किसलय का डोलता अंचल ,
नदी पर गहरी स्थिर लहरें चंचल
झींगुर की रुनक झुनक सी नाद ...
करती हैं कैसा संवाद
पग धरती विभावरी ,
धरती श्यामल शीतलता भरी,
आ रही रजनी परी ...!!
कोलाहल से दूर का कलरव ,
मन शांत प्रशांत नीरव
अनृत से प्रस्थान करते ,
नीड़ की ओर उड़ते पखेरू ,
मणिकार की मणि सा ...
स्निग्द्ध धवल मार्ग दर्शाता विधु
शब्द बुनते भाव इस तरह
फिर लरजती लरजाती सी उतरती है ,
मन में
जैसे
कोई मणि सी कविता ...!!
नदी पर गहरी स्थिर लहरें चंचल
झींगुर की रुनक झुनक सी नाद ...
करती हैं कैसा संवाद
पग धरती विभावरी ,
धरती श्यामल शीतलता भरी,
आ रही रजनी परी ...!!
कोलाहल से दूर का कलरव ,
मन शांत प्रशांत नीरव
अनृत से प्रस्थान करते ,
नीड़ की ओर उड़ते पखेरू ,
मणिकार की मणि सा ...
स्निग्द्ध धवल मार्ग दर्शाता विधु
शब्द बुनते भाव इस तरह
फिर लरजती लरजाती सी उतरती है ,
मन में
जैसे
कोई मणि सी कविता ...!!