बांधता है वक़्त सीमा में मुझे ......
भावों की उड़ान तो असीम है ....
अनंत है .....
तो फिर ... क्या है जीवन ....??
चलती हुई सांस .....
अनुभूत होते भाव ....
बहती सी नदी ...
सागर सा विस्तार ....
आज शरद पूनम की रात
झरता हुआ चन्द्र का हृदयामृत ...
या रुका सा मन ....
जो मुसकुराता हुआ ....
खोज लाता है गुलाबी सुबह का एक टुकड़ा .....
अपनी किस्मत सहेज ...
मुट्ठी में भर कर ....!!
भरी दोपहर भी ढूंढ लेता है मन ....
पीपल की छांव ....
वो अडिग अटल विराट वृक्ष के तले ....!!
घड़ी भर बैठ ....
मिल जाता है .........
ज़िंदगी के गरम से एहसासों को आराम ....
फिर कुछ गुनगुनाती हुई .....शाम की ठंडी बयार । ....
और फिर पहुँच जाता है मन .....
अम्मा (दादी)के चूल्हे के पास ...
हाथ से सेंकती हैं अम्मा ....
एक एक फूली फूली रोटी ....
चूल्हे पर ...
बुकनू ...शुद्ध घी और गुड़ ....!!
और माँ भी तो आस पास ही हैं ....
चौका समेटतीं ....!!!!!!
जब माँ की आवाज़ कानो मे गूँजती है .....
परों से भी हल्का मन ....
कब नींद से घिर जाता है ...
पता ही नहीं चलता ....!!
सुबह उठती हूँ फिर .....
जब गुनगुनाता है जीवन ....!!!!!!
यही तो ज़िद है मेरी .....
जब तक जीवन गुनगुनाता नहीं ....
मैं सोती ही रहती हूँ ....!!
देखो तो .....गुनगुनाने लगी है ....
गुलाबी शिशिर सी प्रात की धूप अब ......!!