नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

25 January, 2012

मेरा मन अब श्वेत है ...सब रंग लिए ...!!

षडज  का स्वर ...
दिए की कंपकंपाती लौ सा ...
घंटों ...परिश्रम...
बस षडज  पर खड़े रहना ...
और इस कम्पन के
स्थिर होने का इंतज़ार  करना.....!!

मूँद कर पलकों को .
चंचल बन ..
लो उड़ चला मन ..
केसरिया सा .. ...
षडज के शुभ्र मेघ  के संग संग ...
आज आई हूँ तुम्हारे देस ..
गाते हुए राग देस ...
यहाँ सब शुभ्र..श्वेत ...स्निग्ध है ...
किन्तु चंचल है प्रकृति मेरी  ....
जैसे राग देस की ...
बरसों इंतज़ार के बाद ...
छोटा ख्याल और मध्य लय....
अब पहुँच गयी हूँ तुम्हारे आँगन ..
अच्छा लगा इन राहों से गुज़रना ...
थम कर थाम लेना उंगली स्वरों के  ...
मन के भावों की ...
रुक कर रोक  लेना बहती हुई हवा को ....
सुरों की तरंगों को ...!!

भीग कर भिगो देना 
अपने रंग में तुम्हारा अंगना ...
जैसे रंग बिरंगे फूलों पर ..
उड़ती हुई...
सफ़ेद तितलियों को ..
अपने  भावों के स्पर्श  से   ...
रंग बिरंगा कर दिया है मैंने ....
तुम्हारा  मौन बोलता है अब... 
तुम्हारे मन के किसी एक कोने में..
मुझे अपना रंग दिखता है अब ...
और  यहाँ पहुँच कर ...
श्वेत कमल......!!
मेरा मन अब श्वेत है ...सब रंग लिए .......
अपनी  झोली   में ....!!
हर्षित है मन ..
षडज भी स्थिर है अब ...!!

*षडज-सा को शास्त्रीय संगीत में षडज कहते हैं.
*देस- राग का नाम है और इसकी प्रकृति चंचल है इसलिए उपशास्त्रीय संगीत में इसका बहुत उपयोग होता है ।चंचल प्रकृति होने के कारण ....शास्त्रीय संगीत मैं मध्य लय की बंदिशें ही  हैं ।

22 January, 2012

माटी भी मोक्ष पा जाती है ...!!

कोमल  और कठोर ...
स्वप्न और यथार्थ ...
दो पहलू जीवन के ...
दो किनारे सरिता के ...!!


कभी कोमल स्वप्न ...
कठोर यथार्थ ...
कभी कठोर स्वप्न ...
कोमल यथार्थ ...!!


हैं  ये  
सत्य और मिथ्या की तरह ...
दो किनारे जीवन के ..
दो रूप मेरे  मन के ...!

इन्हीं दो किनारों के बीच ..
प्रवाहमान ...स्वच्छ पारदर्शी
नदिया का जल है जीवन ...
अपना ही मन है जीवन ...!

अनवरत बहते हुए भावों सा ..
छूते  हुए दोनों छोर ...
कभी कोमल एहसास लिए ...
भर अपनी अंजुरी  ..
कभी कठोर वायु के वेग से ..
विपरीत दिशा में भी बहते हुए ...
असहनीय वेदना ..सहते हुए ...!

कैसे बहता है ये निर्मल शीतल जल ...
सहनशीलता की पराकाष्ठा लिए हुए  ..
मिलकर इसमें...घुलकर इसमें...
माटी भी मोक्ष पा जाती है...!!

20 January, 2012

एक शाम की कहानी .......!!!!!!

