28 September, 2019

यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं

कुछ दूर मुझसे यूँ  मेरा क़िरदार जा बसा ,
वही खोज तरन्नुम की जहाँ खो गया हूँ मैं

वाबस्ता नहीं  मुझसे ये दीदारे हुनर भी ,
इक बूँद में सागर का जिगर बांचता हूँ मैं

तू है तो ज़माने का नमक भी क़ुबूल है ,
तेरे हुनर से गीत-ग़ज़ल राचता  हूँ मैं












लिखने का फ़न तो रस्मों अदायगी ही सही
पढ़ पढ़ के तेरे गीत यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति "