प्रकृति में रचा बसा ...!!
हूँ तो भाव भी हैं
किन्तु ,
न रहूँगा तब भी
भावों का अभाव न होगा !!
प्रतिध्वनित होती रहेगी
गूंज मौन की ,
उस हद से परे भी
प्रकृति की नाद में ,
जल की कल कल में
वायु के वेग में
अग्नि की लौ में ,
आकाश के विस्तार में,
धृति के धैर्य में,
रंग में ,बसंत में,
पहुंचेगी मेरी सदा तुम तक
प्रभास तब भी जीवित होगा
प्रेम तब भी जीवित होगा...!!