जल्दी जल्दी घर का काम निपटा कर गुनगुनाते हुए अपनी अलमारी खोली .......मैचिंग पर्स ...मैचिंग  ज्वेलरी ....मैचिंग लिपस्टिक ...बड़े मन से सखियों से मिलने की तयारी होने लगी |आज बहुत दिनों बाद महिला मंडल की मीटिंग में जाना था |कुछ जोश ही अलग था |सच मानिये लेडीस डे आउट का मज़ा ही कुछ और होता है ...!वो मस्ती ...वो हँसना ...वो ज़ोरदार ठहाके ...गूँज जाता है पूरा हॉल ......!!बहुत मुश्किल से मौके मिलते हैं जब आप चिल्ला चिल्ला कर हंस सकें ....!!बस सीधी सी बात ...खूब हंसने का मन था ......आज इस कहानी में कोई ट्विस्ट ...नहीं चाह रही थी मैं ....!! ज़ोर ज़ोर से हंसने में जो मज़ा है ...वो हलकी सी मुस्कराहट में कहाँ ...? कुछ अजीब सा सुरूर ....छाया हुआ था ..|तैयार होते होते ही दो इंच की मुस्कान चेहरे पर छपी थी |
 पिछले दिनों बड़ी मेहनत करके कुछ वज़न कम किया था |बच्चों की सी ललक थी ....कब मैं पहुंचू और कब सुनने मिले ....ओ हाय अनुपमा !!...पतली हो गयी हो ....अरे क्या किया हमें भी बताओ ...खयाली पुलाव पक रहे थे ....मौज-मस्ती में डूबी ....यथा समय पहुँच गयी मीटिंग में |
बल्कि थोड़ा जल्दी ही पहुँच गयी थी |अभी कम ही लोग पहुंचे थे |एक नया सा चेहरा दिखा ,अपनी सखियों का इंतज़ार करती ,कुछ सोचती हुई , मैं उनके पास जा कर बैठ गयी ...!पीले रंग की साड़ी में  ...अच्छे से तैयार ....सभ्रांत महिला ...!!वार्तालाप शुरू हो गया |उन्होंने पूछना शुरू किया  ....आपका नाम क्या है .....आपके पति का नाम क्या है ....उनकी पोस्टिंग कहाँ है ....आपके कितने बच्चे है ...क्या करते हैं ...कहाँ रहतीं हैं ...यहाँ तक तो बड़ी ही सहज बातें होती रहीं ...धीरे धीरे उनकी बातों की सहजता कम होने लगी ...!जैसे जैसे उनकी बातों की सहजता कम होने लगी वैसे वैसे मेरा आश्चर्य बढ़ने लगा और मेरी असहजता बढ़ने लगी |वो कह रही थीं ...''मैं बहुत पूजा करती हूँ |बहुत ध्यान करती हूँ |भगवान पर बहुत विश्वास है मुझे |भगवान का मुझे विशेष आशीर्वाद प्राप्त है |मैं तो भगवान  से बातें भी करती हूँ |रोज़ मेरी कितनी ही बातें होती हैं भगवान से |मैं कुंडली भी देखती हूँ |मुझे  इश्वर  से  ऐसी  शक्ति  प्राप्त  है की मैं देख कर ही बता देती हूँ कि कोई  कब मरने वाला है ...... ''और धीरे धीरे खसक कर मेरे और पास आ गयीं ..उन्होंने मेरी तरफ ध्यान  से देखना शुरू कर दिया ...!और अब धीरे से मेरा हाथ पकड़ लिया ...!सच मानिए इतना होते  ही  मैं कुछ काँप सी गयी ................वो मस्ती जो मन पर छाई थी कहाँ काफूर हो गयी पता नहीं ....!!!!मैं पल भर को भी ये जानना नहीं चाहती थी कि मैं कब मरने वाली हूँ ....!अरे कहीं मैं जल्दी मरने वाली हुई तो ...?अभी तो बहुत कुछ करना है ...!!मैं ज़िन्दगी से कितना प्रेम करती हूँ ये मुझे उसी पल मालूम पड़ा ...!!!!अब मैं  यहाँ  से  उठूँ  भी  तो  उठूँ  कैसे  ....?हाय ...मैं क्या करूँ....कहीं ये मैडम बता ही न दें कि मैं कब मरने वाली हूँ .....!!आज शायद मैंने भी पूजा अच्छे से की थी ....!साक्षात् भगवन ही मेरी रक्षा को प्रकट हुए ...!वो कुछ और बोल पातीं उससे पहले मिसेज़ शर्मा कि आवाज़ कानो में पड़ी ....''अरे अनुपमा .....!!बड़े दिनों बाद दिखीं ....कितनी पतली हो गयी हो ....वॉट अ सरप्राइस .!!''उनके सर प्राइस का पता नहीं पर यहाँ मुझे कुछ और ही सर प्राइस मिलने वाला था ...!! डर के मारे मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था |चेहरे पर पूरे बारह बल्कि ...सवा बारह ...नहीं नहीं साड़े  बारह बज रहे थे ....!!मेरी हालत देख कर बोलीं ..........''अरे लगता है कुछ गंभीर बात चल रही थी |मैंने डिस्टर्ब किया क्या ....?''मेरी घिग्घी बंधी हुई थी ....घबराहट में मैंने पर्स खोला .....बड़ी मुश्किल से  पर्स में से मेन्टोस निकल कर खायी ....और मेरे दिमाग कि बत्ती जल गयी ...!.....''अरे मिसेज़ शर्मा नमष्कार!आपने जो किया बहुत अच्छा किया |''इतना कह कर मैं वहां से अलग हो गयी |अब रह रह कर मेरा ध्यान .......उन पीली साड़ी वाली महिला पर जाता था | जो सीन मेरे साथ हुआ वही सीन अब रिपीट हो रहा था |मीना मेरी बहुत अच्छी मित्र है |अब वो महिला मीना से ही बात कर रही थीं ....!मीना के चेहरे पर बदले हुए हाव-भाव से मैं समझ गयी अब मीना पर क्या गुज़र रही है |इतने में मेरी नज़र मीना से मिली और इशारे से मैंने उससे कुछ कहा |मीना समझ गयी और तुरंत वहां से हट गयी |थोड़ी देर बाद हमें  समझ में आ गया  कि ये महिला कुछ अलग ज़रूर है .....!सामान्य तो नहीं हैं ।
ज़िन्दगी  ट्विस्ट देने से कहाँ चूकती है ...? ज़िदगी को इतने करीब से देखा ....वो भी मौत की बात करते हुए ....!!आज सभी के चेहरे पर से हंसी गायब थी ....जिस ख़ुशी की  तलाश में हम सब यहाँ आये थे वो तो मिली  ही नहीं ....!!अब तो सभी के बीच चर्चा का वही विषय था |सभी के चेहरे उतरे थे ...!!
सब कुछ पा कर भी प्रभु की इच्छा के आगे हम कितने विवश हैं ...!!कभी कभी ऐसे कुछ वाक्यात घटित हो जाते हैं कि न हम कुछ समझ पाते हैं न बोल पाते हैं ...हाँ ये ज़रूर है कि लौटते हुए एक अजीब सी उदासी छाई हुई थी |ज़िन्दगी हँसने कहाँ देती है ....?

