28 August, 2011

माँ ...अब तुम बहुत याद आती हो...!!

The gloom spreads ...as the sun sets......
विलक्षण उज्ज्वलता.. 
बांटता-बांटता..
प्रातः काल से
चलता चलता.. 
सूर्य भ्रमण कर ..
जब थककर ..
निशि की ओट में छुप जाता  है ..
मन अन्धकार छा जाता है...
तभी ..समझ से दूर.. सोच भी मेरी ..
रूठ जाती है मुझसे ..
तब...तमस हटाती...
सोच दुलारती ..
एक आस का दीप जलाती..
 तुम्हारी छब ...
दिखती है स्वप्न में.....!!

मन क्षीण..उद्विग्न सा ..
अटकता है ..भटकता है...
सोच रुपी निधि ..ढूँढता हुआ ..
 मन  प्रश्नों  की  विधि ..ढूँढता हुआ ....   
 ..और ढूँढता ..तुम्हें... 
रेत के तपते.. वीरान ..रेगिस्तान में...!!


महसूस होती है ...
पाँव में पड़े छालों की जलन...
तुम्हारे शीतल आँचल की छाँव पाने के लिए ...
जी  चाहता है जब....
माँ ... तुम बहुत याद आती हो...!!

बुन लेता है मकड़ी की तरह मन..
अपने ही लिए जाले...
इस मायाजाल से निकलने को .....
जब  छटपटाती है रूह..मेरी ...
तुम्हारी एक झलक पाने को.......
तुम्हारे एक स्पर्श से ही ....
जैसे तोड़कर मकड़ी के जाले को ......
छुई-मुई की तरह ..
फिर अपनेआप में
 सिमट जाने को .........
 जी चाहता है जब...
माँ... तुम बहुत याद आती हो...!!
 दुर्गा रूपिणी तुम मेरे लिए .
  मेरे मन की दुर्गति ..
आज भी दूर कर देती हो ...
प्रभु से पहले स्मरण करूँ तुम्हें ....
अदम्य शक्ति से  भरा ..
वो रूप तुम्हारा...
 सुख में..दुःख में ...हर पल ...
 माँ ..तुम बहुत याद आती हो......!!      

22 August, 2011

प्रभु कृपा करो ऐसी .......!!

कंटक जीवन पथ..
लहू-लुहान होते थे पग..
न था कोई भी रथ ..
पग-पग चलते..
बन-बन घूमे ...
जीवन की कठिनाईयों का-
करते आलिंगन ..
असुरों का  करते संहार..
दीनो का करते उद्धार ..
दे दो सबको ऐसी भक्ति ..
और मुझे दो ऐसी शक्ति ..
जब-जब तुम राम बनो...
मैं तुम्हारी सीता बनूँ..

फिर तुम संग समय रथ पर ...
अब देख रही हूँ ह्रदय विदारक शोर....
वो मार-काट स्वजनों की...
 वो कर्ण भेदता क्रंदन चहुँ ओर.......
जब अपनी ही नज़रों से
गिरता इंसान....
तुम कृष्ण बने ....
और करते थे जग का कल्याण ..

युद्ध के रथ पर-
अर्जुन का संबल बने...
ज्ञान मार्ग पर -
प्रखर चमकता चक्र दिखे ...
देते थे उपदेश जगत उत्थान का ..
रखते जब-जब ध्यान जीवन-मान का...
प्रभु कृपा करो ऐसी ..
रहे तुम्हारा वृहद् हस्त ...
कृपा तुम्हारी ..
ऐसे समय रहूँ तुम्हारे संग.
तुम्हारे अपार ज्ञान रुपी सागर में से..
पोर-पोर ज्ञान में डूबी  हुई .... 
मैं तुम्हारी बस एक बूँद गीता बनू....!!!!!!

जन्माष्टमी  के  पर्व  की  सभी  सुधि  पाठकों  को  हार्दिक  शुभकामनायें ...
 प्रत्येक मनुष्य में प्रभु का वास है ....श्री राम की भक्ति और श्री कृष्ण का ज्ञान ...इन भावों को अपने ही अन्दर जागृत करने के विचार से इस  कविता का सृजन हुआ ......अब रखो लाज गिरधारी ऐसी के हम सब मिल-जुल  ...प्रेम  बाँटते  चलें  ...ज्ञान  बंटते  चलें...!!!!!!!!

19 August, 2011

ये सौंदर्य जीवन...!!!!

धुली-धुली सी धरा का ...
खिला-खिला सा ये रंग जीवन ...!!
बरसती पुरज़ोर घटा का...
बिखरी अलकों से टप...टप...टपकता ..
भीगा-भीगा सा ये रूप जीवन...!!

रुक जाता है मुसाफिर
छिन-छिन...पल-छिन...
पग थम जाते हैं तब ..
Painting by Pragya Singh.
चलते-चलते....जब ...
विश्रांति सा देता ये पुरनूर जीवन....!!

