15 January, 2012

क्या यही प्रेम है प्रभु ......?


एक पल को रूकती है चिड़िया ...
वृक्ष की डाल पर ..
कुछ विश्रांति चाहती है ...
सुस्ता कर थोड़ा  ...
अगले ही पल ...
फुर्र ररर से उड़ जाती है ...
आँख से ओझल हो जाती है ....
एक क्षण के भाव मेरे ...
आते हैं ...
रुकते हैं ...
शब्द  दे जाते हैं ...
अगले ही पल ..
फुर रर  से उड़ जाते हैं ...


एक पल की कविता बनती है ...
आती है ..
रूकती है.....
कुछ देती है  मुझे ....
उंगली थाम ...
फिर कुछ जमने सी लगती है ...
सतत ...कुछ जुड़ने सा लगता   है ...
मन कुछ बुनने सा  लगता   है ...
अरे .....सृजन की परिकल्पना लिए ...
नीड़ का सपना लिए ...
अब तो  यह चिड़िया घर आने लगी है ..
 रोज़ आने लगी है ...
पीछे अलमारी के ऊपर
कुछ सूखे घास का कचरा लाने लगी है ...
सफाई कर-कर के मैं परेशान ....
बिचारी चिड़िया भी हैरान ....
सोचती है ....
''कविता लिखतीं हैं ....
भाव पढ़ लेतीं हैं .....
इन्हें क्यों मेरे भाव समझ नहीं आते ....?
इन्हें क्या मेरा प्रेम समझ नहीं आता ...?''
किन्तु ...मैं भी सफाई पसंद..
धुन की पक्की ....
बन नहीं पाया वह घोंसला मेरे घर के अन्दर ....!!
मैं समझ नहीं पाई थी भाव चिड़िया के ...
निष्ठुर मन मेरा जीत गया ...!!
अंततः ...ज़िद छोड़ देती है चिड़िया .. ...
प्रेम जो करती है ...मुझसे  ...
और अपनी परिकल्पना   से ...
अब देखती हूँ ......
पीछे बगीचे में
हारसिंगार के पेड़ पर .. एक नीड़ बनाने लगी   है ....
ओह ....अब ध्यान से देखती हूँ ....
चिड़िया-चिड़वे का कर्तव्यनिष्ठ  प्रेम ....
नन्हें नन्हें बच्चों का कलरव ...
मन मोह लेता है मेरा ...
हार के हार नहीं मानी थी चिड़िया ....
उसकी इस प्रबल  जिजीविषा के आगे मैं हार गयी .......
निष्ठुर मन ..मोम सा बन ..
चिड़िया की आस्था देख ...
 पिघल ही गया ...
अब रोज़ देखती हूँ चिड़िया को ......
कितना देती है मुझे .....
भर देती है झोली मेरी ...
अनमोल  से भावों से ......
जुड़ सी गयी हूँ इस चिड़िया से ...
क्या यही प्रेम है प्रभु ......?
क्या इसी भाव से उपजती है कविता ....?
क्या इसी को जीवन कहते हैं ...?


38 comments:

  1. बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|

    ReplyDelete
  2. बिम्‍बों में भावों को अच्‍छा पिरोया है, सुन्‍दर प्रयास.

    ReplyDelete
  3. एक पल की कविता बनती है ...
    आती है ..
    रूकती है.....
    कुछ देती है मुझे ....
    उंगली थाम ...
    फिर कुछ जमने सी लगती है ...

    एक सार्थक और विविध भावों से भरी रचना ....

    ReplyDelete
  4. bahut hi sarthak rachna............

    ReplyDelete
  5. हाँ ! यही प्रेम है, प्रेम ही जीवन है..खूबसूरत अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  6. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

    ReplyDelete
  7. अरे .....सृजन की परिकल्पना लिए ...
    नीड़ का सपना लिए ...
    अब तो यह चिड़िया घर आने लगी है ..
    रोज़ आने लगी है ...
    पीछे अलमारी के ऊपर
    कुछ सूखे घास का कचरा लाने लगी है ...
    सफाई कर-कर के मैं परेशान ....
    बिचारी चिड़िया भी हैरान ....
    सोचती है ....
    ''कविता लिखतीं हैं ....
    भाव पढ़ लेतीं हैं .....
    इन्हें क्यों मेरे भाव समझ नहीं आते ....?
    इन्हें क्या मेरा प्रेम समझ नहीं आता ...?.... कल्पना - परिकल्पना का अंत नहीं ... चिड़िया की भाषा भी समझ में आती है . मन ही चिड़िया बन सुनता है, कहता है . मैं अभिभूत हो गई

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर...
    चिड़िया भी बड़भागी है...
    प्रेम भी पा गयी और इतनी सुन्दर रचना का माध्यम/कारण भी बनी..

    ReplyDelete
  9. बहुत ही भाव पूर्ण सार्थक सुंदर रचना,बेमिशाल अभिव्यक्ति अच्छी लगी!!!!!बहुत खूब अनुपमा जी,
    new post--काव्यान्जलि --हमदर्द-

    ReplyDelete
  10. एक क्षण के भाव मेरे ...
    आते हैं ...
    रुकते हैं ...
    शब्द दे जाते हैं ...
    अगले ही पल ..
    फुर रर से उड़ जाते हैं ...

    बहुत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति,अच्छी प्रस्तुति

    vikram7: जिन्दगी एक .......

    ReplyDelete
  11. बहते भाव शब्दों का स्थायी सहारा चाहते हैं..

    बड़ी सी सुन्दर कविता..

    ReplyDelete
  12. प्रेमिल भावों से समृद्ध कविता बहुत ही अच्छी लगी।

    ReplyDelete
  13. एक पल सृजन के लिए बहुत होता है...:)

    ReplyDelete
  14. one moment of creativity... that encompasses all!
    beautiful poem!

    ReplyDelete
  15. अरे .....सृजन की परिकल्पना लिए ...
    नीड़ का सपना लिए ...
    अब तो यह चिड़िया घर आने लगी है ..
    रोज़ आने लगी है ...
    पीछे अलमारी के ऊपर
    कुछ सूखे घास का कचरा लाने लगी है ...
    सफाई कर-कर के मैं परेशान ....
    बिचारी चिड़िया भी हैरान ....
    सोचती है ....
    ''कविता लिखतीं हैं ....
    भाव पढ़ लेतीं हैं .....
    मन को छूते भाव ..बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
  16. भाव की आँखों से देखने पर ही अनाहत की झलक मिलती है जिससे पल-प्रतिपल बरसता प्रेम हमें भिगोये रखता है .दृश्य-अदृश्य के बीच सेतु .... कही-अनकही कवितायें...

    ReplyDelete
  17. चिड़िया हार कर भी जीत गयी...सचमुच पक्षी हमें जीवन दिखाते हैं, जीना सिखाते हैं...और अपने सौंदर्य से उस परम पिता की याद दिलाते हैं...आभार!

    ReplyDelete
  18. agar aapka harday achcha hai to ek chhoti si cheej bhi aapko aakarshit kar legi aapka man moh legi jeevan ka saar samjha degi.
    bahut komal ehsaas se paripoorn rachna.

    ReplyDelete
  19. bhav bhini post hae anupmaa ji .

    ReplyDelete
  20. जुड़ सी गयी हूँ इस चिड़िया से ...
    क्या यही प्रेम है प्रभु ......?
    क्या इसी भाव से उपजती है कविता ....?
    क्या इसी को जीवन कहते हैं ...?
    kya likhu ........? bs ....anmol kriti .

    ReplyDelete
  21. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना ! बढ़िया लगा!

    ReplyDelete
  22. आपके हर पोस्ट नवीन भावों से भरे रहते हैं । पोस्ट पर आना सार्थक हुआ। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  23. कल 18/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, जिन्‍दगी की बातें ... !

    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  24. प्राकृति के कण कण में प्रेम व्याप्त है ... जीव और पेड़ पौधे सभी उसी का रूप हैं ...

    ReplyDelete
  25. हार के हार नहीं मानी थी चिड़िया ....
    उसकी इस प्रबल जिजीविषा के आगे मैं हार गयी .......
    निष्ठुर मन ..मोम सा बन ..
    चिड़िया की आस्था देख ...
    पिघल ही गया ...
    nice expression

    ReplyDelete
  26. अब रोज़ देखती हूँ चिड़िया को ......
    कितना देती है मुझे .....
    भर देती है झोली मेरी ...
    अनमोल से भावों से ......
    जुड़ सी गयी हूँ इस चिड़िया से ...
    क्या यही प्रेम है प्रभु ......?

    जी हाँ शायद यही प्रेम है।

    मन को मोहती बेहतरीन कविता।

    सादर

    ReplyDelete
  27. चिड़िया के भावों से आखिर मन बंध ही गया .. बहुत सुन्दर बिम्ब प्रयोग किया है ..प्रेम की अनुभूति को समझाने के लिए .. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  28. प्रेम एक मन का भाव है जिसमे आस्था और विश्वास होना बहुत ज़रूरी है |अविश्वास या आस्था में कमी हो ...प्रेम धूमिल हो जाता है |प्रेम ,आस्था और विश्वास गुंधे हैं एक छोटी की तरह जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता
    यही भाव से मन के भाव आपने पढ़े और पसंद किये ...आभार ...!

    ReplyDelete
  29. "जुड़ सी गयी हूँ इस चिड़िया से ...
    क्या यही प्रेम है प्रभु ......?"
    khusburat rachna, bhaw ki prastuti shaandar hai...
    Visit my blog

    ReplyDelete
  30. अरे .....सृजन की परिकल्पना लिए ...
    नीड़ का सपना लिए ...
    अब तो यह चिड़िया घर आने लगी है ..
    रोज़ आने लगी है ...

    जब भी हम अतिक्रमण करते हैं आपकी उस चिड़िया कि तरह ...हमें बाहर जाना ही होता है किसी को सौभाग्य से हरसिंगार कि डाली पनाह दे भी देती है ..और कुछ ....श्रम!

    ReplyDelete
  31. चिड़िया का आना अतिक्रमण नहीं कहलायेगा ....क्योंकि चिड़िया अपनी सीमा नहीं लांघ रही है वो तो ढूंढ ही रही है जगह घोंसला बनाने के लिए ....ये तो मेरी ही गलती है की मैंने अपने आँगन के दरवाज़े खुले रखे .....और उसकी आस्था नहीं समझ पाई ...
    यहाँ आस्था का भाव समझना बहुत ज़रूरी है .....

    ReplyDelete
  32. आप सभी ने इस चिड़िया के भाव कुछ कुछ समझे ...मेरे लिए हर्ष की बात है ...

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!