20 June, 2010

मृगमरीचिका नहीं --मुझे है जल तक जाना -10


दूर दीखता निर्मल पानी
चमक देख मन में हैरानी
चमकीला सा पानी
जाकर झट पी जाऊं
अटक -भटक थी मेरे मनमे
प्यास बुझाऊँ --


पृथ्वी की गति -वेग न पाऊँ---
भाग भाग फिर मैं थक जाऊं-
मैं रुक जाऊं -
चंचल मन में मोह था मेरे -
फिर उठ जाऊं -


पृथ्वी की गति -वेग न पाऊँ -
भाग- भाग फिर मैं थक जाऊं-
मैं रुक जाऊं  .....!!!!
जीवन का यह चक्र -
समझ में पल ना आता -
काम -क्रोध-मद -लोभ से --
मेरा मन भरमाता --

 मित्थ्या पीछे चलते- चलते  -
जब मैं थक कर   हार गयी -
तब समझी मैं--- मार्ग मेरा क्या -
निश्चित अब पहचान गयी -


जाग गयी चेतना --
अब मैं देख रही प्रभु लीला --
प्रभु लीला क्या -जीवन लीला ....
जीवन है संघर्ष तभी तो --
जीवन का ये महाभारत --

युध्ह के रथ पर --
मैं अर्जुन ...तुम सारथी मेरे ..
मार्ग दिखाना -
मृगमरीचिका नहीं ---
मुझे है जल तक जाना ...!!!!!!

12 comments:

  1. what a lovely poem ! If it was indeed written at midnight , it shows . Such thoughts can only happen when world is asleep

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  2. mann ke udgaar bahut sundar shabdon mein utaare hain.....

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  3. गहन भाव .. रुकते और भ्रमित होते हुए भी इस राठी को खोज निकालना कि जल ( सत्य ) तक जाना है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  4. बहुत सुन्दर शब्दों से अपने भाव को बाँधा है ..

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  5. युध्ह के रथ पर --
    मैं अर्जुन ...तुम सारथी मेरे ..
    मार्ग दिखाना -
    मृगमरीचिका नहीं ---
    मुझे है जल तक जाना ...!!!!bahut hi achchi rachanaa,bahut sunder shabdon ka chayan.badhaai aapko.

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  6. युध्ह के रथ पर --
    मैं अर्जुन ...तुम सारथी मेरे ..
    मार्ग दिखाना -
    मृगमरीचिका नहीं ---
    मुझे है जल तक जाना ...!!!!!!

    बहुत सुन्दर भाव हैं अनुपमा जी ! जीवन के महासंग्राम में प्रभु यदि सारथी बन हमारे मन की दुविधाओं का निदान कर दें तो निश्चित ही हमें मरीचिकाओं के पीछे भटकने की आवश्यकता नहीं होगी ! हमें हमारी इच्छित जलराशि तक पहुँचने का मार्ग सुगमता से मिल जायेगा ! बहुत भावपूर्ण एवं सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  7. जाग गयी चेतना --
    अब मैं देख रही प्रभु लीला --
    प्रभु लीला क्या -जीवन लीला ....
    जीवन है संघर्ष तभी तो --
    जीवन का ये महाभारत --

    इन पंक्तियों की बात ही अलग है.

    सादर

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  8. संछेप में बस इतना ही कहूँगा ..........शब्द कम हैं मेरे पास इस कविता की तारीफ के लिए

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  9. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  10. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी!!

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  11. युध्ह के रथ पर --
    मैं अर्जुन ...तुम सारथी मेरे ..
    मार्ग दिखाना -
    मृगमरीचिका नहीं ---
    मुझे है जल तक जाना ...!!!
    भीतर की सुप्त चेतना यदि सक्रिय हो जाए तो इन्सान किसी भी महाभारत को जीत सकता है | सार्थक रचना अनुपमा जी |

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  12. जीवन की वास्तविकता समझ में आने के बाद ही वास्तविक जल व मृगमरीचिका का अंतर समझ आता है। ऐसे में भ्रमित मन को ईश्वर ही सही मार्ग दिखा सकते हैं।
    मैं अर्जुन ...तुम सारथी मेरे ..
    मार्ग दिखाना -
    मृगमरीचिका नहीं ---
    मुझे है जल तक जाना ..
    यदि स्वयं को यह बोध हो जाए तो लक्ष्य तक पहुँचना और आसान होगा !!!

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!