आज भी .. ...
आज भी सूर्यांश की ऊष्मा ने
अभिनव मन के कपाट खोले ,
देकर ओजस्विता
किरणें चहुँ दिस ,
रस अमृत घोलें ..!!
देकर ओजस्विता
किरणें चहुँ दिस ,
रस अमृत घोलें ..!!
आज भी साँझ की पतियाँ
लाई है संदेसा
पिया आवन का ,
पिया आवन का ,
आज भी
खिलखिलाती है ज़िन्दगी
खिलखिलाती है ज़िन्दगी
गुनकर जो रंग ,
बुनकर सा हृदय आज भी
बुन लेता है
अभिरामिक शब्दों को
आमंजु अभिधा में ऐसे ,
अभिरामिक शब्दों को
आमंजु अभिधा में ऐसे ,
जैसे तुम्हारी कविता
मेरे हृदय में स्थापित होती है ,
अनुश्रुति सी ,अपने
अथक प्रयत्न के उपरान्त !!
हाँ ..... आज भी ..!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
मेरे हृदय में स्थापित होती है ,
अनुश्रुति सी ,अपने
अथक प्रयत्न के उपरान्त !!
हाँ ..... आज भी ..!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "