ईश्वर पर है पूर्ण विश्वास मुझे
मैं पत्थर में भगवान पूजती हूँ ...!!
और लिखती हूँ
.....भज मन हरि हरि ......!!
अहम तुम्हारी सोच है
मेरी कविता नहीं
लिखी हुई बंदिश मेरी
निर्जीव है
कृति मेरी सूर्योदय है या सूर्यास्त है ...??
तुम पढ़ते हो और
फूंकते हो उसमें प्राण
अपनी सुचारू भावनाओं के
सजल श्रद्धा ....प्रखर प्रज्ञा
तुम्हारे सुविचारों से ....सनेह से
स्वयं के उस संवाद से
उपजती है संवेदना
और ये संवेदना ही तो करती है प्रखर
मेरे सभी भावों को
तब ...समझती है
मुस्कुराती है .....!!
जब संवेदना मुस्कुराती है
तब ही तो निखरता है
मेरी कविता का सजल सा
शुभ प्रात सा
उज्जवल सा ...स्वरूप
सूर्योदय सा ......!!
खिला खिला सा ........!!
लिखे हुए शब्द तो मेरे
उस पत्थर की तरह हैं
जिसमें तुम अपनी सोच से
फूंकते हो प्राण
पाषाण सी
मैं तो कुछ भी नहीं
पूज्य तो तुम ही बनाते हो मुझे
मील का पत्थर भी
फिर क्यों ठोकर मारकर
बना देते हो राह पड़ा पत्थर कभी ...?????
सच ही है न
अहम तुम्हारी सोच है
मेरी कविता नहीं
मेरी सोच देती है
मेरी पत्थर सी कविता को तराश
और भर देती है
मेरी पत्थर सी कविता में झरने सी उजास
तुम्हारी सोच देती है -
मेरी पत्थर सी कविता को वजूद ......!!
मेरी कविता नहीं
लिखी हुई बंदिश मेरी
निर्जीव है
कृति मेरी सूर्योदय है या सूर्यास्त है ...??
तुम पढ़ते हो और
फूंकते हो उसमें प्राण
अपनी सुचारू भावनाओं के
सजल श्रद्धा ....प्रखर प्रज्ञा
स्वयं के उस संवाद से
उपजती है संवेदना
और ये संवेदना ही तो करती है प्रखर
मेरे सभी भावों को
तब ...समझती है
मुस्कुराती है .....!!
जब संवेदना मुस्कुराती है
तब ही तो निखरता है
मेरी कविता का सजल सा
शुभ प्रात सा
उज्जवल सा ...स्वरूप
सूर्योदय सा ......!!
खिला खिला सा ........!!
लिखे हुए शब्द तो मेरे
उस पत्थर की तरह हैं
जिसमें तुम अपनी सोच से
फूंकते हो प्राण
पाषाण सी
मैं तो कुछ भी नहीं
पूज्य तो तुम ही बनाते हो मुझे
मील का पत्थर भी
फिर क्यों ठोकर मारकर
बना देते हो राह पड़ा पत्थर कभी ...?????
सच ही है न
अहम तुम्हारी सोच है
मेरी कविता नहीं
मेरी सोच देती है
मेरी पत्थर सी कविता को तराश
और भर देती है
मेरी पत्थर सी कविता में झरने सी उजास
तुम्हारी सोच देती है -
मेरी पत्थर सी कविता को वजूद ......!!
हाँ .......और तब .......तुम्हारी ही सुचारु सोच देती है ...
मेरी कविता को उड़ान भी .........!!
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सोच से जुड़े ....समझ से जुड़े .........!!उसी से बनी हो शायद कोई कविता ......और हमारा आपका क्या रिश्ता है ...???सोच ही तो जोड़ती है हर इंसान को हर इंसान से ........!!!यही तो मानवता है .............!!!!!!!!!