29 April, 2012

खिला-खिला खुला -खुला है आसमान ...!

स्मित ....सलोनी सी मुस्कान ...
विलुप्त हो गयी ....
..रे मन .....
आज गुम सा ...
डूबा डूबा सा क्यूँ है ...?
संकुचित ,कहाँ दबी है ...
नारंगी सी  ...
वो सहज मुस्कान भीतर ....?

सिमटा-सिमटा सा ...
क्यूँ संकीर्ण हो गया है ...?
तेरे जाते ही नारंगी रंग भी -
स्याह हो गया है .....!!
प्रकाश कहीं खो गया है ...!!

इस अँधेरे में ...
अब तू क्या टटोल रहा है ....?
अपने मन में ही ढूंढ मुझे ....
मैं ही तेरी खिली सी मुस्कान हूँ .....
बस कुछ पल को सिमट गई हूँ ....
पर तुझसे दूर नहीं हूँ ...!!

मुझे ही ढूंढ रहा है न ....?
थाम  ले मुझे और निकल आ ...
इस अंधियारे से .....
 बिखर जा .....
चहुँ दिस ... चहुँ  ओर ......
मैं तो जानती हूँ .....
हैं  फिर  भी  कुछ  सुराख ...
जहाँ से ... 
बातों ही बातों में ....
ये अँधियारा निकल जायेगा ....
सहमी-सहमी सी ये रात ...
ये रात बीत जाएगी ...
और ...
तुझसे बात करते करते....
मेरी कविता भी ...
खिल -खिल जाएगी ....
जब निकल जायेंगे -
 मन के उदगार .......
विकीर्ण हो ,निकल आएगा -
सूरज भी उस पार .........
अब देख ....देख तो ......
रहा नहीं कोई अंदेशा ....
प्रभु ने भेजा है संदेशा  .....
अहीर भैरव सी ...आनंदमयी  भोर भई .......
फिर भर ले मन की  उड़ान .......
उज्जवल ...खिला-खिला खुला -खुला है आसमान ...!

 *अहीर भैरव  प्रातः का संधिप्रकाश राग है ...!

26 April, 2012

जो कभी तुम्हारा और मेरा हुआ करता था ..............

तुम्हारी ही परछाईं सी ....
तुम्हारी ही राह पर चलती हुई ...
तुम्हें अपने आप में ढूंढती हुई ....
खोजती हुई...
नित-नित पल्लवित प्रफुल्लित होती हुई ...
कृतज्ञ होती हुई ...
सोचती हूँ ...
संस्कृति सभ्यता का रूप
कभी बदला नहीं ...
सदियाँ बीत गयीं सो बीत गयीं ...
माँ का प्रारूप कभी बदला  नहीं ....
खून का रंग कभी बदला नहीं ...
ये कैसा गाढ़ा लाल रंग है ..
रग-रग में चढ़ गया है ...


उतरता ही नहीं ...
गहराता ही जाता है ...
सदियों से इसी तरह ..
शाश्वत सत्य सा ..
इसका रंग ...इसका रूप ....इसका असर ...!!

तुम मुझसे दूर होकर भी ..
कितनी पास हो गयी हो ... 
माँ ...
आज तुम्हें खोजते-खोजते ...
 .... सोचते सोचते .....
नहीं जानती कैसे ...
तुममे ऐसी खो गयी हूँ ...
पूर्णतः तुम्हीं में समाना चाहती हूँ ...
अभी  लगता है ...शायद ...
कुछ- कुछ  तुम्ही सी हो गयी हूँ ...
हर्षित है मन ये सोच कर ...
आज मेरा और बच्चों का ...
वही रिश्ता है ...
जो कभी तुम्हारा और मेरा हुआ करता था .................
एक ही आत्मा का  बहता हुआ ....अविरल प्रवाह ....
अनादी अनंत ....शाश्वत सत्य सा .........................................!!!!!!!!!!!

20 April, 2012

आग लक्ष्य की .....!!


