27 September, 2012

बस तुम ....

                                                                     
मन पर धूप सा रूप ...
छाया सा छाया हुआ ...
सूक्ष्म से विराट तक ...
आदि से अंत तक ...
अनादि से अनंत तक .....
प्रात  से रात तक ..
रात से प्रात तक ...
ओर से छोर तक  .....
धूप से छांव तक ...
छांव से धूप तक ...
गाँव से शहर तक .....
शहर से गाँव तक ...
वही घने वृक्ष  की छाँव सा  ....
एक ठौर ....एक ठिकाना ...
परछाईं सा जो सदा साथ चले ....
साथ साथ उड़े भी ...
हर लम्हा ...हर घड़ी ...हर पल .....
मन के उजाले में ....
मन के अंधेरे में भी ...
जो रक्षा करे ....
बस तुम ....

24 September, 2012

रचना मेरी ,.... ..(हाइकु )



रचना मेरी ,
मनभावन बने ..
वरदान दो ..

रचना मेरी , मनभावन बने .. वरदान दो ..

पवन बहे  ...
जियरा भरमाये ..
मनवा गाये ..



प्रेम   ऐसा  हो ...
जीवन रंग भरे ..
 चढ़ता जाए ..


रंग ऐसे हों ..

खिले हुए सुमन ..
रंगें जीवन ....



दुःख दे गया ..

बैरी पवन झोंखा ..
लट उलझी ...


बहती हवा ..
उलझा गयी लटें ...
जियरा डोले ..

बरस रही ...
सरस  बदरिया .. ..
स्मृतियाँ लिए .. .....


समय संग ...
मन  बहता जाए ..
सहता जाए .. ..

तुम न आये ....
याद अब न जाए ...
किससे  कहूँ  ...?


बैरी मनवा ,
बात न माने मोरी ....
रैन जगाये ...
काहे  बिदेस ..
गए  हो रसिया ..
मन बसिया ..

मन बतियाँ ,
कासे कहूं  आली री...
पिया निर्मोही ...

नैना निहारें  ..

सूनी भई  डगर ...
पिया ना आये ...

निर्मोही संग ,
काहे  नेहा लगाये  .....
क्यों  पछताए ..??

21 September, 2012

लड़ी...बूंदो की ...

लड़ी...बूंदो की ...
झड़ी ..सावन की ...
घड़ी  ....बिरहा की ... 
बात ..मनभावन की ...
रात ...सुधि आवन की .....
सौगात ......... नीर  बहावन की ......!!

17 September, 2012

हृदय के रूप .......(हाइकू)

1-
हृदय  वही  
पिघले मोम जैसा,
पाषाण नहीं । 

2-
मोम-सा मन
आंच मिली ज़रा सी ..
पिघल गया  ।
3-
प्रवाह लिये  
सरिता- सा  हृदय
बहता गया  ।
4-
छाई बादरी 
बरसती  बूंदरी ....
नाचे  मयूर .. ..

5-
मेघ -घटाएँ.
छाई उर -अम्बर
भाव बरसें ।

6-
घटा सावन ,
भिगोये तन मन ..
प्रेम बरसे 

7-
मन मीन क्यों 
आकुल रहती है
लिये पिपासा...?

8-
मेरा हृदय
आस की डोर बँधा.
पतंग बना ।


15 September, 2012

रक्तिम गुड़हल .....!!

हमारी संस्कृति का प्रतीक ....शक्ति की पूजा में जिसका बहुत प्रयोग होता है ...!!
उस रक्तिम गुड़हल पर मेरी रचना ...
जीवन पथ  ...
मग सर्प डगर पर ...
ऋतु  का पुनरावर्तन ...
पुनि भोर की आहट हुई ...
श्लथ पथ पर  जागी किसलय अनुभूति ..

नव पर्ण पल्लवित हुए ...
सुपर्ण आये ..
पुष्पित आभ लाये ..
सुविकसित हरीतिमा सुलभा छाई ..

हरित भरित धरा हुई ...
बीता रीता क्षण ...
पुनि पुनि ध्याऊँ ..
गाऊँ स्वस्ति  स्मरण ...
शुभ शकुन  वरन ...
भयो तमस  स्कंदन ..
मन सरिता में स्पंदन ...
अरुणिमा लालिमा लाई ...
माँ स्मृति मन मुस्काई ...
देख देख हुलासाऊँ रक्तिम गुड़हल ...!!

