''ज़िंदगी एक अर्थहीन यात्रा नहीं है ,बल्कि वो अपनी अस्मिता और अस्तित्व को निरंतर महसूस करते रहने का संकल्प है !एक अपराजेय जिजीविषा है !!''
25 July, 2012
20 July, 2012
श्याम भजन ....
वैसे तो गीत को स्वर देना एक अलग ही विधा है ..!कभी इससे पहले कोशिश नहीं की थी किसी गीत को स्वर देना की ...पर आज समझ मे आया प्रोत्साहन क्या होता हैऔर क्या कुछ कर सकता है .. ...!मुझे कभी विश्वास नहीं था मैं कर पाउँगी पर आप सभी के कहने पर ही आज मैंने अपने लिखे एक श्याम भजन ..रीत रही मोरी प्रीत .....को स्वर्बद्ध किया और स्वयम ही इसे संगीत्बद्ध भी किया है ...!!इसका छायांकन भी मेरी ही कोशिश है ...मेरे जीवन की एक श्रेष्मठतम उपलब्द्धी है ये ...!और श्रेय जाता है ...आप सभी को ....
मधुरेश ,सलिल जी ,मनोज जी,अशीष जी ,प्रवीण जी ,यशवंत ,मुकेश ,अरविंद जी ,संगीता दी अनमिका जी ,अनु,दिगम्बर नासवा जी,रमाकांत जी ,शिखा जी,रश्मी दी ,अमृता जी,बाबुषा ,धीरेंद्र जी ,सतीश जी, शास्त्री जी,रविकर जी ,ललित जी ,शिवम ,अभि,वीरुभई जी ,संजय भास्कर जी ,हिमांशु जी ,...
समय समय पर आप सभी मुझे बहुत प्रोत्साहित करते रहे हैं कि मैं अपनी रचना स्वयम स्वर बद्ध करूं.....वैसे तो और भी बहुत नाम हैं लिखती जाउँ तो उसी से पोस्ट भर जायेगी ......
आप सभी का स्नेह और आशिर्वाद भरपूर मिला है ....तभी ये प्रभु कृपा भी हुई है ...लीजीये ये विरह गीत सुनिये .....
आप सभी का स्नेह और आशिर्वाद भरपूर मिला है ....तभी ये प्रभु कृपा भी हुई है ...लीजीये ये विरह गीत सुनिये .....
18 July, 2012
जड़ से चेतन की ओर .........!!
जग त्यक्त कर ही ....
तुममें अनुरक्त हुई ...
तुम्हारी छब हृदय में रख ..
स्वयं से भी प्रेम में ..
आसक्त हुई ......
प्रेम का वर्चस्व ...
है तुममे ही सर्वस्व .....
प्रसन्नता से चहकती ...
अल्हड़ सी ..खिलखिलाती ...
वर्षा की झमाझम में भीगती ....
जीवन का राग गाती ....
जीवन मार्ग पर ...
मदमाती ..चलती रही ...........उनमत्त ......
जीवन की राह कठिन है ...
.....छप ....छपाक ...
कुछ कीचड़ सा उछला ...
कुछ छींटे पड़े ....
औचक भयासक्त हुई .. ......!
रे मन .....चंदरिया मैली क्यों हुई ...?
हे ईश्वर ...मन मे तुम हो ...
फिर ये डर कैसा ...???
इक पल को भ्रमित हुई ...
क्रोध से आक्रोश से भरमाई भी ...
डगमगाई भी ...
लगा ...
ईश प्राप्ति का लक्ष्य ......
कहीं बिसर ना जाऊँ ..
रम ना जाऊँ...
चलते-चलते ....
अब इस निर्मल बारिश मे ....
धुल गया है कीचड़...
और ...टूटने लगा है भरम ...
अब जान गयी हूँ ....
राग की आत्मा सरगम में ही है ......
समर्पण प्रभु चरणों में ही है ....!!
निष्ठा और आस्था ...
हरि दर्शन में ही है ...
भीगना ही है ...
सराबोर होना ही है ...
