इस धरा पर ....
कई साल पहले ...
जन्मी थी एक दिन ...
माँ का स्पर्श ..याद है मुझे ...
आया आया ..दही वाला आया ..
सुन सुन कर ...
थाम कर उंगली उनकी ..
खिलखिलाकर ...
चली थी एक दिन....
माँ ने चलाना ही सिखाया ...
और कुछ ...
और बहुत कुछ ..पा जाने की इच्छा जब जागी ....
दौड़ना ..मैंने सीख ही लिया ..
एक दिन..!!
छोटी सी ललक थी ..
बढ़ते बढ़ते ..
अपने अधिपत्य की कामना बनने लगी ......
और कुछ ...
और बहुत कुछ पा जाने की इच्छा जब जागी ...
अंधी दौड़ में भागते हुए ...
जग से प्रेम त्याग ..
अपनाया ..द्वेष ..इर्ष्या...छल ..राग ..
फिर ..कपट करना..मैंने सीख ही लिया ..
...एक दिन........!!
भागते भागते इस दौड़ में ..
दौड़ को जीतने की लालसा....
जब जागी ......
साम,दाम,दंड भेद ...
झूठ पर भी हो न खेद ...
और ..फिर ...
जग से मुखौटा लगाना भी ...
मैंने सीख ही लिया...
एक दिन.... ..!!
जीतने लगी मैं ...
लगते रहे मुखौटे ...
भरते रहे भण्डार ...
सूर्यास्त की बेला हुई .....
छाने लगा अन्धकार ...
कई साल पहले ...
जन्मी थी एक दिन ...
माँ का स्पर्श ..याद है मुझे ...
आया आया ..दही वाला आया ..
सुन सुन कर ...
थाम कर उंगली उनकी ..
खिलखिलाकर ...
चली थी एक दिन....
माँ ने चलाना ही सिखाया ...
और कुछ ...
और बहुत कुछ ..पा जाने की इच्छा जब जागी ....
दौड़ना ..मैंने सीख ही लिया ..
एक दिन..!!
छोटी सी ललक थी ..
बढ़ते बढ़ते ..
अपने अधिपत्य की कामना बनने लगी ......
और कुछ ...
और बहुत कुछ पा जाने की इच्छा जब जागी ...
अंधी दौड़ में भागते हुए ...
जग से प्रेम त्याग ..
अपनाया ..द्वेष ..इर्ष्या...छल ..राग ..
फिर ..कपट करना..मैंने सीख ही लिया ..
...एक दिन........!!
भागते भागते इस दौड़ में ..
दौड़ को जीतने की लालसा....
जब जागी ......
साम,दाम,दंड भेद ...
झूठ पर भी हो न खेद ...
और ..फिर ...
जग से मुखौटा लगाना भी ...
मैंने सीख ही लिया...
एक दिन.... ..!!
जीतने लगी मैं ...
लगते रहे मुखौटे ...
भरते रहे भण्डार ...
सूर्यास्त की बेला हुई .....
छाने लगा अन्धकार ...
छूट जाने के डर से घिरी हुई ........
सब छूट जाये पर,
छूटता नहीं मोह अब ...
न सखी न सहेली ....
बैठी हुई ..नितांत अकेली
फिर भी ......
देखो तो पापी मन मेरा ...!
झगड़े और करे मेरा..तेरा ..!!
डर-डर कर रहना सीख रहीं हूँ अब ...
क्षमा करना प्रभु ...
तुमने दिया था जन्म मुझे ..
खुली खुली इस सुंदर ...
मनमोहक धरा पर . ..!
किन्तु ..मेरे द्वारा बसाई ...
इस दुनिया के पिंजरे में क़ैद हो ...
अपने आप से दूर ........
बहुत दूर ....
और निरंतर दूर होती हुई ...
पिंजरबद्ध हो..
रहना...मैंने...सीख ही लिया...
एक दिन........!
हाँ ...अपनी इस काया के लिए जीना..
मोह में बंधना .. माया के लिए जीना ..
मैंने सीख ही लिया...
एक दिन ..............!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
सब छूट जाये पर,
छूटता नहीं मोह अब ...
न सखी न सहेली ....
बैठी हुई ..नितांत अकेली
फिर भी ......
देखो तो पापी मन मेरा ...!
Painting by Abro khuda bux. |
डर-डर कर रहना सीख रहीं हूँ अब ...
क्षमा करना प्रभु ...
तुमने दिया था जन्म मुझे ..
खुली खुली इस सुंदर ...
मनमोहक धरा पर . ..!
किन्तु ..मेरे द्वारा बसाई ...
इस दुनिया के पिंजरे में क़ैद हो ...
अपने आप से दूर ........
बहुत दूर ....
और निरंतर दूर होती हुई ...
पिंजरबद्ध हो..
रहना...मैंने...सीख ही लिया...
एक दिन........!
हाँ ...अपनी इस काया के लिए जीना..
मोह में बंधना .. माया के लिए जीना ..
मैंने सीख ही लिया...
एक दिन ..............!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!