उर से -
आग लक्ष्य की ..
कभी बुझी नहीं .....
इन राहों पर .. मैं ..
इक पल भी ..
कभी रुकी नहीं ......
पथरीले रास्तों पर चलते चलते ...
रिसने लगा  खून .....
चलती  रही  मैं  ...अनवरत  ...
मूँद कर नयन ...एकाग्रचित्त ...
सुरों की माला जपती .......
स्वयं को बूझती...
 फिर भी ...
स्वयं से अपरिचित ....!!

बीतता रहा समय ...
चलती रही मैं ...
अब ..धीरे धीरे होता जाता है ...
कुछ आभास तुम्हारी उपस्थिती का ...
 और कुछ विश्वास मेरी प्रतीति का ... ...
हवा में फैली ..
तुम्हारी खुशबू है ...!!
जानती हूँ...
तुम्हें पहचानती हूँ ...
अनुनेह मेरा ग्रहण करोगे ...
 निर्मोही नहीं हो तुम ...
क्योंकि जानते हो ...
दर्शन पाए बिना तुम्हारे ....
नयनो की प्यास बुझेगी नहीं ...
अंतर्मन की ...
ये ज्वाला  बुझेगी नहीं ....!!

अपने भक्तों को
छटपटाता देख सकते हो .....
तो जलने दो मुझे ...
युगों युगों तक ऐसे ही .....
दर्शन पाए बिना तुम्हारे ...
तृषा से व्याकुल ...
जलती रहेगी मेरी काया ....!!
तपन जिया की बन के ...
प्रकट हो  ....
हे प्रभु ...दर्शन दो ....!!
ज्ञान से पथ प्रशस्त करो ..
भव तार दो ...!!

16 April, 2012

धरा को ही दे दूं ...!!

भुवन  में भवन  मेरा ..
हरित हरिमय हरा   हरा ..
धरा की धरोहर ...
धरा का रूप मनोहर...

ये रंग धरा का ..
प्रारूप धरा का ...
धारिणी,धरित्री बन ..
 ...काश कुछ तो  सहेजूँ.....
बिखरा है जैसे ...
दूर्वा सा मुलायम भावों का स्पर्श यहाँ .......
छनी हुई धूप की हलकी मुस्कान यहाँ  ...
खिल गए असंख्य पुष्प,नए कीर्तिमान जहाँ ...
मूक ..कुछ कहती है ये धरा वहाँ ....
हरी हरी खिली खिली हमसे ......
आच्छादित जैसे हरियाली यहाँ ...
हर पल हो खुश हाली भी यहाँ ......
यही भाव सहृदय   भर लूं ..
हरियाली कि छटा नैन हर ...
शुद्ध वायु से प्राणवायु भर ...
कुछ  मन हरा कर लूं ......!!

चलूं ...चलूँ चलूँ ......
एक संकल्प लूं ....
हरी-हरी ...कुछ तो मैं भी ...हरा -हरा कर दूं ...!!
धरा ने दिया है जीवन यहाँ पर ....
कुछ हरियाली मैं भी ...
धरा को ही दे दूं ....!!

हमारी धरा कि हरियाली का संरक्षण हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है ... ....!!किन्तु ...ऊंची अट्टालिकाओं में...इस जगमगाती रौशनी में ...इस विकास के अपनी ही बनायीं हुई धारणा में ...हम अपने को ही खोते जा रहे हैं .....!!प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं ....!मायूस होते जा रहें हैं ....!!
आप जानते हैं न  ....किसी को इस वापसी का इंतज़ार है ....!!
चलें ...?.....स्वयं के घर ,अपने ही घर ......कोई हमारी राह देख
रहा है .........................................................................

इस बरसात में प्रण लें कुछ वृक्ष लगाने का ........!!!!!!!!



12 April, 2012

ओस से कोमल एहसास ...

जीवन की गहराईयों में
डूबने लगा जब मन ...
टूटने क्यों लगे ...
नयनो के  प्यारे सपन ...
जैसे  तेज़  धूप से
कुम्हलाने  लगा  हो ...
कोमल पुष्प का  तन ...!!

