करबद्ध ...
है प्रेम जल गागरी
जमुना -जल भरी
सर पर ...
दिन गए बीते बहुत ...
प्रभु तुमरी छाप अद्भुत ...!!
आज सहसा ठिठक ...
मनः पटल
टटोल रही हूँ ...
जमुना -जल भरी
सर पर ...
दिन गए बीते बहुत ...
प्रभु तुमरी छाप अद्भुत ...!!
आज सहसा ठिठक ...
मनः पटल
टटोल रही हूँ ...
प्रभु तुम हो मन में ..
तभी तो ..
अंतर्मन से
पूँछ रही हूँ ...
बताओ तो ...
कावेरी ..नर्मदा ...गंगा ...या
पूँछ रही हूँ ...
बताओ तो ...
कावेरी ..नर्मदा ...गंगा ...या
जमुना-जल क्या है ...?
आपनी ही ..
कभी कल-कल करती थीं किलोल......
दूषित .. प्रदूषित ..
की गयी दुर्दशा देख..
आकुल- व्याकुल है मन ...!!
चिर परिचित
स्मित मुस्कान..
अधरों पर धरे .... ..
हरित जाज्वल्यमान करते उसे ...
दिखाते हो अपना रूप ..
नित्य ही तुम सबको ....
और दुगुने उत्साह से ...
तीव्र आवेग से ...
चलने लगती हूँ मैं ...
तुम्हारे निशान ढूंढते हुए ...
चलते चलते
छलकती जाती है
गागरी ..
प्लावित ...सिंचित ...
भीगता जाता है मन ...
आपनी ही ..
कभी कल-कल करती थीं किलोल......
ऐसी स्वच्छ नदियों की ..
अपने ही द्वारादूषित .. प्रदूषित ..
की गयी दुर्दशा देख..
आकुल- व्याकुल है मन ...!!
चिर परिचित
स्मित मुस्कान..
अधरों पर धरे .... ..
धरा पर हरियाली सी ..
छटा बिखेरते अपनी..हरित जाज्वल्यमान करते उसे ...
दिखाते हो अपना रूप ..
नित्य ही तुम सबको ....
फिर मुझे बुलाते हो ....
दू ....र..कहीं ...!!और दुगुने उत्साह से ...
तीव्र आवेग से ...
चलने लगती हूँ मैं ...
तुम्हारे निशान ढूंढते हुए ...
तेज़ कदमताल करते हुए ..
नदी की धारा सी ...!!!!
चलते चलते
छलकती जाती है
गागरी ..
प्लावित ...सिंचित ...
भीगता जाता है मन ...
देते हो शब्द मुझे
और कहते हो मुझसे .. ..
ये प्रेम जल ही तो ....
स्मरण है मेरा ...
घूंघट है तुम्हारा .....
स्मरण है मेरा ...
घूंघट है तुम्हारा .....
आवरण है मन का ..
आचरण है तन का ...
आंकलन जीवन का ...
आंकलन जीवन का ...
गति है ..
सद्गति है ..
दुर्गति कदापि नहीं ...
स्त्रोत है ..
बहाव है फैलाव है ..
रुकाव ..अड़चन ...कभी भी नहीं ...!!
क्षुधा मिटाता ये जल ..
झांको इसमें तो ..
पाओ ....
झांको इसमें तो ..
पाओ ....
अपना ही प्रतिबिम्ब ..... .
स्वरुप है ..
सरूप है ..सुरूप है ..
जहाँ देखो वहां ...
यहाँ प्रेम ही प्रेम है ...!
मेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
जहाँ देखो वहां ...
यहाँ प्रेम ही प्रेम है ...!
आनंद ही आनंद है ...!!
और .....
संजो सको तो ..
संजो लो इसे ....मेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
बड़ी ही कठिन है ये डगर पनघट की ....!!
टूट जाता है भ्रम मेरा ...
जाग जाती हूँ ...
चौंक कर स्वप्न से .....
चौंक कर स्वप्न से .....
और सोचती हूँ ...
सच में ...
वह दिव्य स्वप्न झूठ कहाँ था ...?
बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की .....!!!!!!!!
Purity ....is a dream now..!! Please save the EARTH ...the RIVERS .......from pollution ...!!!
Purity ....is a dream now..!! Please save the EARTH ...the RIVERS .......from pollution ...!!!
bahut kathin hai dagar panghat ki..bahut sunder chitran...jal ka mahatv nadiyon ke bahaav jaisi chanchalta liye hue aapki yeh rachna bahut achchi lagi.
ReplyDeleteबड़ी सरलता से कठिन डगर व्यक्त कर दी।
ReplyDeleteआज ही पढ़ा खबर में "नर्मदा आज आ रही है भोपाल में ", सचमुच बहुत कठिन डगर पनघट की . पर कविता में आस्था बहुत है , सारे विषद के बावजूद , शायद गंगा फिर पावन हो जाये वर्षों से करोड़ों इसके जल में जो डाला जा रहा है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
जाग जाती हूँ ...
ReplyDeleteचौंक कर स्वप्न से .....
और सोचती हूँ ...
सच में ...
बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की ..
भावनाओं से ओत प्रोत सुन्दर रचना.
ये प्रेम जल ही तो ....
ReplyDeleteस्मरण है मेरा ...
घूंघट है तुम्हारा .....
आवरण है मन का ..
आचरण है तन का ...
आंकलन जीवन का ...
पूरी कविता के साथ साथ ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
सादर
चलते चलते
ReplyDeleteछलकती जाती है
गागरी ..
प्लावित ...सिंचित ...
भीगता जाता है मन ...
देते हो शब्द मुझे
और कहते हो मुझसे .. ..
ये प्रेम जल ही तो ....
स्मरण है मेरा ...
घूंघट है तुम्हारा .....
आवरण है मन का ..
आचरण है तन का ...
आंकलन जीवन का ...
गति है ..
सद्गति है ..
दुर्गति कदापि नहीं ...
स्त्रोत है ..
बहाव है फैलाव है ..
रुकाव ..अड़चन ...कभी भी नहीं ...!!
क्षुधा मिटाता ये जल ..
झांको इसमें तो ..
पाओ ....
अपना ही प्रतिबिम्ब ..... .
स्वरुप है ..
सरूप है ..सुरूप है ..
जहाँ देखो वहां ...
यहाँ प्रेम ही प्रेम है ...!
आनंद ही आनंद है ...!!
संजो सको तो ..
संजो लो इसे ....
और .....
मेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
बड़ी ही कठिन है ये डगर पनघट की ....!!
टूट जाता है भ्रम मेरा ...
जाग जाती हूँ ...
चौंक कर स्वप्न से .....
और सोचती हूँ ...
सच में ...
वह दिव्य स्वप्न झूठ कहाँ था ...?
बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की .....!!!!!!!!
सुंदर रचना...बहुत अच्छी पंक्तियाँ और भावमयी ...
संजो सको तो ..संजो लो इसे ....और .....
ReplyDeleteमेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
बड़ी ही कठिन है ये डगर पनघट की ....!!
टूट जाता है भ्रम मेरा ...जाग जाती हूँ ...
चौंक कर स्वप्न से .....और सोचती हूँ ...सच में ...
वह दिव्य स्वप्न झूठ कहाँ था ...?बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की .....!!!!!!!!
नदियों के जल से मन की गंगा तक पहुंचा दिया ..सुन्दर प्रस्तुति
चलते चलते
ReplyDeleteछलकती जाती है
गागरी ..
प्लावित ...सिंचित ...
भीगता जाता है मन ...
देते हो शब्द मुझे
और कहते हो मुझसे .. ..
ये प्रेम जल ही तो ....
स्मरण है मेरा ...
घूंघट है तुम्हारा .....
आवरण है मन का ..
आचरण है तन का ...
आंकलन जीवन का ...mann ko rumani kerte ehsaas
ये प्रेम जल ही तो .....
ReplyDeleteस्मरण है मेरा ...
घूघट है तुम्हारा..
आवरण है मन का..
आचरण तन का..
आंकलन जीवन का....
बहुत ही सुंदर और भावाबिव्यक्ति से परिपूर्ण, नयी दिशा देती हुई और प्रेम रस मैं डूबी हुई अत्ति सुन्दर रचना...
नदिया के जल की ही भांति कल-कल बहता यह जीवन भी निरंतरता और प्रेम्पुरित रहने का सन्देश हमें देता है.
बहुत-बहुत बधाई!!!!!
अपना ही प्रतिबिम्ब ..... .
ReplyDeleteस्वरुप है ..
सरूप है ..सुरूप है ..
जहाँ देखो वहां ...
यहाँ प्रेम ही प्रेम है ...!
आनंद ही आनंद है ...!!
संजो सको तो ..
संजो लो इसे ....
और .....
मेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
बड़ी ही कठिन है ये डगर पनघट की bahut hi bemisaal adbhoot rachanaa.badhaai aapko.
ये प्रेम जल ही तो ....
ReplyDeleteस्मरण है मेरा ...
घूंघट है तुम्हारा .....
आवरण है मन का ..
आचरण है तन का ...
आंकलन जीवन का ...
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सचिन ने क्रिकेट में रिकार्ड तोड़ा, अन्ना हजारे ने अनशन तोड़ा, प्रदर्शन-कारियों रेलवे-ट्रैक तोड़ा, विकास-प्राधिकरण ने झुग्गी झोपड़ियों को तोड़ा। तोड़ा-तोड़ी की परंपरा हमारे देश में पुरानी है। आपने कुछ तोड़ा नहीं अपितु अपनी रचनात्मता से दिलों को जोड़ा है। इस प्रेम, करुणा और सरलता को बनाए रखिए। भद्रजनों के जीवन की पतवार है। आपकी रचना का यही सार है। साधुवाद!
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प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
आकलन जीवन का , गति है, सद्गति है, दुर्गति कदापी नहीं, स्त्रोत हैं बहाव हैं,फेलाव हैं, रुकाव अरचन कभी नहीं
ReplyDeleteनदी के बहाव,स्वछता, शीतलता, निर्मलता को बनाये
रखने का एक बहुत खूबसूरत प्रयास
" बधाई "
जाग जाती हूँ ...
ReplyDeleteचौंक कर स्वप्न से .....
और सोचती हूँ ...
सच में ...
बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की ..
--
जी हाँ आपने बहुत चतुराई से अपने भावों की माला गूँथी है!
dilko chhoo lene vali kavita k liye badhai...
ReplyDeleteसच में ...
ReplyDeleteवह दिव्य स्वप्न झूठ कहाँ था ...?
बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की .....!!!!!!!!
सुन्दर रचना.
आभार,
ReplyDeleteवाह .... बहुत खूब कहा है ..
ReplyDeleteये प्रेम जल ही तो ....
ReplyDeleteस्मरण है मेरा ...
घूंघट है तुम्हारा .....
आवरण है मन का ..
आचरण है तन का ...
आंकलन जीवन का ...
गति है ..
सद्गति है ..
दुर्गति कदापि नहीं ...
स्त्रोत है ..
बहाव है फैलाव है ..
रुकाव ..अड़चन ...कभी भी नहीं ...!!
क्षुधा मिटाता ये जल ..
झांको इसमें तो ..
पाओ ....
..
आदरणीया अनुपमा दी, ...बड़े दिन बाद इस मधुर और मनोहारी संगीत में लौट पाया हूँ...आजकल सबने एक तरफ से तंग करने कि कसम खायी है दीदी....जिंदगी ने भी क्या करूं..!! ऐसे में आपकी रचनाओं कि ओर मुड़ना...सुखद अहसास से कम नही है...मुझे क्षमा करते रहना दीदी और अकेला मत छोड़ना कभी !
नदियों को हमने इतना प्रदूषित कर दिया है कि अब पनघट पर जाना सचमुच बहुत कठिन हो गया है, सुंदर भावों से सजी प्रभु स्मरण कराती प्रस्तुति !
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteचिर परिचित
ReplyDeleteस्मित मुस्कान..
अधरों पर धरे .... ..
धरा पर हरियाली सी ..छटा बिखेरते अपनी..
हरित जाज्वल्यमान करते उसे ...
दिखाते हो अपना रूप ..
नित्य ही तुम सबको ....
फिर मुझे बुलाते हो ....दू ....र..कहीं ...!!
और दुगुने उत्साह से ...
तीव्र आवेग से ...
चलने लगती हूँ मैं ...
तुम्हारे निशान ढूंढते हुए ...
तेज़ कदमताल करते हुए ..
नदी की धारा सी ...!!!!
Wah Anupama ji..kya likha hai aapne...awak hun...aapki soch aur rachnadharmita ko namaskar.
aapki ek post marm ka behdd mere blog par show hoti hai par use mai aapke blog par nahi padh paa raha hu'
ReplyDeletesunsar ati sundar
ReplyDeleteजल-सजलता है छलकती शब्द बन कर.
ReplyDeleteतब कहीं बहते सलिल सी ,
मुक्त-छंदा , मृदु - मरंदा ,
अमृत - कविता बह निकलती ..
बहुत सुन्दर .. उपदेश भी मधुर ..
कान्तासम्मिततयोपदेश युजे -
आचार्य मम्मट की परिभाषा का उदाहरण है ये कविता ..
गति है ..
ReplyDeleteसद्गति है ..
दुर्गति कदापि नहीं ...
स्त्रोत है ..
बहाव है फैलाव है ..
रुकाव ..अड़चन ...कभी भी नहीं ...!!
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति ,लाजवाब रचना....
पर्यावावरण के प्रति आपकी चिंता जायज़ है, उसका विनाश करके हम अपना ही विनाश कर रहे हैं, यह बात कब आएगी समझ में हमारे?
ReplyDeleteआप सभी की प्रतिक्रियाएं क्रिया से जोडती हैं मुझे ...
ReplyDeleteलगता है ..कुछ नया पढू ..कुछ नया लिखूं ...कुछ नया बाटूँ.....ये नया आवरण बहुत सुखमय है ...!!
आप सभी का आभार ....!!
आते रहें ..पढ़ते रहें और ..टिपण्णी द्वारा ये छोटा सा सुख देते रहें ...!!
वंदना जी आपका बहुत बहुत आभार ..अपने मेरी रचना तीताला पर ली.
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत सुन्दर ! पूर्णत: अभिभूत हूँ इस रचना से ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteOhh Di! Kahaan le gayeen aaj !
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. आपकी चिंता जायज़ है. आज गंगा और यमुना गंदे नाले-सा जीवन गुजार रही हैं. नदी के अस्तित्व की चिंता जरुरी है.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना, बधाई.