27 November, 2010

23-धूप-- छाँव



उल्लासित जीवन जीने का -
सतत प्रयास करती रही -
कभी धूप 
कभी छाँव  के मौसम से -
निरंतर गुज़रती रही -
ज़िन्दगी से प्रीत निभाती रही .


छुप जाती थीं जब सूर्य की -
दिव्य उष्म प्रकाश की
अलौकिक रेखाएं -
आच्छादित थीं रवि -आभ पर -
छाँव  लाती हुई -
अलक सी घटायें -
ठगी सी निर्निमेष निहारती थी -
अपलक मेरी पलक -
वही अलक सी घटायें -
छाई थी मेरे मन पर क्यों -
कारी -कारी अंधियारी लाती हुई -
वही अलक सी घटायें -
उस पर दामिनी -
दमक- दमक कर -
मन डरपा जाती थी -
बीतते न थे-
पल-पल गिनते भी -
दुःख के करील से क्षण .....!!
मनन करता था मन -
करता था पुरजोर अथक प्रयास -
ढूंढता था तनिक आमोद-प्रमोद
आल्हाद और उल्लास ...!!


है यह नियति की परिपाटी -
सुख के बाद -
अब दुःख की घाटी
हर एक मोड़ जीवन का
ले लेता जैसे अग्नि परीक्षा -
पर हो कर्तव्य की पराकाष्ठा -
और अपने ईश पर घनीभूत आस्था -
हे ईश -ऐसा दो शीश पर आशीष
जी सकूँ निर्भीक जीवन -
वेग के आवेग से मैं बच सकूँ -
आंधी औ तूफ़ान से जब-जब घिरुं-
दो अभय वरदान अपराजिता बनू -




जब -जब पा जाता था मन प्रसाद -
विस्मृत हो जाते सारे अवसाद -
आ जाता जीवन में पुनः आह्लाद ,
और फिर जी उठता  प्रमाद ....!!
फिर वही गीत गुनगुनाती रही .........!!
ज़िन्दगी की रीत निभाती रही ..!
कभी धूप कभी छाँव के मौसम से-
निरंतर गुज़रती रही -
उल्लसित जीवन जीने का-
सतत प्रयास करती रही ........!!!
ज़िन्दगी से प्रीत निभाती रही ............!!!!!!

14 November, 2010

22-मेरा बचपन....!!


चहक उठती है
मन की चिड़िया -
महक उठती है
मन की बगिया-!

खिल उठता है
घर का कोना-कोना
जी उठता है
मन का कोना -कोना
बन जाती हूँ बच्ची मैं जब -
घर आते हैं बच्चे -
लौट आता है बचपन मेरा -
संग होते जब बच्चे -!!

है ये बच्चों का बचपन -
या मेरा बचपन -
या मेरा बचपन दोहराता हुआ -
मेरे प्यारे बच्चों का बचपन --

माँ -माँ करता गुंजित कलरव -
अमृत सा दे जाता है -
पीकर इसका प्याला -
मन हर पीड़ा दूर भगाता है --!

खो जाती हूँ रम जाती हूँ -
छोटी सी इस दुनिया में -
घर फिर घर सा लगता मुझको -
घर आते जब बच्चे-!!