25 June, 2011

वसुधैव कुटुम्बकम.......!!

मन सोच सोच अकुलाये...
कई बार समझ न आये ...
क्या मैं भी बन जाऊं -
व्यापक  व्यवस्था का वो हिस्सा ...
बन  जाऊं दलदल ..कीचड़ में ... 
और सुस्ताऊं जीवन भर .... !!

या संकल्प  लूँ मन ही मन में  ..
खिलना कमल को है कीचड़ में .. 
तब तो सहेजना  होगी ...
कंपकपाती वो ज्योत मन की ..
कभी  कभी  बुझने  सी  लगाती  है  जो - 
थामने होंगे संघर्ष   के  बोझ  से दबे .. ..
 अपने ही लड़खड़ाते हुए कदम ...
वो उर्जा ..समेटनी होगी ...
सिक्त करना होगा ..रिक्त ह्रदय ....
अपनाना होगा मनुष्य को -
मनुष्य भेस में ही ...
संचार करना ही होगा मन में ...
दिव्य ऊष्मा का ..
स्वयं और स्वजनों के लिए भी ..
तब ही  हम सब उस शुभ विचार का  -
प्रसार ..प्रचार करते हुए -
इसी धरा पर सब  मिल  कहेंगे ...
वसुधैव कुटुम्बकम.......!!
वसुधैव कुटुम्बकम.......!!

21 June, 2011

सत्यम ..शिवम् ..सुन्दरं ....!!


एक रंग ..श्वेत..
सब रंग समाया ...!
यही सत्य जीवन ...
मेरी-तेरी काया ....!!

एक  रूप ईश्वर ....!!
शिव रूप परमेश्वर ..... 
सबके ईश हो तुम ...
सब में वेष्टित गुण ..
पापी हो या पुजारी ..
राजा हो या रंक ..
इस जग में ..
सब रूप समाया ... !!

सुंदर मन में .....
हम सब एक ...
तुम हम सब में ...
एक ब्रह्म....
परब्रम्ह ...!!

अद्वैत... 
प्रभु मेरे ...
बस एक कहा मानो  ..
दे दो..
वो दृष्टि मुझे ...
दिव्य ..स्वेद सी ..!!

और थोड़ी ..
प्रबलता मन की ...
प्रेम ऐसा मन में मेरे ...
देख सकूँ हर सूँ ...
सुन्दरं ...सुन्दरं ...सुन्दरं ......!!
भज मन ..सत्यं ..शिवं ..सुन्दरं......!!!!!!!

17 June, 2011

पिया मिलन की आस .....!!

छाई  दुपहरी.. चढ़ा सुनहरी..
चम -चम चमके ...
दमके सूरज ....
चहुँ दिस देखूं ...
सूनी सी है ..
निर्जन सी गलियारी लगती ..
ना  तू मेरा ना  मैं तेरा ...
जीवन कैसा ..
शुष्क नयन सा ...!!

आया सावन लाया  बदरा ....
नीर भरे घन छाये बदरा ...!!
कारे कारे आये बदरा ...
मस्त पवन -
मन भाये  बदरा ...!!

तक -तक ताकत आसमान ...
जब शुष्क नयन में-
भरता था मन नीर ...
तब -
नीर भरे नयनो में ..
भरता जीवन
कैसी निर्झर पीर ...!!
अब ..
पीर झरे झर प्रीत पगे ...
थी कैसी जाने प्यास ...
आली  री मोरा ...
तरसे है मन ...!!
कब बरसेंगे -
कारे ये घन ...!! 
जागे-जागे ..
 मन मा मोरे ..
करत -करत अरदास ...
प्रभु दरसन की आस .....
सखीरी ...
पिया मिलन की आस .....!!

15 June, 2011

!कागा कब ऐहौं मोरे द्वारे ....!!

कागा कब ऐहौं मोरे द्वारे ..
सुमिरत सांझ सकारे..
मोरा ..
सकल रैना-
जागा है मनवा ..
निरखत राह तका रे .....!!
कागा......

चूल्हे की लकरी सा ..
जलता हिया मोरा  ...
निर्मोही सों
 नेहा लगा रे ..
प्रीत मोरी  -
मोम की बाती..
उन बिन ..
जल नाहीं  पाती ..
उन मन मोम
ना पिघला रे ..
कागा ........

रात बनी मैं चाँद पुकारूं ....
प्रीत किये पछिताऊँ ....
घिर घिर आये
बदरवा कारे ...
अंसुअन 
नीर बहाऊँ ....
मैं बिरहिन ......
व्याकुल 
दरसन बिन..... 
बदरी की ओट में  
क्यूँ   ....
चंदा मोरा 
छुपा रे ....
कागा ...........

12 June, 2011

तलाश ....!!

दंभ अकारण घेरे था .....
श्रद्धा से दूर हुई  मैं ..
ढूँढ रही थी 
तुम में खुद को ...
भटक रही थी 
निर्जन वन में .... 
मिला न मुझको वो सुर मेरा ...!!
ढूँढ -ढूँढ जब 
क्षीण हुआ मन ..
जीर्ण हुआ तन ..

त्याग दिया 
बाल-हठ अपना......
अब मैं ..
खुद में  ढूँढ रही हूँ ...!!
फिर भी  तुमको ढूँढ रही हूँ ...!! 
प्रभु ..मैं तुमको ढूँढ रही हूँ ...!!!!!

08 June, 2011

सुरमई सांझ ढल रही है ...!!

अनादि  काल .....
अनादि  काल .....
सदियों ..पीछे -
जा पहुंचा है मन .....
संधिप्रकाश का
दीपक जला -
नीलाम्बर पधारा है, 
धरा द्वार ...!!
सुरमई सांझ 
ढल रही है ...!!
सुरों की सुरभि 
बिखेर रही है ..!!
पट खुले हैं रागों के-
नीलाम्बर    
सोच में डूबा है ... 
कोमल रिषभ,शुद्ध गंधार 
और तीव्र मध्यम 
को साथ ले- 
आज पूरिया  या मारवा 
किस मंदिर  जाऊं ...? 
पूरिया   धनाश्री भी
आरती  कर  रही होगी ...!!
किससे प्रसाद पाऊँ ....?
दूर से ही सुनाई देती है...!!
अनायास मन रिझा लेती है  ....!!
मंदिर के घंटों  की -
गूंजते हुए शंखों की-
हृद  झंकृत करती हुई... 
मोहक-
चित्ताकर्षक - 
गुरुत्वाकर्शक...नाद ...!!
और सामवेद के 
सम्मिलित स्वर ...!!
जैसे भाव हों  प्रखर ..!!
ये प्राचीन मंदिर,
इन रागों के- 
पुष्कल निवास ..!
सुसज्जित हैं-
मन वीणा  के तारों से ...!
अलंकृत हैं -
राग -सुर अलंकारों से ..!
प्रकांड पंडित यहाँ,
प्रवीण हैं -
मन्त्र -उच्चारण में ...!!
दिव्य शांति प्रसारण में ....!!
सुरों  के  आलोक  से  प्रकाशित  वातावरण ....
ये सौभाग्य हमारा ...
अखंड  विश्वास हमारा..........
सुरीला इतिहास हमारा ...
कहाँ ..कब .....
कैसे खो गया ...?
सोचते सोचते क्लांत ...!
मन मेघन बरस गया ...!!


संधिप्रकाश राग :सुबह और शाम जब तम और प्रकाश की संधि होती है ,उस समय कुछ विशिष्ट रगों को गाया जाता है ,जिन्हें संधिप्रकाश राग कहते हैं |कोमल रिषभ (रे ),शुद्ध गंधार (ग )और तीव्र मध्यम (म )का प्रयोग इन रागों की विशेषता है |
भैरव सुबह का संधिप्रकाश राग है और मारवा शाम का |परम अचरज की बात ये है ...जब आप राग भैरव सुनते हैं समझ में आता है ...उज्जवल प्रकाश आने वाला है ...और जब मारवा सुनते हैं ...लगता है ...अंधकार  छाने वाला है ...!!मन न माने तो सुन कर देख लीजियेगा ........!!
अब तक आप समझ गए होंगे ....पूरिया ,मरवा ,पूरिया धनाश्री -सांझ के संधिप्रकाश रागों के नाम हैं ..!!
सामवेद गाया जाता है ...जो ये बताता है की हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का इतिहास कितना पुराना है ...!!या यूँ कहिये ...मानव और स्वर का रिश्ता कितना पुराना है ...!!