घर लौटते वक़्त शाम हो चुकी थी ।कार में बैठ कर भी मन पीछे ही छूट गया था।गरज गरज कर बादल बरस रहे थे ...और इस बारिश कि टिपिर टिपिर में भी ...कुछ बहुत ही वीरान सा ....उचाट सा मन हो रहा था ....मन बदलने के लिए मैंने ड्राईवर से कहा ,''शोहरत ,गाना तो लगाओ भई ...!''हिंदी फिल्मो कि तरह ...F.M  पर  गाना बज रहा था ....''दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी तूने ...काहे को दुनिया बनाई......................???

18 January, 2012

लो फिर आई है चिड़िया ........!!

भोर से पहले ही उठ जाती
सूखे सूखे त्रिण चुन लाती
बुलबुल सी उड़-उड़ ...
रे मन चुलबुल ...
बाग़ में चहचहाई  है चिड़िया
मन भाई है चिड़िया ..!!
लो ,फिर आई है चिड़िया....

राग विभास की आस .....
चुने हुए शब्द विन्यास ....
सींचती-उलीचती ....
घट भर-भर लायी है चिड़िया ...

सृष्टि पर बिखरा ...
सुरों के  रंगों का..तरंगों  का ..उमंगों  का   .
राग लालिल सा  लालित्य ..
बुन-बुन गुन लायी है चिड़िया ......
राग के ख्याल में खोयी  हुई ...
कुछ जागी सी कुछ सोई हुई ...
सुलक्षण  सुमंगल परंपरा निभाती ...
दिए की बाती ...
पूजा की थाली में ..
ज्यों  जलती जाती .....
पञ्च तत्व..
से पांच सुरों का राग गाती  ....
सुध बुध बिसराती..उन्माती ........
माघ के आगमन पर ..
मन के आँगन पर ..
सुघड़ नीड़ पर...
बैठी  झूलती .... इतराती ....मुस्काती ...सुस्ताती है चिड़िया  ...
अब लो फिर आई है चिड़िया ...!!!!


*विभास और ललित ये दोनों राग सूर्योदय से पहले गए जाने वाले राग हैं ...
*सुरों की उत्पत्ति भी पञ्च तत्वों से ही होती है ...
*राग  विभास  में  पांच स्वरों का प्रयोग होता है...पंचम जाती का राग है ...!!

15 January, 2012

क्या यही प्रेम है प्रभु ......?


