10 September, 2021

हे वृक्ष !!

हे वृक्ष

कतिपय

तुम्हारी छाया के अवलंबन में

अभ्रांत सहृदयता के पलों के

सात्विक तत्व से

आश्रय पाकर ही

सूर्य की तेजस्विता से

आलोकित होता है जीवन ...!!

तुम पर झूलते 

पाखी के झूले 

सदाशयता की चहक से 

गुंजायमान हो 

भोर की आहट  बनते हैं 

तुम से ही धरा पर हरियाली है ...!!

खुशहाली है  !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  "सुकृति "

12 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(११-०९-२०२१) को
    'मेघ के स्पर्धा'(चर्चा अंक-४१८४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी मेरी कृति को (चर्चा-अंक 4184) पर स्थान देने हेतु!!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को साझा किया!!ज़रूर आएँगे!!

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  3. सबको अपनी छाया देते..
    सुन्दर पंक्तियाँ।

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  4. बहुत ही खूबसूरत रचना

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  5. सुंदर अभिव्यक्ति । बधाई एवं शुभकामनायें ।

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  6. वाह,वृक्ष के लिए सुंदर अभिव्यक्ति।
    मेरी दादी के शब्द याद आ गए,पीपल का वृक्ष देख कर हाथ जोड़ कहतीं थीं, हे वृक्ष देवता नमस्कार 🙏💐

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  7. वाह ! वृक्ष के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करतीं सुंदर पंक्तियाँ !

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  8. अति सुन्दर उद्गार ।

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!