जाग री...
बीती विभावरी
खिल गए सप्त रंग
उड़ते बन पखेरू
मन पखेरू
विभास के संग
शब्द प्रचय से संचित
मुतियन बुँदियन भीग रहा मन
प्राची का प्रचेतित रंग
बरसे घन
घनन घनन
बन जलतरंग
जीवन उमंग
छाया अद्भुत आनंद !!
अनुपमा त्रिपाठी
'सुकृति '
''ज़िंदगी एक अर्थहीन यात्रा नहीं है ,बल्कि वो अपनी अस्मिता और अस्तित्व को निरंतर महसूस करते रहने का संकल्प है !एक अपराजेय जिजीविषा है !!''
जाग री...
बीती विभावरी
खिल गए सप्त रंग
उड़ते बन पखेरू
मन पखेरू
विभास के संग
शब्द प्रचय से संचित
मुतियन बुँदियन भीग रहा मन
प्राची का प्रचेतित रंग
बरसे घन
घनन घनन
बन जलतरंग
जीवन उमंग
छाया अद्भुत आनंद !!
अनुपमा त्रिपाठी
'सुकृति '
रात्रि की निस्तब्धता में ,
अप्रमित कौमुदी मनोहर ,
लब्ध होते इन पलों में ,सूरज के उगने से
सांझ के आने तक की यात्रा
तुम्हारे मौन रहने से
अनहद तक यूँ ही
कुछ कुछ कहते रहने की यात्रा ,
अनगिन शब्द
कागज़ पर उकेरने की यात्रा
या
मन के भाव
कैनवास पर उभारने की यात्रा ,
मैं से मैं तक ,
अनेक यात्राओं में
रहने ,बिखरने और सिमटने की यात्रा
जीवन ,जीवन के लिए
जीवन ही तो है !!!
''सुकृति ''