एक पल को रूकती है चिड़िया ...
वृक्ष की डाल पर ..
कुछ विश्रांति चाहती है ...
सुस्ता कर थोड़ा  ...
अगले ही पल ...
फुर्र ररर से उड़ जाती है ...
आँख से ओझल हो जाती है ....
एक क्षण के भाव मेरे ...
आते हैं ...
रुकते हैं ...
शब्द  दे जाते हैं ...
अगले ही पल ..
फुर रर  से उड़ जाते हैं ...


एक पल की कविता बनती है ...
आती है ..
रूकती है.....
कुछ देती है  मुझे ....
उंगली थाम ...
फिर कुछ जमने सी लगती है ...
सतत ...कुछ जुड़ने सा लगता   है ...
मन कुछ बुनने सा  लगता   है ...
अरे .....सृजन की परिकल्पना लिए ...
नीड़ का सपना लिए ...
अब तो  यह चिड़िया घर आने लगी है ..
 रोज़ आने लगी है ...
पीछे अलमारी के ऊपर
कुछ सूखे घास का कचरा लाने लगी है ...
सफाई कर-कर के मैं परेशान ....
बिचारी चिड़िया भी हैरान ....
सोचती है ....
''कविता लिखतीं हैं ....
भाव पढ़ लेतीं हैं .....
इन्हें क्यों मेरे भाव समझ नहीं आते ....?
इन्हें क्या मेरा प्रेम समझ नहीं आता ...?''
किन्तु ...मैं भी सफाई पसंद..
धुन की पक्की ....
बन नहीं पाया वह घोंसला मेरे घर के अन्दर ....!!
मैं समझ नहीं पाई थी भाव चिड़िया के ...
निष्ठुर मन मेरा जीत गया ...!!
अंततः ...ज़िद छोड़ देती है चिड़िया .. ...
प्रेम जो करती है ...मुझसे  ...
और अपनी परिकल्पना   से ...
अब देखती हूँ ......
पीछे बगीचे में
हारसिंगार के पेड़ पर .. एक नीड़ बनाने लगी   है ....
ओह ....अब ध्यान से देखती हूँ ....
चिड़िया-चिड़वे का कर्तव्यनिष्ठ  प्रेम ....
नन्हें नन्हें बच्चों का कलरव ...
मन मोह लेता है मेरा ...
हार के हार नहीं मानी थी चिड़िया ....
उसकी इस प्रबल  जिजीविषा के आगे मैं हार गयी .......
निष्ठुर मन ..मोम सा बन ..
चिड़िया की आस्था देख ...
 पिघल ही गया ...
अब रोज़ देखती हूँ चिड़िया को ......
कितना देती है मुझे .....
भर देती है झोली मेरी ...
अनमोल  से भावों से ......
जुड़ सी गयी हूँ इस चिड़िया से ...
क्या यही प्रेम है प्रभु ......?
क्या इसी भाव से उपजती है कविता ....?
क्या इसी को जीवन कहते हैं ...?


13 January, 2012

पिया गुनवंत आवन को हैं ...!!

सप्त स्वरों के
 पंख लगा कर ..
मन को मन की
चाह बना कर ...
तीव्र मध्यम को -
मार्ग विहाग का मार्ग दिखा कर ...
लो उड़ चली मैं ....

उड़-उड़
भर रहा है मन ...
स्वरों में सर्वप्रथम ..
रम-रम
 प्रभु का अज्ञेय स्मरण  ..
गूँज गूँज
भंवरें का अथाह गुंजन ...
लहर लहर
 लहरों का अजेय स्पंदन ..
कल कल कल
नदिया का अमिय वंदन...
या मस्त पवन का
आनंदातिरेक  अगाध आलिंगन ..

अब घर आई ..
चतुरंग की चतुराई ...
भज मन भजन की शहनाई ..
बड़े ख़याल सी रुकी रुकी ठहरी ठकुराई ...
छोटे ख़याल सी अल्हड़ चपलाई चंचलताई ....
कजरी की अकुलाई  तरुणाई...
आली मोरे अंगना आज ...
पिया गुनवंत आवन को हैं ...
प्रिय  के रंग चूनर रंगाई....
आज मोरे मन ने सुरों के  रंगों से
  रंगोली भी सजाई .....!!


*मार्ग विहाग -राग का नाम है जिसमे तीव्र मध्यम का प्रयोग होता है .
चतुरंग -शास्त्रीय संगीत में गीत का एक प्रकार है .बंदिश के बोल,सरगम,त्रिवट और तराना ....इन सभी का मिश्रण हो तो चतुरंग बनता है और चतुराई से ही गाना पड़ता है |बड़ा ख्याल ठहर ठहर कर गया जाता है ....छोटा ख्याल चंचलता से और कजरी को गाते हुए तरुनाई जैसे ही कुछ भाव होने चाहिए .....!!

आप सभी को संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें.
सूर्य देवता ने अपना मार्ग बदल लिया है ....!!उत्तरायण की ओर अब चल पड़े हैं  ...!
आज के दिन तिल गुड़ खाएं और गुड़ की ही तरह मीठा बोलें ....पता नहीं किस रूप में होगी पर ...प्रभु कृपा ज़रूर होगी ....!!ज़रूर होगी .......

10 January, 2012

क्षितिज की तरह ...बहुत दूर हो गयी हूँ मैं ......!

आज सोच में डूबी ..
सोचती हूँ ..क्या हूँ  मैं ...?
जो मैं हूँ वो हूँ ....या ...?
तुम्हारी सोच हूँ मैं ....?

हाँ ... तुम्हारी सोच ही तो  हूँ .......
जब खुश हो तुम...
नीले आसमान पर ..
खूबसूरत रंगों की तरह ...
हंसती मुस्काती ...
तुम्हारे सुंदर भावों की तरह ...
कितनी सुंदर दिखतीं हूँ मैं ...
अपने भाव देखते हो तुम मुझमे ..

क्षितिज ....!!
क्षितिज की तरह.........
हवा सी बहती हुई  ... ....
मन को ख़ुशी देती हुई ... ...

जब जीने लगते हैं..
मुझमे तुम्हारे विचार ..
और  नहीं  चल  पाती  मैं -
 तुम्हारे  अनुसार ......



तब बदल जाते  हो  तुम ..
आसमान पर
बदले हुए रंगों की तरह ...
तस्वीर बदल जाती है मेरी,
तुम्हारे मन में  भी ......
तुम्हारी सोच की तरह बदली  हुई ....!!

अपनी सोच के सांचे में..
अपने मन के ढांचे में ढाला है तुमने मुझे ...
हाँ यथार्थ नहीं ..
तुम्हारी बदली हुई सोच
हो गयी  हूँ मैं अब ....!!
यथार्त में तो ..
मैं जैसी कल थी ...
वैसी ही आज भी हूँ ...
मैं नहीं बदली ...
अब  सोच बदल गयी है तुम्हारी....
इसीलिए ...
अब दृष्टि भी बदल गयी है तुम्हारी ..
तभी  तो  मैं हूँ दूर ...
तुम  से दूर ...!!

अभी भी ..
क्षितिज  की तरह ही ...
हवा सी बहती हुई ...
बहुत दूर हो गयी हूँ मैं ......

06 January, 2012

ताम्बे का लोटा चमकता है ....!!

मुझे प्रेम  है सबसे ..
ईश्वर से ..
तुमसे ..उससे ....
फूलों  से ..काँटों  से ...

.स्वयं से...
अंतर्मन  से ...अंतरात्मा से ..
हाँ ..हाँ .अपने मन से .. भी ..
तभी तो ...
उसे साफ़ रखने के लिए ...

जल तुलसी पर डालने हेतु ...
जब मैं ताम्बे के लोटे को..
 मिट्टी से ..राख से ..
घिस-घिस  कर  मांजती हूँ ...
 बंद आँख कर ..
उतरती हूँ अवचेतन मन में ..
दंभ  से भरे वो पल याद कर ..
घिस-घिस कर ..
मन का मैल भी साफ़ करती हूँ ..
और .. अपने  मन में पल रहे .. ...
आग से तपते अहंकार को ...
इस अद्भुत जल से ..
तुलसी पर जल डालते हुए ...
सर झुका कर ..
ठंडा  कर देती हूँ
शांत   करती  हूँ  ...!!


मैला मन साफ़ करने के लिए ...
प्रभु ,तुमसे ,और अपने मन से भी  ...
 पास रहने  के लिए ..
ये प्रयास सतत करना पड़ता है ...
क्योंकि फेरी फेरी आती है ...
अहंकार की दुर्भावना .......
मिटा देती है प्रेम की सद्भावना ..


मन के ताम्बे को
निखारने के लिए-
एक महाभारत मन में
नित्य ही चलता है ...
तब जाकर कहीं ...
ताम्बे का लोटा चमकता है ....!!