04 June, 2011

स्वरोज सुर मंदिर (२)






मैं सरोज तुम अम्बुज मेरे ...
सरू से दूर कमल मुरझाये ...
ईमन यमन राग बिसराए ..
यमन राग मेरी  तुमसे है ........
निश्चय ही ........!!!!
मध्यम तीवर सुर लगाऊँ .........
जब लीन मगन मन सुर  साधूँ ....
तुममे खो जाऊं ...
आरोहन -अवरोहन सम्पूरण ......!!
अब रात्री का प्रथम प्रहर..
हरी भजन में ध्यान लगाऊँ .....!!




इसी आराधना से आज स्वरोज सुर मंदिर की  दूसरी कड़ी लिख रही हूँ |राग यमन का परिचय आपको दिया था |राग यमन सुनते जाइये |आज कुछ मूलभूत बातें आपको बताती हूँ |

सबसे पहले स्वर क्या है ?

नियमित आन्दोलन -संख्या  वाली ध्वनी स्वर कहलाती  है|यही ध्वनी संगीत के काम आती है ,जो कानो को मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्न करती है |इस ध्वनी  को संगीत की भाषा में नाद कहते हैं |इस आधार पर संगीतोपयोगी नाद 'स्वर'कहलाता है अब आप समझ  गए होंगे कि संगीत के स्वर और कोलाहल में फर्क है |और यहाँ संगीत विज्ञान से जुड़ गया है |

अब हम आरोह- अवरोह पर आते हैं |जब हम स्वरों को गाते हैं तो स्वरों के चढ़ते हुए क्रम को आरोह कहते हैं  | जैसे :
आरोह :सा ,रे, ग,म,,प ,ध,नि ,सं||
उसी तरह उतरते हुए क्रम को अवरोह कहते हैं |जैसे :
अवरोह :सां,नि ,ध ,प,म ,ग ,रे ,सा ||


अलंकार: स्वर स्थान समझने के लिए ..या यूँ कहूं की ये जानने के लिए की सा से रे ,रे से ग ,ग से म क्रमशः स्वरों की दूरी परस्पर कितनी है हमें अलंकारों का अभ्यास करना पड़ता है |जैसे :
आरोह :सारेग ,रेगम ,गमप,मपध ,पधनी ,धनिसां ||
अवरोह :सांनिध ,निधप,धपम ,पमग ,मगरे ,गरेसा ||
स्वरों से समूह को ले कर आरोह और अवरोह करते हैं विभिन्न अलंकार |
ये कई प्रकार से किये जा सकते हैं |




संगीत का प्रभाव :


संगीत से केवल आनंदानुभूति ही नहीं होती |ध्वनियाँ मानसिक स्थितियों की भी सूचक होती हैं |साथ ही ये हमारे मनोभावों को भी प्रभावित करतीं हैं |संगीत हमारी आत्मा में भक्तिमय अनुभूतियाँ भर देता है |भक्ति भी एक प्रकार का आवेग है जो हमारी आत्मा को प्रभावित करता है |
                  संगीत में एक गति है |और हमारी क्रियाएं भी गत्यात्मक हातीं हैं |दोनों में सदृश्य होने के कारण ही मात्र ध्वनिमय राग -रागिनियाँ हमारी आत्मा को प्रभावित कर लेती हैं |जो संगीत हम आत्मसात कर लेते हैं वो ईश्वरीय बन कर सदा सदा ...हमारे पास ..हमारे साथ ही रहता है|प्राकृतिक  गति हमें आनंद देती है |बच्चे जन्म से ही इससे प्रभावित हो जाते हैं |राग और लय में  प्रभावित  करने की शक्ति उनकी नियमितता के कारण ही आती है ,क्योंकि असंतुलन में संतुलन ,अव्यवस्था में व्यवस्था और असामंजस्य में सामंजस्य लेन की अपेक्षा नियमितता या संयम से हम अधिक प्रभावित होते हैं|स्वर और लय का संयम तथा सामंजस्य ही हमें प्रभावित करता है |
संगीत हमें आनंद ही नहीं देता बल्कि एक जीवन शैली भी देता है ..!!


क्रमशः ......


01 June, 2011

मर्म का भेद ....!!


