25 April, 2013

चन्द्रिका तुम आओ ...!!


चन्द्रिका  तुम आओ ....!!

प्रेम भरा धरती पर धरो पग ..
अपने स्पर्श मात्र से ..
दिवसाग्नि को तनिक ...
शीतलता दे जाओ ....!!

अब निरंतर  निर्झर झरो ...
मृणाल पात पर मेरे धर जाओ ....
अपनी सम्पूर्ण धरोहर ...
एक  बूँद ओस  सी मनोहर .....!!

महत् आनंद सरसाओ ....
चन्द्रिका तुम आओ ...

 तुम्हारा ..शीतल रजत प्रकाश ...
यूँ हो सार्थक अविरत ...
सीमित से इन क्षणों में ....
असीम भाव बरसाओ ......!!

चन्द्रिका  तुम आओ ...!!




20 April, 2013

उज्जवल प्रकाश की ओर......

एक घना आम का वृक्ष है ,उसी की शीतल छाया में जैसे झूला झूल  रही हूँ ....तेज ...और तेज पींगें लेती हुई ...!!ऊपर नीला आसमान ....और मेरी पींग और तेज ...!!
विचार कुछ हलके से ...उड़ गए मुझसे आगे ...मैं विचारों के पीछे पीछे उड़ रही हूँ ....सुखद सी अनुभूति होती है ....!!कुछ तो है ...ध्येय जिसके पीछे भाग रही हूँ ...!!
ईश्वर का ध्यान सबसे पहले आता है ...!!
आभार प्रभु ...हमें मिला है ऐसा जीवन ,हम जो चाहें कर तो सकते हैं ...

नारी हूँ मैं किन्तु अबला नहीं ....!!

यही दृढ़  सोच मन कि उड़ान को और सुन्दर बना देती है ...!!

''नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में ,
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में ...!"

जयशंकर प्रसाद जी की  ''कामायनी'' की ये पंक्तियाँ  कितनी सुन्दर हैं |नारी का मूल्यांकन इससे खूबसूरत शायद ही हो सकता हो ..!!
किन्तु इससे अलग भी विकास की नींव में महिला की अहम भूमिका रही है |और हर उपलब्धि के पीछे महिला का योगदान ज़रूर रहा है ..!अतीत और वर्तमान की तस्वीर देखें तो बदलाव की एक बयार साफ़ नज़र आती है |


painting by Shubnam Gill.
किन्तु बदलाव का यह सफर लंबे संघर्षों और चुनौतियों से भरा रहा है |तथा ये सफर आज भी जारी है |कन्या भ्रूण हत्या ,बलात्कार,दहेज और न जाने कितनी ही और कुंठाएं ...!!
''यह आज समझ तो पाई हूँ ,मैं दुर्बलता मैं नारी हूँ 
 अवयव की सुन्दर कोमलता लेकर मैं सबसे हारी हूँ ''

इस प्रकार सोच लेकर विचलित हो बैठ जाना है या .....अस्फुट रेखा की सीमा में आकार अपनी कला को ,अपनी अभिव्यक्ति को देना है ,अपने स्वत्व को स्थापित करना है .....???

मैं तो यही कहूंगी .....

''असतो माँ सद्गमय 
तमसो माँ ज्योतिर्गमय ...''

तम निरंतर छंटता जाता है ...!!उज्जवल प्रकाश है .....!!मैं हूँ ....मेरा अस्तित्व है ...!!मेरी अभिव्यक्ति है ....प्रखर .....मुखर ......

जैसे ...?????
जैसे जीवन है परछाईं रे ....
अहा ,पुरवा(पूर्वा ) सुहानी आई रे ....

झूले की पींग और तेज .....और तेज ....
आईये ...
 फिर यात्रा जारी रखें उज्जवल  प्रकाश की ओर......

16 April, 2013

कुछ एहसास ...हाइकु ...




पसरा मौन ...
बिखरे हैं सुमन ....
आया है कौन ...?

रूह  छू जाए ....
वसुंधरा मुस्काए  ...
आस जगाए ...

धुंध मिटती .....
वेदना है छंटती .....
पुष्प बिखरे ...

रौशन  लम्हें  ...
जो रुक जाएँ यहीं ...
बीतें न पल ...


खिली  लालिमा .......
देती अब   सन्देश .....
मिटी  कालिमा ...

उगता सूरज ....
करता है निहाल ...
छाया प्रकाश ...




छूकर तुम्हें ...
आई है मेरे द्वार ....
चंचल हवा ....

महके मन .....
भीनी सी   है पवन ...
गुनगुनाऊँ ....



05 April, 2013

अनुभुति की सुकृति ....!!

अनुभूति ...से अनुभूत ...
अनुभूति से अनुरंजित ...
अनुभूति के अनुकूल ...
अनुभूति  से अनुरक्त ...
अनुभूति  से अभिभूत ...
अनुभूति का अनुनेह ...
अनुभूति की अनुगूंज ...
अनुभूति  की अनुशंसा ...
अनुभूति  की अनुकृति ...
ऐसे ही बह चली ....
अनुभुति से सुकृति...
अनुभूति  की सुकृति ....



मेरे ब्लॉग की आज तीसरी वर्षगाँठ .....
इसी प्रकार आनंदमई यात्रा चलती रहे .....
आप सभी से सौहार्द्र अपेक्षित .....
सादर आभार ....!!