ऊँचे-ऊँचे दरख्तों का..
ये झूम कर लहराना ...
पुरकैफ़ हवाओं का ..
जैसे छेड़े कोई तराना ...
मद्धम-मद्धम सा ये संगीत जीवन...!!

कितनी पुलक फैली है ...
धरा के इस मनोहारी रूप में ...
छाओं और धूप में ...
देख भर-भर नयन ...
रंगों में विस्तृत ...
रागों में वर्णित .. 
धरा का ये यौवन ..ये सौंदर्य जीवन...!!!!


सुरों  का  नशेमन ...
है  गाता  जो  जीवन  ...

15 August, 2011

रे मन मोरे ...!!

रे मन मोरे .....!!
अवगुण त्याग 
रे त्याग ...!!
अवगुण त्याग
रे त्याग .......!!

गुन गुन..
गुनी संग-संग ...
गुन ले गुन ही -
गुनी-ज्ञानी संग ....
भर ले जीवन में ...
अति उमंग ..!!

सुन-सुन..
भोर की बेला सुहानी- 
राग तोड़ी 
कहे कहानी ..!!
गावत तोड़ी 
राग..संग -
सुर  तरंग ....
मन  मृदंग ....!!

रे मन ...
दानी बन ...
प्रेम कर ..
बस प्रेम ही दे ...
मत कृपण बन ...
उठ जाग समय अब..
महादानी बन ...!!
ज्ञानी बन..
महाज्ञानी बन...!!
बाँट ले रे ज्ञान अपना..
क्षण में बीतेगा ये सपना ..!!

नहीं छीन झपट..
अब मत कपट कर.
छोड़ दे ..अभिमान अपना ....!!

रे  मन ..
Painting by Pragya Singh.
मत अभिमानी बन ...!!
खिले कुसुम से 
सीख ले रे..
तनिक खिलना ....
बीच  काँटों से ..
घिरे भी मुस्कुराना... 
जीवन अनुराग-रंग भरना ...!!

फैला कर ..
लहराता आँचल ....
मांग ले प्रभु सों..
वो प्रीती ...!!
ओ हठी मन ..
छांड दे अब ... ..
छांड दे मन ...
द्वेष राग सी..
जो कुरीति .....!!
जब-जब 
त्यागे अवगुण ...
नित -नित 
गुन ले सतगुन ..
भोगे निर्गुण .....!!
तब तब -
मन पाए 
प्रसाद ही प्रसाद ..!!
अद्भुत उन्माद ....!!
उन्मुक्त आल्हाद ...!!
मिल जाये..
जग  से - 
चिर विराग ......!!
पा जाये ..
श्वेत  कमल .
स्वयं से अनुराग ......!!

रे मन  मोरे ...
अवगुण त्याग रे त्याग ......!!
अवगुण त्याग रे त्याग ..........!!!!!
 राग तोड़ी -भोर का ..सुबह के प्रथम प्रहर का...प्रातः चार से सात बजे के बीच गए जाने वाला  राग है |
भोगे निर्गुण-यहाँ निर्गुण का अभिप्राय खुदी  में ही खुदा   ढूँढने से है ...!!

The system of Nirgun Bhakti believes in the worship of an unseen God, who cannot be confined in the realms of a physical form. This form of worship strongly detests the belief that God abides in the heaven above, it rather sees God as an inner guiding force residing inside the body of a devotee.   A prominent preacher of Nirgun Bhakti was Saint Kabir, one of the pioneers of the Bhakti movement. 


आज स्वतंत्रता दिवस पर-
 आपभी को शुभकामनायें |
सभी बुराइयों से आपका मन 
स्वतंत्र हो ऐसी कामना करती हूँ |

10 August, 2011

ये कौन शिल्पकार है ...?


विहंगम मधुरिम..
दृश्य धरा का ....
अविरल पड़ती बूंदे मूसलाधार ...!!
धरा  का  ये  मनोहारी  रूप ....!!
फिर भी उड़ते विहग...
साधक सुर साधें राग-विहाग....!


वर्षा की रिमझिम से दूर ...
धुन में अपनी ही ..अलमस्त...
चित्र में रंग भरता था ..
 एक चित्रकार..!!
चलता था जीवन...
अज्रस  ..अविरल ..अनवरत ..लगातार ...!!
एक शिल्पकार के लिए ...
गतिमान  जीवन की ..
फिर भी वही रफ़्तार..........!!


रे मन..
लागी रे  ये कैसी लगन....
चलता है ..चलता है....  
न  थमता है ...
न थकता  है  ..!

दूर दिखते शैल-पर्ण 
आच्छादित ..मेघ श्याम वर्ण  ....
घटा बरसती है घनघोर..
घटा बरसती घनघोर ...!!!
प्रेम  बरसाती  सराबोर..... 
कुछ इस तरह ...
जैसे कहती हो ..
हे सृजनहार ...
अबकी न मानू हार ...
रूम-झूम...
बरस जाऊं ऐसे के ..
प्यासा ना रह जाये कोई ...!!

