28 August, 2012

ऊषा की ओ स्वर्णिम ललि ......!!




 धनघड़ी  आई .....
ब्रह्ममुहुर्त लाई ....!!
अब शुभ संकेत सी ...
बिखरने  लगी लालिमा ...
ऊषा  की आहट  से ही ...
घुल गई  रात्रि की   कालिमा ...!!

 नतमस्तक  हूँ ...प्रभु द्वार .....!!
वृहद  हस्त हो ...
तुम्हारा प्रभु  हर बार ....!!
इस जीवन में सौभाग्य ही है मेरा ....
ज्ञान के इस अखण्ड मान   सरोवर में ....
प्रभु अर्हणा प्राप्त ...
मैं वो रक्त कमल हूँ ...
प्रत्येक  प्रात निज आभ से ...
चूमती हो   मस्तक मेरा ....
ऊषा की ओ स्वर्णिम ललि ...!!
और सुप्तप्राय सा ...  मैं ...
खोल तंद्रिल चक्षु..
अनुरक्त  हो .....
सुध-बुध खो .....
तत्क्षण  तत्पर जागृत हो...
स्फूर्त हो   उठता हूँ .....
अपनी पंखुड़ियों सी कृति लिये ..
किंजल्क लिए ..
खिलने के लिये ...
सँवरने के लिये ...
बिखरने के लिये .....................................................................................................!

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अर्हणा --सम्मान
अनुरक्त--वशीभूत हो ...
किंजल्क -कमल का पराग

आज सुबह से ही इस कविता को पोस्ट करने की कोशिश कर रही थी .....पता नहीं क्यों पोस्ट ही नहीं हो पा रही थी ।अब अलग पोस्ट बना कर ड़ाल रही हूँ ...आशा है सफलता मिलेगी ...!!

32 comments:

  1. सुंदर भाव,
    अच्छी रचना

    प्रभु अर्हणा प्राप्त ...
    मैं वो रक्त कमल हूँ ...
    प्रत्येक प्रात अपनी आभ से ...
    चूमती हो मेरा माथा ....


    क्या कहने

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  2. सफलता मिल गई......
    .गगन नील ...नीलाम्बर ...!!
    विस्त्रित नीलिमा छाई ..!!
    धनघड़ी ...ब्रह्ममुहुर्त लाई . बहुत सुन्दर भाव..

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  3. भावपूर्ण और ह्रदय स्पर्शी कविता के लिए बधाई...

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  4. Rashmi di ke bahumoolya vichar....


    नतमस्तक हूँ ...प्रभु द्वार .....!! वृहद हस्त हो तुम्हारा ही हर बार ....!! सौभाग्य ही है मेरा .... ज्ञान के इस अखण्ड मान सरोवर में .... प्रभु अर्हणा प्राप्त ... मैं वो रक्त कमल हूँ ... प्रत्येक प्रात अपनी आभ से ... चूमती हो मेरा माथा ... प्रातःकालीन हवा सी भावना
    By रश्मि प्रभा... on ऊषा की ओ स्वर्णिम ललि... ...!! at 12:36 PM

    abhar Rashmi di

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  5. सफलता मिल ही गयी आखिर.....सुन्दर पोस्ट।

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  6. खूबसूरत भाव .....:)))

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  7. स्वर्णिम लाली ने चहुं दिशी उज्वलता भर दी है तो सफलता तो मिलनी ही थी । बहुत सुंदर । कृपया
    विस्त्रित को विस्तृत कर लें ।

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    1. आभार आशा जी त्रुटी सुधार दी है ...

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  8. प्रथम किरण की लाली जैसी..

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  9. http://blog4varta.blogspot.in/2012/08/4_29.html?showComment=1346202162928#c6940351486054473699

    abhar Lalit ji blog varta par meri rachanaa ko liya ...!!

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  10. प्रातः काल की सुंदर वेला, कमल की पंखुडियाँ आँखें खोलती हुई...मन झुक जाता है प्रभु के चरणों में..

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  11. मनभावन कविता।

    सादर

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  12. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 30-08 -2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....देख रहा था व्यग्र प्रवाह .

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  13. सम्वेदनशील और हृदयस्पर्शी कविता के लिए अभिवादन और बधाई

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  14. उषा ,भोर ,स्वर्णिम लाली ...यह सब पढकर लगा कि जैसे जल्दी उठ कर सन राइज देख रहे हों.

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  15. बहुत खूबसूरत भाव ..... शब्द चयन कमाल का है ....

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  16. शब्दचित्र सी लगी यह कविता.. सुंदर

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  17. आपके भाव और तदनुरूप आपकी भाषा दोनों सदैव बेजोड़ होती है दीदी
    मैं वो रक्त कमल हूँ ...
    प्रत्येक प्रात निज आभ से ...
    चूमती हो मस्तक मेरा .

    हर शब्द संग्रहणीय !

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  18. सबसे अलग सी होती हैं आपकी कवितायेँ...कितने सुन्दर और कोमल से शब्दों से कविता करती हैं आप :)

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  19. बहुत सुन्दर........
    हर सुन्दर चीज़ के नखरे होते हैं....सो इस कविता ने भी दिखाए पोस्ट होने में :-)

    सस्नेह
    अनु

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    1. आभार अनु आपने इस अभिव्यक्ति को सुन्दर माना लेकिन कविता जैसी सशक्त ईश्वरीय अभिव्यक्ति अगर नखरा करने लगे तो ईश्वरीय अभिव्यक्त कैसे होगी भला ?मुझे हर अभिव्यक्ति ईश्वर का प्रसाद लगती है इसलिए कविता का दोष नहीं .....कुछ मैं ही अज्ञानी थी सो परेशान हुई .....

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  20. बहुत सुन्दर कमल की कोमलता से भाव संजोये बेहतरीन प्रस्तुति

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  21. और सुप्तप्राय सा मैं ...
    खोल तंद्रिल चक्षु..
    अनुरक्त हो .....
    सुध-बुध खो .....
    तत्क्षण तत्पर जागृत हो...
    मचल उठता हूँ .....
    अपनी पंखुड़ियों सी कृति लिये ..
    किंजल्क लिए ..
    खिलने के लिये ...
    सँवरने के लिये ...
    बिखरने के लिये ..........

    विरल अभिव्यक्ति के साथ अनुपम रचना अनुपमा जी ! बहुत बहुत ही सुन्दर !

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  22. बहुत सुन्दर खुबसूरत अहसासों एवं
    खुबसूरत भावनाओं में लिप्त रचना....
    सुन्दर.....
    :-)

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  23. बहुत सुन्दर खुबसूरत अहसासों एवं
    खुबसूरत भावनाओं में लिप्त रचना....
    सुन्दर.....
    :-)

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  24. ऊषा की ओ स्वर्णिम ललि.....
    ओ चंचला ....
    और सुप्तप्राय सा मैं ...
    खोल तंद्रिल चक्षु..
    अनुरक्त हो .....
    सुध-बुध खो .....
    तत्क्षण तत्पर जागृत हो...
    मचल उठता हूँ .....

    प्रातः काल का अनुपम वर्णन बहुत सुन्दर चित्र , ऐसा लगता है जैसे चुने फुल और श्री चरणों को करें समर्पित .

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  25. इस भावपूर्ण रचना और इसके शिल्प ने मन को हर्षित किया।

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  26. ऊषा की स्वर्णिम ललि ह्रदय को प्रकाशित करती हुई..

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  27. आप सभी का आभार ...इस बहुमूल्य कृति पर अपने विचार देने के लिए ....!!

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  28. बेहतरीन रचना. मेरा आभार स्वीकार करें.
    ~निहार

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!