संस्मरण ....Baroda days ...!!
कहते है -जैसे अपने मन के भाव होते है ...वैसी ही दुनियां दिखती है ....!!.भ्रम क्या होता है ...इसी पर कुछ लिखने का मन हुआ ..!!
बहुत दिनों पहले की बात है ..मेरे पतिदेव का वड़ोदरा स्थानांतरण हुआ था ।हम नए नए ही पहुंचे थे नया घर सुसज्जित कर मन प्रसन्न था ।फ्रिज साफ़ करके जमाया तो हवा का एक झोंका जैसे पल को उदास कर गया ...''अरे सब्जी तो है ही नहीं ..!!"सोचा ..क्यूँ न बाज़ार से सब्जी ही ले आऊँ ..?और शाम को पतिदेव को बढ़िया सा खाना ही खिलाऊँ ..!!पिछले कुछ दिनों से ढंग से खाना घर में बना ही कहाँ था ..?प्रसन्न मुद्रा ...अपनी ही सोच में डूबी ....मन ही मन कुछ गुनगुनाती हुई सी ......सब्ज़ी मंडी पहुंची !बहुत भाव-ताव करना उस समय आता नहीं था .........हाँ पतिदेव की ट्रेनिंग में अब बामुश्किल सीखा है ..!!वो भी शायद ढंग से नहीं ....!!सब्जी खरीद चुकी थी ।लौटते हुए बिलकुल ताज़ी ...हरी धनिया(कोतमीर) दिखी ...!!अरे वाह ...एकदम ताजी धनिया .....!!!हींग जीरे की छुंकी दाल हो .......और ऊपर से धनिया पड़ा हो .....हमारे घर में खुशी बिखेरने के लिए इतना बहुत है ...!!जब श्रीमानजी के लिए धनिया खरीदी जा रही थी ...तो थोड़ी उनकी ट्रेनिंग भी याद रही ..."थोडा भाव-ताव किया करो ...!''बस वही याद करते करते लग गए भाव -ताव करने ...!!"अरे इतना महंगा धनिया ..!!!!अरे नहीं भई ...भाव तो ठीक दो ।"अब वो भला मानुस भी अपनी दलीले देने लग गया । मानने को राज़ी नहीं ...खैर मैंने भी सोचा नहीं लूंगी अगर कम में नहीं देगा ....!! मैं पलटी और वापस चल दी !!
पंद्रह बीस कदम चल चुकी थी ,तब न जाने क्या सोच कर उसने मुझे आवाज़ दी ..."ओ मोठी बेन .....कोतमीर लइए जाओ | " मैं वड़ोदरा में नई थी और गुजराती भी नहीं जानती थी | और तो और मोटापे की मारी तो थी ही ! अब मोटे इंसान को अगर मोटा कह दिया जाये तो उससे बुरा उसके लिए और कुछ नहीं होता ,यकीन मानिये !!उसकी आवाज़ सुनते ही गुस्से के मारे मैं तमतमा गई !!"उसने मुझे मोटी बोला तो बोला कैसे ??? पलटकर तेज़ रफ़्तार मैं उसकी ओर बढ़ने लगी !मेरा चेहरा देखते ही भला मानुस मेरे मन की बात समझ गया | तुरंत हाथ जोड़ खड़ा हुआ और बोला " बेन आप गुजरात में नए आये हो ??'' उसके मासूम चेहरे और धीर गंभीर व्यक्तित्व के आगे मेरे गुस्से ने अपने हथियार डाल दिए !! मैंने कहा "हाँ ,क्यों ??" ''अरे बेन इधर ,हमारे गुजराती में मोठी मने बड़ी बेन होता है मोटी नहीं !!" इतना कहकर मुस्कुरा दिया | अब मुझे अपनी गलती समझ आई |
इस घटना का असर यह हुआ कि वो सब्जी वाला मेरा परमानेंट सब्जी वाला बन गया ,जब तक मैं वड़ोदरा में रही |
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कभी कभी थोड़ा हंसना -हँसाना भी सेहत के लिए अच्छा होता है .....!!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "