पुनः शीतल चलने लगी बयार ....
झरने लगे हैं पुष्प हरसिंगार ...........
आ गए फिर दिन गुलाबी ....
प्रकृति करे फूलों से श्रृंगार ………….!!
नवलय भरे किसलय पुटों में........
सुरभिमय रागिनी के ....
प्रभामय नव छंद लिए कोंपलों में.............
अभिज्ञ मधुरता हुई दिक् -शोभित….
सिउली के पुष्पों से पटे हुए वृक्ष .............!!
सुरभि से कृतकृत्य हुई धरा..............
पारिजात संपूर्णता पाते जिस तरह ......
जब खिलकर झिर झिर झिरते हैं ...
धरा का ..प्रसाद स्वरूप आँचल भर देते हैं ..
और अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं ....
पुनः धरा को ही ....इस तरह ....!!!
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झरने लगे हैं पुष्प हरसिंगार ...........
आ गए फिर दिन गुलाबी ....
प्रकृति करे फूलों से श्रृंगार ………….!!
नवलय भरे किसलय पुटों में........
सुरभिमय रागिनी के ....
प्रभामय नव छंद लिए कोंपलों में.............
अभिज्ञ मधुरता हुई दिक् -शोभित….
सिउली के पुष्पों से पटे हुए वृक्ष .............!!
सुरभि से कृतकृत्य हुई धरा..............
पारिजात संपूर्णता पाते जिस तरह ......
जब खिलकर झिर झिर झिरते हैं ...
धरा का ..प्रसाद स्वरूप आँचल भर देते हैं ..
और अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं ....
पुनः धरा को ही ....इस तरह ....!!!
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