नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

30 August, 2021

चेतना अपरिमित !!

Must Chant Mantras To Impress Lord Krishna

चेतना अपरिमित 

कृष्णा की बांसुरी भई 

गलियन गलियन 

कूल कूल कूजित ,

संग संग  

कोकिल के नव गान से ,

भ्रमर की नव राग से ,

ज्योतिर्मय आभा की हुलास से 

मयूर के उल्लास से 

राधिका  के अनुराग से 

सृष्टि पूरित  !!

चेतना अपरिमित !!!

अनुपमा त्रिपाठी 

  "सुकृति "

25 August, 2021

धूप भी खिली हुई

 
धूप भी खिली हुई
घूप में खिला हुआ 
रँग है बहार का 
रँग वो ख़ुमार का 

रँग वो ख़ुमार का 
अभिराम वो दुलार का, 
अभिरुप वो श्रृंगार का 
मांग की लाली में जैसे 
प्रियतम के प्यार का 
रँग वो ख़ुमार का 

उड़ेलता हुआ कभी 
बिखेरता हुआ कभी 
लहर लहर समुद्र पर
किरणों के प्यार का 
रँग वो ख़ुमार का 


अनुपमा त्रिपाठी 
 ''सुकृति ''


19 August, 2021

बैरी सावन बीतत जाये


चेहरा अंचरा बीच छिपा के 
जाने ढूंढें कौन पिया के 
नैना रो रो नीर बहाये 
बैरी सावन बीतत जाये 


अंखियन  कजरा बोल रहा है 

सजनी का जिया डोल रहा है 

हिरदय की पीड़ा कहती है 

नैनं से नदिया बहती है 


दामिनी दमक दमक डरपाए 

कोयलिया की हूक सताए 

झड़ झड़ लड़ी सावन की लागि 

आस दिए की जलती जाये 

बैरी सावन बीतत जाये 


अनुपमा त्रिपाठी 

"सुकृति "


13 August, 2021

धीरे धीरे चलती रही !!


धीरे धीरे चलती रही ,

वक़्त के साथ सिमटती रही यादें।

किसी अमुआ की फुनगी पर 

 बुलबुल की तरह ,

किसी नीम की टहनी पर 

 चुलबुल की तरह ,

चम्पई  सुरमई गीतों में 

महकती रही यादें

मेरे साथ साथ यूँ ही 

चलती रही यादें !!


कभी बादलों के गाँव में 

चंदा की तरह ,

कभी आसमान की छाँव में 

सूरज की तरह ,

कभी धरती पर चमेली सी 

उड़ती ,ठहरती महकती रही यादें 


मेरे साथ साथ यूँ ही 

मचलती रही यादें !!


अनुपमा त्रिपाठी 

"सुकृति "


09 August, 2021

मुझ तक आ गया !!

समुद्र के किनारे ,

पसरे हुए सन्नाटे के बीच 

मुझसे बोलता हुआ अनहद 

कुछ मुझको दे गया 

जड़ से चेतना ,

संवाद से संवेदना ,

का मार्ग प्रशस्त कर ,

लहरों से बोलता हुआ समुद्र 

यूँ ही
मुझ तक आ गया !!

अनुपमा त्रिपाठी 
 ''सुकृति "

05 August, 2021

इक फलसफा है ज़िन्दगी ...!!

बातों ही बात में अपने आप को यूँ 
कहते  जाना

इक फलसफा है ज़िन्दगी तेरा इस तरह 

गुज़रते  जाना


वक़्त है कि चलता है ,रुकता नहीं किसी के लिए ,

दो घड़ी चैन देता है अपनों का यूँ 
ठहरते जाना , 


ज़िन्दगी एक है एक ही रहेगी लेकिन,

तुझ को छू कर मेरी खाइशों का यूँ बिखरते जाना,


रात का रंग सुरमें  की तरह सांवरा  है ,

भर के आँखों में ख़्वाबों  का यूँ संवरते जाना



अनुपमा त्रिपाठी

   "सुकृति "


01 August, 2021

जिजीविषा !!



आसमान पर पंख फैलाए,
बादलों के उड़ने की गाथा,
असीम पुलकावलि है या 
जीवन की परिभाषा.... !!


वसुंधरा के उद्दाम ललाट पर 
सूरज की  ललाम आशा 
प्रातः की कवित्त विरुदावली  है या 
मेरी कविता की अभिलाषा !!


तुम्हारे शब्दों में उल्लसित 
मेरे व्योम की विभासा 
तुम्हारी कविता है 
या मेरी उड़ान की अपरिमित जिजीविषा !!



अनुपमा त्रिपाठी
 ''सुकृति ''