जब तक सांस चलती है तभी तक जीवन है ....!!हम चाहें तो सार्थक कर्म कर उसे सवाँर लें और प्रभु के चित्त में स्थान पा लें या ....पछताते रहें .....समय तो निकल ही जायेगा ...रुकेगा तो नहीं ............
आँख से
छूट कर ...
पात सी टूट कर ....
गिर क्यूँ गई ....?
मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?
चैन न पाऊँ ...अकुलाऊँ .!!
प्रभु चित्त ही मेरो देस ..
अब पछताऊँ .....
नयन नीर ..धर धीर ..
पी लिए होते ...!
मन का -
मध्यम तीवर स्वर(तीव्र म) ..
बाँध लिया होता ....
स्वर कोमल रे मन रिषभ (रे)-
साध लिया होता ....
तब गाती गुण ...
प्रभु सुन-सुन ....
हर्षाते ...चित्त लगाते .....!!
अब आँख से
छूट कर ...
पात सी टूट कर ....
झर गयी ...!
मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?
*रिशभ -रे स्वर का संगीत शास्त्र में नाम है ..!
*तीव्र सुर मध्यम ..अर्थात तीव्र म और रे कोमल यानि ''मारवा '' राग गा रही थी .....सब कुछ व्यवस्थित ...जगह पर ...फिर कैसी बेचैनी ...?
.........राग मारवा बेचैनी ही देता है ....!!कभी सुन के देखें ....!!