30 June, 2014

ओ मासूम ज़िन्दगी। ....!!

समय जब भी असमय
 छीन  लेता  है
कुछ मासूम चेहरों से
मुस्कराहट,
आवृत सा कुछ  होता है,
जो बनता है मौन ताकत   …… !!

धीरे धीरे कड़ी जुड़ती है ,
इस मौन ताकत में ,
प्राची के पट खुलते  ही ,
होने लगता है शोर
 इस ताकत का
तब टूटने लगता है मौन   …
उदासी का ...!

आहत  मन सुनता है
आहट जीवन की  …!!
और चल पड़ती है  ज़िन्दगी फिर......!!

तब सुनाई देती है ,
वही प्रार्थनारत आवाज़ें ,
अगर मेरे शब्दों में ताकत है
अगर मेरी प्रार्थना में बल है
तो दर्द लेकर भी ह्रदय में अपने,
सुनकर मेरे शब्दों की सदा ,
तुम्हें फिर उठना होगा ,
तुम्हें फिर हँसना होगा  …
ओ मासूम ज़िन्दगी। ....!!