03 January, 2012

काश ऐसा हो हम सबके लिए नया साल ...!!

         
मृग से चंचल नयन ..
मदमाती चाल ...
मोर से पंख  ...
जीवन से  ऐसी सुरुचि  ..
जो कर दे निहाल .. ...
जैसे  जिजीविषा से भरी ...
नवयौवना का   हाल ...
काश ऐसा हो सबके लिए ये  नया साल ....!!

फूलों से रंग ...
चलो,कुछ-दर्द  ..
थोड़े कांटे भी संग ...
पाखी सी उमंग ...
सुरों सी तरंग ...


आहत-अनाहत सम्मिलित ...
पूजा की घंटी सी नाद ....
मन मंदिर पर इंगित ..
शुभ प्रभु-पाद
गुरु सी प्रवृत्ति ..
शिष्य सी लगन ..
पिता सी दृष्टि ..
माँ सा कर्म रत मन ...
जो कभी न हो बेहाल ...
काश ऐसा हो हम सबके लिए ये नया साल ....!!

सुदूर अनंत तक फैली आशाएं ...
जन्म लेतीं रहें ..प्रबल इच्छाएं ...
माझी का वो सुंदर गीत ...
प्रेम ही प्रेम दे मन मीत ..
मन में न रहे कोई मलाल ...
काश ऐसा हो हम सबके लिए नया साल ...!!

01 January, 2012

रस की छाई नील बहार .! ऐसा शुभ प्रभात आया .!.

अहा नील प्रात ....!!
आज शुभ प्रभात  ...आया ..
नव वर्ष नवल नील रस लाया ....
रोम-रोम कैसा हुलसाया   ...
जब  जागा  मन  ...
अब लागा  मन ..!
नील रस भर-भर लाया ...
आज  शुभ प्रभात आया ...!!

जागृत हुई आस ..
प्रभु ..आज तुम आस-पास ...
दिखते हो हर दृश्य में ..
बसते हो मेरे भीतर भी ....
जागृत चेतना में ...!!
मेरी भावनाओं में ...!!
देख सकती हूँ मैं तुम्हे ...
अपने समक्ष ..
अपने चहुँ ओर ..
प्रशांत ..प्रखर ....प्रत्यक्ष
सुदूर प्रचार  प्रसार ..में ..


दिव्य अनुभूति देते  हुए  ...
ऐसे  दिव्य दर्शन में .....
सुलभ कराते हुए
अलभ्य  प्रतिभा में .. ..!


जब नील अम्बर पर ..
उड़ते पंछी ..
झूम  कर ...गाते जयजयवंती ......
पोर-पोर ,भीग-भीग बरसे ..
 नील सुर धार धरा पर ..!!
रास रचें ....रसना ..!!
मन रमे ..रचें ..मन ..रचना ..!!
डूबकर ले  .. लेकर ..
नूतन नील रस धार ..!!


नील ..श्याम  वर्ण हुआ  मन ...!!
नीलिमा की ...
कुसुम की ..
रस की ....
आई ,छाई नील नील बहार  ...!!

आज एक रंग में ..
रंगा सृजन है ....
अचरज से भरा ...
घिरा ..ये मन है ...!!

कैसे उड़-उड़ कर पाखी ...
आसमान में ..
ले-लेकर ..
नील व्योम रंगधारा..
चहके चातक का सुर .. रिषभ...
और ..बहे  पाखी सुरधारा..
गुनती  जाती भावधारा ..
अभिव्यक्त  करती  जीवनधारा ..
किलक हो ... बजता मन इकतारा ....


जब रस की छाई ऐसी ..
नूतन नील-नील  बहार ..
 मगन मन प्रभु मे लागा ......
 मन लागा ..
प्रभु कृपा से ..नील वर्ण चंद्रमुखी ...!!
अब जागा मेरा मन जागा ...!!

आज राग विभास   गुन -गुन गाया ...
ऐसा  .. शुभ प्रात ...आया ..!!


*चातक पक्षी का सुर रिषब(रे) होता है ..!
*जयजयवंती  -एक राग का नाम है .
*विभास-राग का नाम है .


बृहद अरण्यक उपनिषद् से ...

''ॐ असतो मा सद्गमय 
तमसो मा ज्योतिर्गमय 
मृत्योर्मा अमृतं गमय ......!!''


प्रभु से यही प्रार्थना करते हुए ..
आप सभी को नव वर्ष ''2012'' की ढेरों शुभकामनायें...!!