27 June, 2022

जब मौन गहे !!

जो लिख पाना आता तो लिख पाती ,

दो आँखों में गर्व की भाषा जो कह जाती ,

हौले से जो सांझ ढली तो ये जाना ,

सूरज का छिपना होता है

शीतलता का आना ,

ढलकते आंसू में 

जो अनमोल व्यथा 

सो कौन कहे ?

क्योंकर कोई समझ सका

 जब मौन गहे ,

कोई तो कहता है तेरी आस रहे ,

पथ के पथ पर शीर्ष दिगन्तर बना रहे  ,

चलते रहने का सुख सबसे बढ़कर है ,

लिख पाऊं कुछ ऐसा जग में मान रहे !!


अनुपमा त्रिपाठी 

 ''सुकृति ''

12 June, 2022

कविता ही तो है !!

शब्द चुनकर 

मन की विचारधारा में 

बहने का प्रयास ,

क्षण गुणकर ,

रंग बुनकर ,

जीवन सा ,

खिल उठने का प्रयास ,

व्याप्त व्यथा ,

नदी की कथा ,

कहते और कहते रहने का प्रयास ,

तुम हम में बसी 

आत्मा को जीवित रखने का प्रयास ,

और नहीं तो क्या ,

कविता ही तो है !!


अनुपमा त्रिपाठी 

"सुकृति "

06 June, 2022

व्यथित ह्रदय की वेदना .....!!


व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार   हो
ला सके जो स्वप्न वापस
कोई तो आसार हो

 मूँद कर पलकें जो  सोई
स्वप्न जैसे सो गए
राहें धूमिल सी हुईं
जो रास्ते थे खो गए

पीर सी छाई घनेरी
रात  भी कैसे कटे ,
तीर सी चुभती हवा का
दम्भ भी कैसे घटे

कर सके जो पथ प्रदर्शित
कोई दीप संचार हो
हृदय  के कोने में जो जलता,
ज्योति का आगार हो

व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार  हो

ओस पंखुड़ी पर जमी है
स्वप्न क्यूँ सजते नहीं ?
बीत जात सकल रैन
नैन क्यूँ  मुंदते  नहीं ?

विस्मृति तोड़े जो ऐसी ,
किंकणी झंकार हो
मेरी स्मृतियों की धरोहर
पुलक का आधार हो !!

व्यथित हृदय  की वेदना का
कोई तो पारावार  हो

अनुपमा त्रिपाठी
  "सुकृति "


04 June, 2022

शजर

तेरी फ़िक्र से मुझमे है मेरी सांस का होना '

तुझे तुझसे कहीं  दूर चुरा लाया हूँ मैं 


तेरे चेहरे की हँसी में ही मेरी शाम-ओ -सहर है

सबब -ए -ज़िक्र का पोशीदा असर लाया हूँ मैं


मौसम-ए -गुल की पनाहों में  मैं हूँ ,तेरे ख़त  भी हैं

तेरी यादों से रची शाम संवार लाया हूँ मैं


घने शजर की छाँव में की दो घड़ी  की बात 

दिल अपना तेरे पास यूँ ही छोड़ आया हूँ मैं


अनुपमा त्रिपाठी

"सुकृति "