वैविद्ध्य से रचा-बसा...
जीवन का सुंदर मेला ..
कृपानिधान कृपा करो ऐसी ..
कि रहे न कोई भी अकेला ...
शिल्पकार गढ़ रहा है..
ये कैसा अद्भुत शिल्प...
अरे देखो ..भीगती बारिश में भी ...
ये कौन वृद्ध ...सर पर छतरी लिए ..
बालक को ...
जीवन मार्ग दिखा रहे हैं ...
दूर से आती हुई बस तक ..
विद्यालय छोड़ने जा रहे हैं ..
अपने गंतव्य तक पहुंचा रहे हैं ...!!
अपार..अनंत नयनसुख ..
भर नयनो में ..
विहंगम मधुरिम दृश्य देख ...
मन स्वयं से पूछ रहा है ..
जीवन लड़ियों को..
कड़ियों सा जोड़ता हुआ ..
और ..मेरी ही सोच को..
मुझसे आगे-आगे राह दिखाता हुआ ...
ये कैसा सृजनहार है ...!!
ये कौन शिल्पकार है ...?


06 August, 2011

फिर रीत सा क्यूँ जाता है मन ...?

आज वर्षा  के संग 
Painting by Pragya Singh.
स्मृतियों का रंग मिला है ...
बेरंग पानी में घुल-मिल गयीं हैं .स्मृतियाँ ...
हिल-मिल जैसे स्मृतियों की वर्षा है ... ..
एक सावन की धारा..
मन में जो बहती है ...
दूर रह कर भी हमें....
आस-पास कर देती है .. 
साथ बीते हुए लम्हों का..
यादों की बरसात ले ..
ये रंग जो बरसता है ..
सावन की फुहार है ...
भीगता मन बार-बार  है ..
भीग गया है तन-मन इस तरह ...
घुल-मिल ....
इसी बेरंग पानी में..
अब मिल गया है..
मेरे आंसुओं का रंग भी ...!!
आज ये बेरंग पानी के संग कैसी वर्षा है ...?
कुछ रंग देती है भिगा कर मुझे ..अनायास ..  ..!!
और अंसुअन संग धो देती है ...
वही खिले-खिले रंग ...!!
बह रही हैं रंगीन स्मृतियाँ जैसे ....
मन स्मृतियों में भी ..ढूँढता  है ...तुम्हें ....!!
तुम्हारे बिन घुल से जाते हैं ये रंग...!!
धुंधला सा पड़ता ये चित्र जीवन... 
फिर रीत सा क्यूँ जाता है मन ...?

कुछ यहाँ परिकल्पना पर भी पढ़ें....
आभार....

01 August, 2011

देखो ..देखो मतवारी वर्षा....!!


धन घड़ी आई...पिया के आवन की पतियाँ लायी ....!!

अपनी सभ्यता और संस्कृति से  जुड़े ,हम जैसे लोगों के लिए तीज का त्यौहार अपार हर्ष, आनंद ,उत्साह लेकर आता है ...!!शुभ सन्देश..शुभ घड़ी लाता है ...!!
कल २-अगस्त को हरियाली तीज है ... आप सभी को हरियाली -तीज की अनेक अग्रिम .. शुभकामनाएं ..!!सपरिवार सहर्ष हरियाली तीज मनाएं ...घेवर खाएं ..!!
आज फिर एक खुशनुमा रचना है वर्षा पर.......


कड़-कड़  कड़कडाती...
मृदंग सा बजाती....
दूर से आ रही है ..उड़ के आ रही है ..
बिजुरी देती दस्तक..!!
दूर से आ रही है ..
उड़ के आ रही है ..
सन न  न साँय-साँय डोले ...
मनवा के भेद खोले ..
पवन संग ..
देखो ..देखो ....
झम-झम झमझमाती मतवारी वर्षा....!!
..............!!!
मुझे ..तुम्हें   भिगाने ...
नृत्य करने लगा है मन ....
 छुपा हुआ बचपन....
गोल-गोल घूमता ..
 भींजता  तन-मन...
...जाने-अनजाने ...!!
झूम कर मल्हार ..लगा है गाने ...!!

घड़-घड़  घड़ घडाते ...
चहुँ दिस छाये ..
कृष्णा से नीले अम्बर से ..
बरसे ऐसी धार
धरा पर ..
Painting by Pragya Singh.
हरियाली राधा मन भाये ..
अधरों पर मुस्कान जगाये ..
रिमझिम पड़ रही प्रेम फुहार ...
सजनवा अमुवा पे  झूला दो डार ...
तीज को आयो है त्यौहार...


मोरा जिया गया हार .
मगन अब ....
झूला-झूले ...
सावन के गीत गाये  ..
धन्य री मतवारी वर्षा ...
ये कैसा ...
अनुराग जगाये ...
चहुँ दिस ..बरस ..बरस ...
अमिय रस  बरसाए .. ..!!