माँ शक्ति द्वार तुझे चढ़ाऊँ ...
मन  मगन  स्वस्ति  गाऊँ ...
माँ ने झट ..पट खोले ...
हिय मूक पुनि बोले ...
कुंजित गुंजित फुलबगिया में ...
आयो ..भर डाल -डाल लद  छायो .....
सुषमाशाली रक्तिम गुड़हल ....

07 September, 2012

तोरी ये कारी ..कजरारी ....मतवारी .... अंखियाँ ...!!

 झील सी ...गहरी .....
बदरा सी नीर भरी ..
सावन सी भीगी ...
मृग सी चंचल ...
ज्योत्स्ना बरसाए ......
चमकें चम-चम ..
कुछ चमकीली ...
दुति दामिनि ज्यों ..
हृदय धड़काए  ....
मोरे मनवा बहुत लुभाए  ...
अंतस रच बस जाए  ...
ओ री धरा ...
तोरी  ये कारी ..कजरारी ....मतवारी .... अंखियाँ ...!!

वही धरा ....वही मैं ....वही दिन ...वही रात ....!!
सच कहूँ तो मुझे अपनी इस धरा से बड़ा प्रेम है ....!!इसका नयनाभिराम सौंदर्य मेरी आँखों मे बसा है ...!!
किसी तरह इसका सौंदर्य बना रहे ....यही प्रयास हमेशा करती हूँ ...इसी को ताकती हूँ ....इसी से प्रेरणा पाती हूँ और इस पर लिखती भी हूँ ......जैसे धरा से धरा तक ,धरा के इर्द गिर्द ही घूमता है मेरा मन .....

धरा से प्रेम है मेरा जो मुझे ये रात भी काली नगिन सी नहीं ,बल्कि कजरारी अँखियों सी प्रतीत हो रही है ...पर जानती हूँ ...मेरे भाव सदा यही थोड़ी रहेंगे ......


एक दिन   ........कुछ अलग से भाव थे मन के .........
इतनी बरसात और मन लिखता ही चला गया ...लग रहा है दोनों कविता साथ पोस्ट कर दूं ....ऐसा न हो बरसात ख़तम हो जाए ,ऋतु बीत जाए ....और मेरी कविता बिना पोस्ट किये ही रह जाए ...


                                                   क्यूँ रात बरसने आई ...??



हाय री ...
हाय री ...
आई  री ...
छाई  री .. ..
काली घनघोर अंधियरी ........
घिर-घिर आई ...घटा छाई ...

रिमझिम-रिमझिम मेघा बरसे ...
श्याम घनश्याम  की सुध लाई .......
मोरे मन के सागर  से नीर चुरा ...
भर-भर गागर ..झिर झिर झर ..
झर झर झर ...
भई साँझ  बरसने  आई ...

चहुँ ओर  घनघोर घटा छाई ....
कित जाऊं ...कैसे चैन पाऊं .....
श्याम की श्याम छब लाई ...
अब रात  बरसने आयी ....
मोरे मन की गागर से नीर चुरा ...
क्यूँ रात बरसने आयी ...????
हाय री ...मन तरसावन ...
जिया अकुलावन ...
बिनु श्याम ...क्यूँ आई ...?
क्यूँ रात बरसने आई ....??


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आज बरखा पर दोनों अलग भावों की कवितायें एक साथ पोस्ट कर रही हूँ ....!!


04 September, 2012

काग़ज़ की नाव सा ...

नहीं कोई ठाँव सा ....
काग़ज़  की नाव सा ...


बहता हूँ जीवन की नदिया में ...
शनै: शनै: डूबता हुआ  ....
क्षणभंगुर जीवन ...
किंकर क्षणों  मे ही ...
आकण्ठ डूब  जाऊँगा ...
अब तुम पर ..
सब तुम पर है ..
 पार लगाओ ...
मेरा जीवन सुधार दो ....
सँवार दो ..
अरज  बस इतनी ही है ..उद्धार करो ...!!
 हे प्रभु कल्याण करो। .!!