करती हूँ जतन..
बंद कर लूं नयन  ...
ढलकने न दूं उन्हें ...
जीते हुए जीवन से  मिले थे जो ...
सहिष्णुता से ..सुन्दरता से ...
ओस से कोमल  एहसास  तुमसे .. .......
तुम ही तुम ....
तुम्हारे ही रूप ,लावण्य से परिपूर्ण ...!!

किन्तु सोचती हूँ ...
अब डर क्यों लगता है ...?
डर भी ये जीवन का
सत्य ही तो देता है ...!!

बुद्धि ,विवेक जब साथ देता है मेरा ...
यकायक ..बुद्धि मुखर  हो उठती है ...कहती है ...
''सिर्फ कोमलता ही तो जीवन नहीं ...
जीवन का साथ निभाना है तो ...
कठोरता भी सहना ही पड़ती है ...
सुख ही सुख की चाहत रखना ...
दुःख से मुहं मोड़ लेना ...
जीवन से भागना तो पलायन ही है ....!! ''

रखती हूँ मान मन का ...
हंसकर सुनती हूँ  बात मन की ...
धरती हूँ और धीरज ...
किन्तु ....अब ...धैर्य  की परीक्षा देते देते .....
शिथिल हो रही हूँ  .....
मांगती हूँ थोड़ा और धैर्य ...
प्रभु  से ......
कि ये आसक्ति ...
बनी रहे जीवन से .....!!
धूप में खड़े-खड़े ..
आज डरती हूँ ...
ये बूँदें  सहेजूँ कैसे ...?
कहीं ढलक कर  ...
मेरे नयनो से ..
ये ओस से ..पावस ..गहरे ...अमिय ..
अनमोल एहसास..
यूँ स्वयं  गिरकर .........
और गिराकर तुम्हारी छवि मेरे नयनो से ...
मुझे विरक्त ही न कर दें ...!


09 April, 2012

रीत रही मोरी प्रीत ....!!

सुर के पीछे पीछे चलना ....
सुर साधना ....
बने अगर मन की यही आराधना ...
बहुत कठिन है ये अर्चना ... ....!!

सांस तो चलती है न ....?आस आज भी जागी- जागी  सी है .... है ,पर कहीं कुछ भाव में फर्क है ....
कभी अपना गाना सुनना मन को भाता है ....
कभी अपने ही गाने में जब ढेरों कमियां दिखतीं हैं ....बहुत रियाज़ करने पर भी वो सुर नहीं आता .....जो आना चाहिए .. ...तब  व्याकुल  मन ....
कहीं ...चैन नहीं पाता .....
बस अकुलाता .....और ...तब लगता है ....



                                                 रीत   रही मोरी प्रीत ...


श्याम ने न आवन  की ठानी ...
मन  ने न बिसरावन  ठानी ....
आस से रास करत अब मनवा...
 रीत निभाए प्रीत  ...
निस दिन राह तकत अब मनवा ....
रीत  रही  मोरी प्रीत ....

श्याम के मीठे बैन ..सखीरी ...
मोरे  काजल से  नैन ...सखीरी..
मनवा न इक पल चैन ...सखीरी ...
जिया की पीड़ा सह ना पायें.....
छल-छल अँखियाँ  नीर बहायें.....
श्याम  के छल को भूल न पायें......
राह तकत पथराएँ......

 छलिया मन का मीत...

रीत रही  मोरी प्रीत .....!!

05 April, 2012

धन घड़ी आई आज ...


 धन घड़ी आई आज ...
 आज आनंद ही आनंद है मन में |आज  मेरे  ब्लॉग  का  दूसरा  जन्मदिवस  है  ...!!
मन की सरिता जब ब्लॉग पर डाली थी जानती नहीं थी की इसकी यात्रा मुझे कहाँ-कहाँ ले जाएगी ...!!सच कहूँ इस यात्रा पर चलते चलते मैंने अपने आप को और अच्छे से जाना है ...समझा है .....!अपनी बहुत सारी नकारात्मकता पर विजय हासिल की है ...!नकारात्मक भाव तो अभी भी आते ही हैं मन में ....लिखते लिखते सकारात्मकता ढूंढ लेता है मन .......वही करते रहने की कोशिश जारी रहेगी ...