विषयगत ....
मद में डूबा ..
चिन्मय  विमुख ..
क्यों छुपा हुआ है 
 इंसान
हर समय ..
एक नकाब में ...
मर्म का भेद....
समझ  समझ के भी-
कठिन गणित सा .. 
कुछ समझ न आये -
तो कैसे समझूं ...?
आँख तो दिखती है ..
चेहरा दीखता ही नहीं ...!!



बहरूपियों के 
इस भीड़ भरे मेले में ..
अपनी  राग   गाऊँ 
या न  गाऊँ ...?
दग्ध  सी ... 
दुविधा में पड़ी -
सोच में डूबी ..!!
तपती धूप और ..
सेहरा पर चलते चलते -
जीवन की पूँजी समझ -
मुठ्ठी में रेत ही भरी मैंने .....!!
घडी की टिक-टिक
चलती रही निरंतर ....
वक्त गुजरता गया ..
क्षण-क्षण कटता  गया ...
फिसलती चली  गयी रेत...!!!
और ...
आया हाथ कुछ भी नहीं ...!! 
एक उम्र कितनी  कम है ..
एक  छोटी सी बात ....
समझने के लिए ..!

बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की ....!!

बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की ....
अब" स्वप्न पनघट" पर खड़ी-खड़ी ..
करबद्ध ...
है प्रेम जल गागरी
जमुना -जल  भरी
सर पर ...
दिन गए बीते बहुत ...
प्रभु तुमरी छाप अद्भुत ...!!
आज सहसा ठिठक ...
मनः पटल
 टटोल रही हूँ ...
प्रभु तुम हो मन में ..
तभी तो ..
अंतर्मन से
पूँछ रही हूँ ...
बताओ  तो ...
कावेरी ..नर्मदा ...गंगा ...या 
जमुना-जल   क्या है ...?
आपनी ही ..
कभी कल-कल करती  थीं किलोल......
ऐसी स्वच्छ  नदियों की ..
अपने ही द्वारा
दूषित .. प्रदूषित ..
की गयी दुर्दशा देख..
आकुल- व्याकुल  है मन ...!!


चिर परिचित
स्मित मुस्कान..
अधरों पर  धरे .... ..
धरा पर हरियाली सी ..
छटा बिखेरते अपनी..
हरित जाज्वल्यमान  करते उसे ...
दिखाते हो अपना रूप ..
 नित्य ही  तुम  सबको ....
फिर  मुझे  बुलाते हो ....
दू ....र..कहीं ...!!
और  दुगुने उत्साह से ...
तीव्र आवेग से ...
चलने लगती हूँ मैं ...
तुम्हारे निशान ढूंढते हुए ...
तेज़  कदमताल  करते  हुए  ..
नदी की धारा सी ...!!!!


चलते चलते
छलकती जाती है
गागरी ..
प्लावित ...सिंचित ...
भीगता जाता है मन ...
देते  हो  शब्द   मुझे 
और  कहते  हो मुझसे .. ..

ये प्रेम जल  ही तो ....
स्मरण है मेरा  ...
घूंघट है तुम्हारा .....
आवरण है मन का ..
आचरण है तन का ...
आंकलन जीवन का ...

गति है ..
सद्गति है ..
दुर्गति कदापि नहीं ...
स्त्रोत है ..
बहाव है  फैलाव है ..
रुकाव ..अड़चन ...कभी भी नहीं ...!!

क्षुधा मिटाता ये जल ..
झांको इसमें तो ..
पाओ ....
अपना  ही  प्रतिबिम्ब ..... .
स्वरुप है ..
सरूप  है ..सुरूप है ..
जहाँ देखो वहां ...
यहाँ प्रेम ही प्रेम है ...!
आनंद   ही आनंद है ...!!
संजो सको तो ..
संजो लो इसे ....
और  .....
मेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
बड़ी ही कठिन है ये  डगर पनघट की ....!!
टूट जाता है भ्रम मेरा ...
जाग जाती हूँ ...
चौंक कर स्वप्न से .....
और सोचती हूँ ...
सच में ...
वह दिव्य स्वप्न झूठ  कहाँ था ...?
बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की .....!!!!!!!!


Purity ....is a dream now..!! Please save the EARTH ...the  RIVERS .......from  pollution ...!!!