08 May, 2012

अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी ........!!

गुलमोहर की छाँव

दूर ..सुदूर पहाड़ी पर ...
मेरा मन मंदिर ...
दिखता है तुम्हारा 
आलीशान  मंदिर .....
चढ़ रही हूँ ....
लीन तुम में ...
एकाग्रचित्त ....!!
सुरों की माला जपती ...
कितने सुंदर रस्ते से -
गुज़र रही हूँ मैं .......!!
राह पर भरे   हुए ..
झरे हुए  गुलमोहर....!!
बन बन भरे हुए लाल-लाल  ...
जलते हुए ..पलाश ...!!


अमलतास के झूले ....मन झूम-झूम झूले ...
झूलते पीले-पीले अमलतास  ........
चमेली की महक से ..
भरता जाता मन ..!!
गुनगुनाता ...
खुशबू  लुटाता ..
सुरों का सम्मोहन ......!!
पराग के अनुराग  से 
लदा -लदा  हरसिंगार ...
हरसिंगार .....प्रभु चरणों में ...
भर-भर  अंजुरी उड़ाती  चलूँ ...
मन  बसंत   बहार ....!!
प्रभु ...तुम हो साथ मेरे ...
और चल रही है ...
अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी ....!!




अथक परिश्रम ....
टप टप गिरतीं हैं पसीने की बूँदें ....
कैसा आश्चर्य है ...
जितना चलती हूँ .......
हलकी होती जाती हूँ ...
ऊर्जा बढ़ती जाती है ...
जिजीविषा मुस्काती जाती है ...
उड़ने सी लगती हूँ ....
झूमने सी लगती हूँ ...
खिलता जाता है ...कोमल ..
मन का नील  कमल ...!!
खिलता सरोज .....माँ  जैसा ...!!
प्रभु ...तुम हो साथ मेरे ...
और चल रही है ...
अनंत..अंतहीन यात्रा मेरी ....!!


इस अनुनेह में ....
अनुपम  अनुभूति है ....
शंख नाद सी ...
अनुगूंज उस अनुनाद की ..
सतत ही  वो नाद सुनना ....!
मेरा मन  भी गूंजता है ...
तानपुरे की उसी नाद से ....!
नित-नित मेरा ह्रदय झंकृत करता हुआ ...!!
सुर अलंकृत करता हुआ ....!!
प्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...
चल रही है ...
अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!


जीवन  की इस धूप-छाँव में ...
जीवन में धूप भी..छाँव भी ....
अनेक रूप में ,
मंदिर की घंटी,
चर्च की चाइम या,
मस्जिद  की अजान हो-
आँख बंद करके जब सुनती हूँ,
सुरों में छुपे सेदिखतेहो..
प्रभु हर पल मेरे साथ ,ब्रह्म स्वरुप -नाद में,
अनेकों रागों के प्रारूप में,
स्तब्ध हूँ ...चाहे चंद्रकौंस हो  ...या गोरख कल्याण,तृप्त कर देते हो मुझे ....
प्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...चल रही है ..अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!




*चंन्द्रकौंस और गोरख कल्याण -रागों के नाम हैं ....

43 comments:

  1. 'प्रभु ...तुम हो साथ मेरे ...
    और चल रही है ...
    अनंत..अंतहीन यात्रा मेरी ....!!'
    ये दिव्य अनुभूति हो जाए फिर तो राहें स्वमेव सुन्दर हो जाती है!
    बेहद सुन्दर प्रस्तुति!

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  2. जीवन की इस धूप-छाँव में ...
    जीवन में धूप भी..छाँव भी ....
    अनेक रूप में ...
    मंदिर की घंटी हो ...
    चर्च की चाइम हो या ....
    मस्जिद की अजान हो ...
    आँख बंद करके जब सुनती हूँ ...
    सुरों में छुपे छुपे से दिखते हो तुम ....
    हर पल मेरे साथ ...

    बहुत ही अच्छी प्रस्तुति,....