धीरे धीरे ...लिखते लिखते ..
अपने  आप में इतनी हो गयी हूँ मैं ...
की सच में जग से दूर हो गयी हूँ मैं ...!!

अब जब पीछे पलट कर देखती हूँ मुझे वो सब पड़ाव दिख रहें हैं .........सबसे पहले याद आता है वो संशय ...क्या मैं लिख पाउंगी ...?अच्छा चलो एक तो लिख ही दूं ...बनेगा तो और लिखूंगी ...नहीं तो छोड़ दूँगी ...! कैसे मैंने पहली पोस्ट डाली ...कैसे पहला कमेन्ट आया .....कैसे मुझे धीरे धीरे समझा  कि ब्लोगिंग क्या है ...!!कैसे मैं एकदम  विचलित  हो गयी थी ... ...जब कुछ  ही महीने पहले ,मेरा ब्लॉग गायब हो गया था ...!कितनी उथल -पुथल मच गयी थी मन में .......!पता नहीं कितने फोन.... कितने मेल किये थे ...!!उस समय लग रहा था  जैसे आँखों के सामने से एक दुनिया ही गायब हो गयी है ....!दो घंटे के अन्दर ब्लॉग वापस मिल गया ....!!!वसुधैव कुटुम्बकम ......!जी हाँ ये हम ब्लोगेर्स की दुनिया है ....!ये दुनिया अब जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गयी है ....!!धरा पर बहती धारा सी .... बह चली है ....!!

आज एक ख़ुशी से भरा है मन ....एक पहचान जो मिल गयी है ....एक दिशा जो मिल गयी है .....अब .....?
फिर एक प्रश्न अपने मन से ही .......

                                ओरे मनवा तू  क्या है ...?

ओरे मनवा तू  क्या है ...?
एक मूक वेदना है ....
ओढ़कर  जिसकी चादर ...
हर सर्द रात बीतती चले ...!
जिंदगी की राहों पर ...!!


एक घना बरगद ....
जिसकी छाँव तले ..
जेठ की दोपहरी  की तपन से ,
तिड़का ....प्यासा ...बुझा बुझा  मन ...
रुक-रुक कर ..कुछ देर ...
कुछ पल ठहरे ...
आस का दीप, फिर जले ...
फिर चले ...!!
दौड चले ..
जिंदगी की राहों पर .....!!

धुंधली सी एक आकृति ....
उदास क्षणों में .....
सिर सहलाये ...चम्पी  करे ....
बालों में तेल लगाये ...
ऊंची  ...ऊंची पींग ...झूला झुलाये ....
मेरा बचपन लौटा दे ....
खिल खिला कर ...कुछ हंसा कर ...
सजल नेत्र ...
अपने भावों से ..कृतार्थ करे ...
मुझे सुकृत करे .....
फिर दौड़ा दे ....
जिंदगी की  राहों पर .....!!

धरा पर बहती अविरल धारा ...
कल कल ...छल छल ...
कुछ तरंगें ...
गुन-गुन ..नाद ..गुनगुनाये ...
लहरों से ले कुछ उमंगें ...
बने सुरों की तरंगें ...
भर-भर उमंग उछले ...
लहेरों की तरह ...
और ..वो सुर ...सदा  साथ-साथ चलें .........
जन्म जन्मान्तर तक ...
ज़िंदगी की राहों पर .... ...!!

कभी  वेदना  ....कभी बरगद ....
कभी नदिया ..कभी आकृति
कैसे मन में ही ,
मन से ही बनी ... मेरी सुकृती ....
रुलाये भी ,हंसाये भी ...गुनगुनाये भी ...
और आस जगा कर ...
फिर दौड़ा दे...
 ज़िन्दगी की राहों पर ...
ओरे मनवा तू  क्या है ...?