हे वृक्ष
कतिपय
तुम्हारी छाया के अवलंबन में
अभ्रांत सहृदयता के पलों के
सात्विक तत्व से
आश्रय पाकर ही
सूर्य की तेजस्विता से
आलोकित होता है जीवन ...!!
तुम पर झूलते
पाखी के झूले
सदाशयता की चहक से
गुंजायमान हो
भोर की आहट बनते हैं
तुम से ही धरा पर हरियाली है ...!!
खुशहाली है !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(११-०९-२०२१) को
'मेघ के स्पर्धा'(चर्चा अंक-४१८४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी मेरी कृति को (चर्चा-अंक 4184) पर स्थान देने हेतु!!
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को साझा किया!!ज़रूर आएँगे!!
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसबको अपनी छाया देते..
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ।
बहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति । बधाई एवं शुभकामनायें ।
ReplyDeleteवाह,वृक्ष के लिए सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमेरी दादी के शब्द याद आ गए,पीपल का वृक्ष देख कर हाथ जोड़ कहतीं थीं, हे वृक्ष देवता नमस्कार 🙏💐
वाह ! वृक्ष के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करतीं सुंदर पंक्तियाँ !
ReplyDeleteअति सुन्दर उद्गार ।
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