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  3. नित-नित मेरा ह्रदय झंकृत करता हुआ ...!!
    प्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...
    चल रही है ...
    अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी ..

    बहुत सुंदर प्रस्तुति,....

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  4. सुन्दर शब्द चित्र.

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  5. सच्ची!!!
    कोई सुरीला सा ...मधुर सा....प्यारा सा साथ हो तो ये अनंत यात्रा कैसी सुगम सरल हो जाती है.......

    सुंदर भाव...

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  6. प्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...
    चल रही है ...
    अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!
    अनुपमा जी, पढ़ते पढ़ते मन जैसे कहीं खो जाता है और रह जाता है यही स्वर साथ, कि कोई है जो सदा साथ चल रहा है.. बहुत सुंदर रचना...

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  7. ईश्वर के प्रति समर्पण का यह भाव देखते ही बनता है। अनुपमा जी, आपकी इस कविता का मुरीद हो गया ! थोडा फोटो व्यवस्थित नहीं हो पाई. खैर ! बहुत बहुत आभार !!

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    1. बहुत आभार सुबीर जी ....!!
      दुबारा से फोटो व्यवस्थित करने की कोशिश तो की है ...!!
      कुछ और भी जोड़ दिए हैं |
      आभार आपके विचारों के लिए |इसी प्रकार सुझाव देते रहें ....!!

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  8. ईश्वर के प्रति समर्पण का यह भाव देखते ही बनता है। अनुपमा जी, आपकी इस कविता का मुरीद हो गया ! थोडा फोटो व्यवस्थित नहीं हो पाई. खैर ! बहुत बहुत आभार !!

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  9. ओह,
    क्या कहूं, बहुत सुंदर रचना.
    ऐसा लग रहा है कि ईश्वर से ही बात करते करते लिखी जा रही है ये रचना।

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  10. कल 09/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. बहुत आभार यशवंत ....हलचल पर मेरी रचना लेने के लिए ...!!

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  11. वाह: बहुत ही खुबसूरत यात्रा..बहुत मधुर भाव से पल्लवित रचना.. बधाई अनुपमा जी....

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  12. जीवन की धुप छाँव में अठखेलियाँ कर रही है ,आज आपकी पोस्ट .बधाई.

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  13. :)- जी हाँ संगीता जी बिलकुल सही लिखा है | सुरों का साथ -चंचल नार करे अठखेली -जैसा ही होता है .....!!तभी शायद शास्त्रीय संगीत की बंदिशों में अठखेली शब्द का बहुत प्रयोग होता है |आप शास्त्रीय संगीत से वाबस्ता हैं ...!!
    बहुत आभार ...स्नेह बनाये रखें ...

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  14. प्रकृति का सुंदर वर्णन ... सुरों को बांधते हुये ईश्वर के प्रति समर्पित बहुत सुंदर रचना

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  15. अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!तेरी, उसकी .... सारी सृष्टि का साहचर्य , हर्ष, उल्लास उदासी ... सबकुछ अनुभूत , सार - प्रभु

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  16. रंगों और फूलों में वर्णित जीवन की यात्रा...

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  17. शब्दों का नाद इश्वर तक जरुर पंहुचा होगा , पुष्प गुच्छ की तरह सुगन्धित और सुकुनप्रद पंक्तियाँ

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  18. बेहतरीन शाब्दिक अलंकरण लिए रचना .....

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  19. आपकी कविता ने प्रकृति के कण-कण में प्रभु की उपस्थिति को रेखांकित किया है और उसके होने का प्रमाण प्रस्तुत किया है.. जितने सुन्दर रंग बिखेरे हैं आपने उनसे यही प्रतीत होता है कि परमात्मा का दिव्य स्वरुप वास्तव में इससे कहीं अधिक सुन्दर होगा!! सुखद अनुभूति!!

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  20. जब यात्रा संगीत के सुरों पर हों तो अंतहीन होनी ही है क्यों कि अब पथिक का ब्रह्म से साक्षात्कार जो होने जा रहा है।

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  21. प्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...
    चल रही है ...
    अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!
    बहुत ही बढिया भाव ।

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  22. मैंने यह कविता पढी थी और कमेन्ट भी किया था -कृपया स्पैंम चेक कर लें ..
    यह एक उजास और उछाह की यात्रा है .....आह्लादित और उमंग भरी आध्यात्मिक यात्रा सरीखी ..कविता बहुत सुन्दर बन पडी है

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    1. आपका कमेन्ट स्वरोज सुर मंदिर पर चला गया था ...!!बहुत आभार रचना पसंद करने के लिए ...!!

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  23. सुन्दर पुष्पों के साथ शानदार पोस्ट।

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  24. सुन्दर चित्र और भावाभिव्यक्ति, बधाई.

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  25. मेरी युगों युगों की थकान ....
    मिटती जाती है ....
    ऊर्जा बढ़ती जाती है ...
    जिजीविषा मुस्काती जाती है ...
    नयी ऊर्जा का संचार करती अनमोल भावाभिव्यक्ति अनुपमा जी - वाह
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  26. बहुत ख़ूबसूरत रचना सोच रहा हूं ...किसकी तारीफ करूं सुंदर कविता की ...आपकी सोच की ...या लेखनी की जिनसे ये शब्‍द जन्‍म लेते हैं ...बेमिसाल प्रस्‍तुति ..!

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  27. धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए

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  28. इतनी भावपूर्ण रचना पढ़ कर मन आल्हादित और हल्का हो गया है ! इच्छा हो रही है कि मैं भी किसी रूप में इस बेहद सुरीली अनंत अंतहीन यात्रा पर आपकी हमराही बन जाऊँ, चाहे किसी ख्याल के रूप में ही सही, और उन सभी दिव्य अनुभूतियों की भागीदार बन जाऊँ जो आपको इस यात्रा में हो रही हैं ! भाव, शिल्प, अभिव्यक्ति हर दृष्टिकोण से आपकी यह रचना अनुपम है ! बधाई स्वीकार करें !

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  29. अंतहीन यात्रा भी छोटा है जब प्रभु तक जाना है....बस ...भाव में उतराती कृति के लिए बधाई..

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  30. आँख बंद करके जब सुनती हूँ,
    सुरों में छुपे सेदिखतेहो..
    प्रभु हर पल मेरे साथ ,ब्रह्म स्वरुप -नाद में,
    this line is dedicated to your great thought
    रश्क आता है तेरे रक्श अल्लाह मेरे,
    साज कहीं और साजिन्दे न नज़र आया घुँघरू ..

    हमेशा याद रखें
    ज्यों ज्यों डूबें श्याम रंग त्यों त्यों उज्वल होय
    आपकी यात्रा
    सर्वे भवन्तु सुखिन.
    सर्वे सन्तु निरामया
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
    मा कश्चित् दुःख भाग भवेत का भाव जगाती है

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  31. ईश्वर भक्ति में लीन कृति..बेजोड लेखनी

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  32. आप सभी के विचारों की इस अमूल्य,अमृतमयी वर्षा के लिए ह्रदय से आभार .....!!

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  33. वाह अनुजी.....मेरी भी यात्रा संपन्न हुई ....आपके साथ साथ मैंने भी वह सब कुछ अनुभव किया ....यही होता है सत पुरुषों के सहवास का फल......!!!!!

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  34. सभी रचनाएँ कमाल की है..अनमोल है. प्रकृति और इश्वर के प्रति अद्भुत अनुराग दर्शाती हुई.

    धन्य हुआ.

    आभार.

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    1. बहुत आभार |आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी से आह्लादित हुआ मन |आगे भी आते रहें और अपने विचारों से अवगत करते रहें ....!
      पुनः आभार संतोष जी .

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  35. कोई शब्द नही है । मरे पोस्ट पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  36. सृष्टि में जो कुछ है,प्रभु का ही है। यह स्वीकार भाव आते ही जीवन-यात्रा सहज हो जाती है।

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  37. स्फूर्ति भरती रचना.... सुंदर महकता जीवन दर्शन....
    सादर

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!