झील सी ...गहरी .....
बदरा सी नीर भरी ..
सावन सी भीगी ...
मृग सी चंचल ...
ज्योत्स्ना बरसाए ......
चमकें चम-चम ..
कुछ चमकीली ...
दुति दामिनि ज्यों ..
हृदय धड़काए ....
मोरे मनवा बहुत लुभाए ...
अंतस रच बस जाए ...
ओ री धरा ...
तोरी ये कारी ..कजरारी ....मतवारी .... अंखियाँ ...!!
वही धरा ....वही मैं ....वही दिन ...वही रात ....!!
सच कहूँ तो मुझे अपनी इस धरा से बड़ा प्रेम है ....!!इसका नयनाभिराम सौंदर्य मेरी आँखों मे बसा है ...!!
किसी तरह इसका सौंदर्य बना रहे ....यही प्रयास हमेशा करती हूँ ...इसी को ताकती हूँ ....इसी से प्रेरणा पाती हूँ और इस पर लिखती भी हूँ ......जैसे धरा से धरा तक ,धरा के इर्द गिर्द ही घूमता है मेरा मन .....
धरा से प्रेम है मेरा जो मुझे ये रात भी काली नगिन सी नहीं ,बल्कि कजरारी अँखियों सी प्रतीत हो रही है ...पर जानती हूँ ...मेरे भाव सदा यही थोड़ी रहेंगे ......
एक दिन ........कुछ अलग से भाव थे मन के .........
इतनी बरसात और मन लिखता ही चला गया ...लग रहा है दोनों कविता साथ पोस्ट कर दूं ....ऐसा न हो बरसात ख़तम हो जाए ,ऋतु बीत जाए ....और मेरी कविता बिना पोस्ट किये ही रह जाए ...
क्यूँ रात बरसने आई ...??
हाय री ...
हाय री ...
आई री ...
छाई री .. ..
काली घनघोर अंधियरी ........
घिर-घिर आई ...घटा छाई ...
रिमझिम-रिमझिम मेघा बरसे ...
श्याम घनश्याम की सुध लाई .......
मोरे मन के सागर से नीर चुरा ...
भर-भर गागर ..झिर झिर झर ..
झर झर झर ...
भई साँझ बरसने आई ...
चहुँ ओर घनघोर घटा छाई ....
कित जाऊं ...कैसे चैन पाऊं .....
श्याम की श्याम छब लाई ...
अब रात बरसने आयी ....
मोरे मन की गागर से नीर चुरा ...
क्यूँ रात बरसने आयी ...????
हाय री ...मन तरसावन ...
जिया अकुलावन ...
बिनु श्याम ...क्यूँ आई ...?
क्यूँ रात बरसने आई ....??
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आज बरखा पर दोनों अलग भावों की कवितायें एक साथ पोस्ट कर रही हूँ ....!!