कोई भरम ...भ्रम भी नहीं .. . ..
हृदय में तुम ही तुम हो ...
हे प्रभु ......आश्वस्त हूँ ..
प्रशस्त है मार्ग अब ....
चलती जाती हूँ ..
अपने आप में लीन ...
बजता है मन का इकतारा ..
वर्षा के निर्मल जल में भीगती ...
उज्ज्वल जल की ओर ...
ये मार्ग जड़ से चेतन की ओर जाता है ....!!
चल मन ....गंगा -जमुना तीर ...
गंगा जमुना निर्मल पानी ...
शीतल होत शरीर ...
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लगातार हो रही है बरसात ......
ये कविता लिख कर भी ...
और भीग रहा है मन ...
जाने कैसे समुंदर मे डूब गयी हूँ मैं ...
हे कृष्ण .....भव पार करो .....!!
ये भजन ज़रूर सुनिये ...
14 July, 2012
भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....
ओ पथिक ...
क्या ज्ञान है .......कौन हो तुम ....?
कहाँ से आये हो..?
माया में ...क्यों इतना भरमाये हो ...?
किस बात की शीघ्रता है ...?
कुछ साथ नहीं जायेगा ...
मुझ माटी में ही तो मिलना है ...
अरे ...रुको ......रुको ...
सुनो तो ....
माटी में मिलने से पहले ..
माटी को ही कुछ दान देते जाओ ...
और कुछ नहीं ..
बस ...थोड़ा सा मान देते जाओ ...
रंग दो मुझे इस सावन हरा ...
पंच तत्व से बनी ...
भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....
************************************************************************************
अगर सम्भव हो इस वर्ष कुछ वृक्ष ज़रूर लगायें........!!!
क्या ज्ञान है .......कौन हो तुम ....?
कहाँ से आये हो..?
माया में ...क्यों इतना भरमाये हो ...?
किस बात की शीघ्रता है ...?
कुछ साथ नहीं जायेगा ...
मुझ माटी में ही तो मिलना है ...
अरे ...रुको ......रुको ...
सुनो तो ....
माटी में मिलने से पहले ..
माटी को ही कुछ दान देते जाओ ...
और कुछ नहीं ..
बस ...थोड़ा सा मान देते जाओ ...
रंग दो मुझे इस सावन हरा ...
पंच तत्व से बनी ...
भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....
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अगर सम्भव हो इस वर्ष कुछ वृक्ष ज़रूर लगायें........!!!
13 July, 2012
निकला है चाँद......!!
पूनम का निकला है चाँद...
थम गई है रात ...
चांद को निर्निमेष निहार ...
भीग रही है रात ....
लहरों सी लहरें ...
मन मे उठती हैं ......
तरंगों सी उमंगें ....
सींचती है रात ....
ये कैसा सन्नाटा है ...
के गाती है प्रीत ...
ख़्वाहिशों का दामन ..
भिगोती है रात ....!!
कल कल बहता नदिया का जल ..
तिस पर गिरती ...टिपिर टिपिर ...
बूंदों की ये आवाज़ ....
जैसे बज रहा हो कोई साज़ .....!!
मूंद कर पलकों को...
चांद भर नयनों मे ..
भीगी भीगी सी ..
प्रीत भर लेती है रात ....!!
स्निग्ध चांदनी में डूबी ...
भीनी चंदरिया ओढ़े ...
कैसी खिलती है रात ..
कैसी भीगती है रात ...!!
थम गई है रात ...
चांद को निर्निमेष निहार ...
भीग रही है रात ....
लहरों सी लहरें ...
मन मे उठती हैं ......
तरंगों सी उमंगें ....
सींचती है रात ....
ये कैसा सन्नाटा है ...
के गाती है प्रीत ...
ख़्वाहिशों का दामन ..
भिगोती है रात ....!!
कल कल बहता नदिया का जल ..
तिस पर गिरती ...टिपिर टिपिर ...
बूंदों की ये आवाज़ ....
जैसे बज रहा हो कोई साज़ .....!!
मूंद कर पलकों को...
चांद भर नयनों मे ..
भीगी भीगी सी ..
प्रीत भर लेती है रात ....!!
स्निग्ध चांदनी में डूबी ...
भीनी चंदरिया ओढ़े ...
कैसी खिलती है रात ..
कैसी भीगती है रात ...!!
11 July, 2012
मचल रही बूंदरी ...!!!!!!
सना नना...
सना नना सायँ सायँ ....
पुरवा करत अठखेली ...
उड़ाए ले रही सर से चूनरी ...!!
चम-चम चमक चमक.....
चमके ......मन कामिनी...
दम-दम दमक दमक ....
दमके दुति दामिनी ....
री सखी ...रूम-झूम ...
लूम-झूम ..झूम-झूम ..
घन घन बरस रही बूंदरी ...!!
मूसलादार पड़ रही वृष्टी...
भीग रही ....तर बतर अतर ... समग्र सृष्टी..
सखियाँ खिल-खिल भींजत जायें....!!
हंस-हंस घूम-घूम फुगड़ी खेलें....
पहने इठलायें...!!
हाय सखी ऐसे मे....
श्याम मोसे रूठ रूठ जाएँ ...!!
अमुवा झूरा ना झुरायें...
सखी कैसे करूँ मनुहार ....??
काह करूँ..कित जाऊँ..??
मन बतियाँ कह नाहिं पाऊँ ....
बोलन बिन चैन नाहिं पाऊँ .......!!
कैसे मनाऊँ ....??
आली ....घन घन घना घन..
श्याम घन बरस रही बूंदरी .....
जियरा मोरा भिगोय रही ...
चंचल श्याम सी ...
मन अभिराम सी ...
हाय री नादान ....
कैसी मचल रही बूंदरी ...!!!!!!
07 July, 2012
बनरा मोरा ब्याहन आया .....!!
री सखी ...
देख न ..
सुहाग के बादल छाये ....
झड़ी सावन की लागि ...
माथे लड़ियन झड़ियन बुंदियन सेहरा ...
देख न ..
सुहाग के बादल छाये ....
उमड़ घुमड़ घिर आये ...
सरित मन तरंग उठे....
हुलसाये ...!!
झड़ी सावन की लागि ...
माथे लड़ियन झड़ियन बुंदियन सेहरा ...
गले मुतियन बुंदियन हार पहन .....
बनरा मोरा ब्याहन आया ...!
मन उमंग लाया ....
जिया हरषाया ...
सलोना सजन
सलोना सजन
धर रूप सावन आया ....!!
धरा पलक पुलक छाया ..
हिरदय हर्षाया ....!!
बनरा मोरा ब्याहन आया ....!
संगीत मे बंदिशों के बोल इसी प्रकार के होते है .......जिनको गाते गाते अनुभुति की एक माला सी बनने लगती है .....जिनका अर्थ शाब्दिक रह ही नहीं जाता ....!!भाव का समुंदर बन जाता है और हम गाते गाते ना जाने कहाँ बह जाते हैं .... ............बस श्रुति ही ध्यान रहती है ...!!बनरा की प्रतीक्षा कर रही बनरी ....या वर्षा की प्रतीक्षा कर रही धरा .....या राग के सधने की प्रतीक्षा कर रहा है मन ....या ...कविता के और निखरने की प्रतीक्षा कर रहा है कवि ....या ....अरे अब इस अनुभुति मे ना जाने क्या क्या जुड़ जाये .....
यही अनुभुति .....यही स्पंदन तो संचार है जीवन का .....
धरा पलक पुलक छाया ..
हिरदय हर्षाया ....!!
बनरा मोरा ब्याहन आया ....!
संगीत मे बंदिशों के बोल इसी प्रकार के होते है .......जिनको गाते गाते अनुभुति की एक माला सी बनने लगती है .....जिनका अर्थ शाब्दिक रह ही नहीं जाता ....!!भाव का समुंदर बन जाता है और हम गाते गाते ना जाने कहाँ बह जाते हैं .... ............बस श्रुति ही ध्यान रहती है ...!!बनरा की प्रतीक्षा कर रही बनरी ....या वर्षा की प्रतीक्षा कर रही धरा .....या राग के सधने की प्रतीक्षा कर रहा है मन ....या ...कविता के और निखरने की प्रतीक्षा कर रहा है कवि ....या ....अरे अब इस अनुभुति मे ना जाने क्या क्या जुड़ जाये .....
