26 June, 2012

बूंद बूंद स्वाति बरस... .. क्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!

Pied cuckoo...



चातक की प्यास लिये ...
साध ..रे मन साध ....साध ...!!
स्वाति की आस लिये ...
ताक रहा है आसमान ...!!

रे मन ..कोमल रिशब (रे)...साध रहा ...
देख देख घनघोर  घटा ....
पावन मधु रस  तरस रहा ...


आरत  सी भावना  लिये ...
अनुराग की साधना लिये  .....
स्वाति...स्वाति ....अब बरसो ...भी ..
श्रुति दीप  अर्चन लिये ...
कुछ बह सा  रहा है मन ...
हृदय के तार झंकृत कर ..
अनहद नाद सा ...
चातक की प्यास लिये ...
स्वाति की आस लिये ...
ताक रहा है आसमान ...



कुछ कह सा रहा है मन ....!!

अब करता  मनुहार ...
री बूंद बरस जा मोरे  मन द्वार ..
गंगा ना जानुँ  ...जमुना ना जानुँ ...
नित घट-घट  बिचरन नाहिं जानुँ ...
रे निर्मल जल .....
प्रेम रस ....
बूंद बूंद स्वाति बरस.....
हृद सील  तोष  पाउँ ...
क्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
मैं तर जाऊँ ...!!

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प्रभु लीला का एक अद्भुत उदाहरण .....

चातक का स्वर रिशब(रे) होता है ऐसा संगीत शास्त्रों मे कहा गया है |और चतक सिर्फ वर्षा का जल पी कर ही अपनी प्यास बुझाता है अन्य पानी पीता  ही नहीं |पूरे साल वर्षा की बाट जोहता है ....!!स्वाति नक्षत्र मे जब वर्षा पड़ती है ....चोंच  खोल वही पानी पीता है ........बस मनो अमृत ही गृहण करता  है ....

25 June, 2012

हवन का ...प्रयोजन.....!!

मिट्टी के हवन कुंड में....
समिधा एकत्रित ...
की अग्नि प्रज्ज्वलित ....
ॐ का उच्चारण किया ...
अग्निदेव को समर्पित ...
हवि की  आहुती ...
किया काष्ठ की स्रुवा से ...
शुद्ध घी अर्पण ...
मन प्रसन्न ....
धू धू जल उठी अग्नि ...
अहा ...प्रसन्न हुए अग्निदेव ....!!
 
हवन किया ....
हाँ निश्चय  ही ....
प्रायोजित हवन किया ....!!
किंतु फिर भी ...
प्रयोजन तो जाना नहीं-
हवन का ....!!

निष्ठुर  मन ..
निष्ठा ना जाने ...
क्या था प्रयोजन...
ये भी ना माने ...!!
ॐ कहते कहते ध्यान करें .. अहम .....
अब अहम से हम ...
अहम से हटा कर "अ"
अ यानि  अहंकार को ...
अब बनायें 'हम' ....
इस प्रज्ज्वलित अग्नि मे ....
ॐ  कहते कहते ...
चलो करें...
अपने-अपने ....
अहंकार का दाह संस्कार  हम ...!!

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*समिधा -हवन मे इस्तेमाल की जाने वली सूखी लकड़ी  
*हवि-हवन सामग्री
*काष्ठ -लकड़ी
*स्रुवा -वह चम्मच-नुमा बर्तन जिसमें (घी इत्यादि) हवन-सामग्री भरकर हवन-कुंड में आहुति दी जाती है.


23 June, 2012

मैं किस बिध तुमको पाऊँ प्रभु..?

मैं किस बिध तुमको  पाऊँ प्रभु..?

अब अखियन  नीर बहाऊँ प्रभु ...
पग धरो श्याम मत बेर करो ...
मन मंदरवा   सुधि-छाप धरो..
अब  अंसुअन पांव पखारूँ प्रभु ...

मैं किस बिध तुमको  पाऊँ प्रभु..?

मन का इकतारा बाज रहा ..
सुर बिरहा  आकुल साज रहा ...

तुम कौन गली ....ऋतु बीत चली ....!
मेरे हिरदय मधु  प्रीत पली ...
तुम कौन गली ....ऋतु बीत चली ...
निज  प्राण पखेरू निकसत हैं ...
मन सुमिरत वंदन गावत है ...
तरसत मन  अब हरि दरसन दो ....
हरो पीर मेरी ...तर जाऊँ प्रभु ...!!

मैं किस बिध तुमको  पाऊँ प्रभु..?

19 June, 2012

हर प्रात ...कहते हुए ...शुभप्रभात ...!!

इस घने विपिन मे ...
स्मित ...स्वर्णिम विहान सी ...
शुभप्रभात सी ...
एक आकृति ...
सप्त  स्वर ...
नवल-रस परिपूर्ण  कुंभ सी ...
भर-भर ..छलकाती ...
उड़ेलती मधु-रस ...
जीवन सरस..
प्रभास सी ..
आपकी आभा हम पर ..
हम वृक्षों पर ...
बरसती रहे ...
किरणों की सरिता
 सुरमई ......अनुरागमई ...प्रवाहमई .....
यूं ही बहती रहे ....बहती रहे ...बहती रहे .....!!
हर प्रात ...
अलंकृत... विभूषित  करती हुई ......
कहते हुए ...
शुभप्रभात ...हे प्रभु ....!!


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विपिन-जंगल
स्मित-मुस्कान
विहान-सुबह

15 June, 2012

कारे मतवारे घुँघरारे बदरवा ....!

धरा पर छाते हैं ...मन को लुभाते हैं ..
घूम घूम घिरते हैं ...मतवारे   बदरवा ...
कैसे उड़ते है ......कारे बदरवा ....
कारे मतवारे घुँघरारे बदरवा .. ...... .....!!

उड़ते हवा के संग-संग ..
उलझी-उलझी लटों जैसे...
कुछ   उलझे-उलझे  .......
उड़ते--उड़ते ...लट उलझाते ...
मन छू  जाते ...!!

उमड़ते  ..घुमड़ते ....
जैसे नयना नीर भरे ...
भर-भर नीर भर लाते ..
कारे मतवारे कजरारे बदरवा ....!!

अखियन से मन  तक उतराते ...
नैनन बन जाते  कजरवा ...
मन में बजाते कहरवा ...
जीवन से सुर-ताल मिलाते ...
कुछ कह जाते ...कुछ सुन जाते ...
कुछ दे जाते ...कुछ ले जाते ..
भरमाते ...उड़ जाते ...
कारे मतवारे कजरारे बदरवा ....!!


छाये मोरे देस  आज ....कारे कारे  बदरवा ....!
बरसन   आये मोरे देस आज  ...
कारे कारे  बदरवा ....
कारे मतवारे घुँघरारे बदरवा ....!

10 June, 2012

मेघ घटाएं छाई गगन में .......!!

ग्रीष्म की भीषण तपन से ,
भले ही जलता रहा जिया ...!
हे भुवन पति ...
जब तुमने ही दी,
ग्रीष्म की झुलसाती पीड़ा....
धरा हूँ ...धरित्री बन मैंने धैर्य धारण किया ...!


मेघ घटाएं छाई गगन में ...
घनश्याम ....
श्याम घन सी ....
घन घन घोर घटा सी ... ..
मेरे मन की पीड़ा ....
अबोली निर्झर सी ...
अंसुअन की लीला ....
तुम कैसे समझे ....?

घिर घिर कर चहुँ ओर ....
छा गए घनघोर ....
देखती हूँ आकाश जब ..
दिखती है ..
स्मित आकृति तुम्हारी ..
जैसे कहती हो ..  मुझसे .....
''मैंने भर  दी  है ...
तुमसे लेकर ....
इन घने  मेघों  में  ...
तुम्हारी सघन   पीड़ा ......
भेजा है अपने मन मयूर को तुम तक ....
लिखकर पाती ..जीवन के रंगों की ...
भरकर उसके पंखों में .....
.तुम्हीं से  तो जीवन के रंग हैं .
ढूंढ लोगी न मुझे ...?''

आहा .... ...
मिल गया तुम्हारा संदेसा ...
बरस रहे हो तुम ....
भीग रही हूँ मैं ....
मोर की पियु पियु  ..
आह्लादित है चंचल मन ...
ये मयूर का नृत्य देख .....
झूम उठा है ....
भीगे मौसम सा भीगा-भीगा ...
चहकता ...खिलखिलाता  बावरा  मन  ....!!!!


 ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
झुलसती या भीगती ...
कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!

05 June, 2012

बांस की टोकरी .... ...!!

एकत्रित कर ..
स्मृति के सुमधुर क्षणों को ...
बीन- बीन बटोर लायी हूँ ...
सूखे सूखे पुष्पों को ..
तोड़-तोड़ पंखुड़ी......
लबालब भर ली ....
बांस की टोकरी...!!

यादों के सूखे फूल...
और ये लबालब भरी ...
बांस की टोकरी ...
अहा ...सुगंध  से भर गया  ...
मन घर आँगन ...!!
और ....
हर्ष से भर गया है जीवन ...

कितनी शक्ति  है ..
इन सूखे हुए पुष्पों में भी ...
सूख कर भी महकाते हैं ....
चितवन ....
चमक जाते हैं नयन ...!!
उठा कर जहाँ भी रख दूँ..
ये बांस की टोकरी .....
खुशबू से भर भर देती है ... ...
मन घर आँगन ....!!