राग के भाव ...मन के भाव कितने विचित्र हैं ...इतनी सुंदर राग बसंत में सुख और दुःख एक साथ कैसे गाया जा सकता है ....?आप खुद भी सोचिये.. .......बहुत हंसने के बाद एक घड़ी शांत बैठने का मन करता ही है
...है न ...!
क्यों सहसा मन के भाव बदल जाते हैं .....??क्या हमारे मन पर सिर्फ हमारा ही नियंत्रण है ....?या सच मे हम
सिर्फ कठपुतली मात्र .........!!ईश्वर ही रखते हैं हमारे मन पर नियंत्रण ....?
चौबीस घंटे ....इन आठों प्रहारों में क्या हम पूरे समय खुश रहते हैं ...?या ....क्या हम पूरे समय दुखी रहते हैं ...????ताज्जुब है .....एक ही दिन में....कभी मन खुश कभी उदास .......सभी भाव जीता है !....!!
मन की बातें निराली ही हैं ....
जितना ही ईश्वर के समीप हम जाते हैं ....उतना ही दुख गहराता है .....ये सोच कर कि प्रभु से कितनी दूर
...........हैं हम ....!!
ऐसा ही तो ज्ञान मार्ग भी है ......
जितना पढ़ते हैं ...उतना ही समझ में आता है की हम कितना कम जानते हैं .....
जब राग का विस्तार लेती हूँ ....तभी स्वयं का विस्तार भी समझ में आता है ....बड़े बड़े गायक जिस राग को गाते चले जाते हैं ,उसे थोड़ी देर ही गा कर लगता है स्वरों को दोहरा ही रही हूँ ....साधक के लिए उसकी कला ही प्रियतम है ....उसका सबकुछ ....!!कला तो एक है ...कभी न खत्म होने वाली .....इसी कला को साधने हेतु निरंतर प्रार्थना की जाती है .....!!और हर कलाकार के अंदर रहता है एक सहज विरह भाव ...
बसंत पर विरह की कविता न हो मन नहीं मानता ...या शायद बसंत चर्चा ही पूर्ण नहीं होती.....!!जितना आनंद बसंत की श्रृंगार रस की कविता पढ़ कर आता है ...उतना ही प्रबल अमिट भाव विरह श्रृंगार भी देता है ....!!और .....
जो छाया हो बसंत चाहूँ ओर ....
मेघ गरज गरज मचा रहे हों शोर ....
फिर सहसा बरस भी जाएँ पुरजोर ....
और..... सुर ही ना सधे .......अविरल अश्रुधारा सी बहती रहे ....बहती रहे .....
हृदय की वेदना का कोई अंत ही नहीं .....
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बिन मौसम जो छाए थे ... बदरा ....
नैनन बरस घुलता था कजरा ....
निर्जन पथ, छाई ऐसी कारी अंधियारी ....
दामिनी प्रकाश पुंज वारती ...!!
मैं सूने नयनन सों.....
पंथ थी बुहारती ...!!
देर तक खड़ी रही ...
दूर तक निहारती ....!!
मौन वेदना मेरी ....
थी तुम्हें पुकारती .......!!
सशक्त वंदना मेरी .....
है तुम्हें पुकारती ....!!
राग बसंत तुम्ही से है ....
बसंत बाहर तुम ही से है ...
हे निर्गुण ...अब बन सगुण ....
नाद मेरी.... स्वर मेरे ...
दरस दो ........ पथ के , जीवन रथ के सारथी .....!!