यही अनुभुति .....यही स्पंदन तो संचार है जीवन का .....
स्नेही पाठकगण ...यदि आप मेरा काव्य संग्रह अनुभुति खरीदना चाहें तो फ्लिप कार्ट पर निम्नलिखित लिंक पर जा कर खरीद सकते हैं ...!
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बहुत आभार .....अगर पढें तो उसके विषय मे दो शब्द कहना ना भूलें ......!!मेरे लिये वही प्रभु प्रसाद है ....!!!!
बहुत आभार .....अगर पढें तो उसके विषय मे दो शब्द कहना ना भूलें ......!!मेरे लिये वही प्रभु प्रसाद है ....!!!!
05 July, 2012
03 July, 2012
छूम छनन नन छन छन ......
आई ....सावन ऋतु आई ..भरमाई..
सुघड़ नार सी बलखाई ..बौराई ...इठलाई ...
फिर ...शरमाई ...!!
फिर घूम घूम ..झूम झूम ...घटा छाई ...!!
काहे बुंदियन बरसन आई ...??
खिल-खिल लजाई ...
रस फुहार लाई ...!!
काहे बुंदियन बरसन आई ...??
खिल-खिल लजाई ...
रस फुहार लाई ...!!
आई आई ....सावन ऋतु आई ...!!
अर र र ....हंसत ......चलत ....उड़त...
लहर लहर लहराए चुनरिया ....
झूम झूम मदमस्त ...बैरी पवन ...
सजनी का डोले-डोले बांवरा मन .....!!लहर लहर लहराए चुनरिया ....
पायल संग उड़े उड़े तन ..............
थिरक थिरक थिरके चितवन ..!!
झूम झूम झन झन ...
थिरक थिरक थिरके चितवन ..!!
झूम झूम झन झन ...
छूम छनन नन छन छन ...!!
मनवा तू भी झूम ले रे ...
तक धिना धिन ... घूम ले रे ...
तक धिना धिन ... घूम ले रे ...
मुस्कुराले ...संग गा ले ... कुछ क्षण ...!!
बीत जायेगा पल में ....
ये निष्ठुर ..
क्षण भंगुर जीवन ...
क्षण भंगुर जीवन ...
मन वीणा के तार मिला ले .....
कजरी से सुर ताल मिला ले ...
मिला तुझे है मानव जीवन ...
रुच रुच इसको भाग जगा ले ....
झूम झूम झन झन ...
छूम छूम छन छन ..
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सर्वप्रथम ....आज गुरु पूर्णिमा पर श्री गुरुवे नम: ....!!
आज से ही मन झूम रहा है ..... कल सावन का पहला दिन .....हरियाला सावन आया .......
उमंग ...उल्लास ...उत्साह से भरा .....
मन का रंग हरा-हरा ....
प्रभु से प्रार्थना है ....यही रंग ...यही उल्लास ...उमंग से हरा भरा रहे .......आप सभी का जीवन ........
छूम छनन नन छन छन ...!!
झूम झूम झन झन ...
छूम छूम छन छन ..
छूम छनन नन छन छन ...!!
छूम छनन नन छन छन ....!!!!!!!
छूम छनन नन छन छन ....!!!!!!!
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सर्वप्रथम ....आज गुरु पूर्णिमा पर श्री गुरुवे नम: ....!!
आज से ही मन झूम रहा है ..... कल सावन का पहला दिन .....हरियाला सावन आया .......
उमंग ...उल्लास ...उत्साह से भरा .....
मन का रंग हरा-हरा ....
प्रभु से प्रार्थना है ....यही रंग ...यही उल्लास ...उमंग से हरा भरा रहे .......आप सभी का जीवन ........
छूम छनन नन छन छन ...!!