ही पूछूँ अपने मन से-
क्या नाता जोडूं  जीवन से-
क्या नाता जोडूं  जीवन से ....!!!!-


-