22 April, 2010

पलट गए पन्ने-2

पलट गए पन्ने -
और ....
आगे बढ चला जीवन -
जैसे रेत पर बने-

पैरों के निशान मेरे -
पलट कर देखती हूँ ....

सोचती हूँ -
क्या दिया क्या लिया ....-
क्या कुछ छाप छोड़ी ?
क्या पलभर भी 

कोई मुझे -
याद रख पायेगा ?
या सदियों से -

आ रही परंपरा 
कायम रह जायेगी -
विस्मृत सी पड़ जायेगी 

मेरी स्मृति -
धूमिल सी पड़ जाएगी

मेरी छब........!!!

9 comments:

  1. Didi...nice thoughts...but who can wash away the memories.....aamit chaap chodti hain aap!!

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  2. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  3. आपकी हर कविता कि तरह बेहतरीन।


    सादर

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  4. अपनी पहचान सदैव ही होती है, हम जहाँ भी और जिस रूप में होते हैं विशिष्ट होते हैं. इस सृष्टि की हमारे बिना गुजर ही कहाँ होती है?
    बहुत बढ़िया कविता !

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  5. सुगढ़ चिंतन करती रचना....
    सादर...

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  6. कुछ ऐसा करना चाहती हूँ
    सबके दिल में रहना चाहती हूँ


    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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