कुछ दूर मुझसे यूँ मेरा क़िरदार जा बसा ,
वही खोज तरन्नुम की जहाँ खो गया हूँ मैं
वाबस्ता नहीं मुझसे ये दीदारे हुनर भी ,
इक बूँद में सागर का जिगर बांचता हूँ मैं
तू है तो ज़माने का नमक भी क़ुबूल है ,
तेरे हुनर से गीत-ग़ज़ल राचता हूँ मैं
लिखने का फ़न तो रस्मों अदायगी ही सही
पढ़ पढ़ के तेरे गीत यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
वही खोज तरन्नुम की जहाँ खो गया हूँ मैं
वाबस्ता नहीं मुझसे ये दीदारे हुनर भी ,
इक बूँद में सागर का जिगर बांचता हूँ मैं
तू है तो ज़माने का नमक भी क़ुबूल है ,
तेरे हुनर से गीत-ग़ज़ल राचता हूँ मैं
लिखने का फ़न तो रस्मों अदायगी ही सही
पढ़ पढ़ के तेरे गीत यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "