कोमल और कठोर ...
स्वप्न और यथार्थ ...
दो पहलू जीवन के ...
दो किनारे सरिता के ...!!
कभी कोमल स्वप्न ...
कठोर यथार्थ ...
कभी कठोर स्वप्न ...
कोमल यथार्थ ...!!
कभी कोमल स्वप्न ...
कठोर यथार्थ ...
कभी कठोर स्वप्न ...
कोमल यथार्थ ...!!
हैं ये
सत्य और मिथ्या की तरह ...
दो किनारे जीवन के ..
दो रूप मेरे मन के ...!
दो किनारे जीवन के ..
दो रूप मेरे मन के ...!
इन्हीं दो किनारों के बीच ..
प्रवाहमान ...स्वच्छ पारदर्शी
प्रवाहमान ...स्वच्छ पारदर्शी
नदिया का जल है जीवन ...
अपना ही मन है जीवन ...!
अनवरत बहते हुए भावों सा ..
छूते हुए दोनों छोर ...
भर अपनी अंजुरी ..
कभी कठोर वायु के वेग से ..
विपरीत दिशा में भी बहते हुए ...
असहनीय वेदना ..सहते हुए ...!
कैसे बहता है ये निर्मल शीतल जल ...
सहनशीलता की पराकाष्ठा लिए हुए ..
मिलकर इसमें...घुलकर इसमें...
माटी भी मोक्ष पा जाती है...!!
मिलकर इसमें...घुलकर इसमें...
माटी भी मोक्ष पा जाती है...!!
गहन अभिव्यक्ति बेहतरीन भाव संयोजन लिए उत्तम रचना
ReplyDeleteसत्य और मिथ्या की तरह ...
ReplyDeleteदो किनारे जीवन के ..
दो रूप मेरे मन के ...!
बहुत सुन्दर !!!
kalamdaan.blogspot.com
anupmaaji,
ReplyDeleteaapkee kavitaa ne mujhe bhee kuchh panktiyaan likhne ko prerit kar diyaa
maati ki kismat hai ,
saanidhy use jal kaa miltaa
jo nirantar aviral bahtaa ,
roke raastaa koi to
nayaa raastaa banaataa
bine ruke binaa thake
har paristhitee mein
nirantar chaltaa rahtaa
बहुत बढ़िया |
ReplyDeleteकाँच सी चाहतें पत्थर सा यथार्थ और जीवन । बहुत भावमय कविता। बधाई।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 23-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
सुन्दर सृजन , सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति, बेहतरीन भाव, सुन्दर सृजन , सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteइन्हीं दो किनारों के बीच ..
ReplyDeleteप्रवाहमान ...स्वच्छ पारदर्शी
नदिया का जल है जीवन ...
अपना ही मन है जीवन ...!
मन से अलग जीवन ही नहीं ...
मन के अन्दर तक पहुंचती हुई गहन रचना .बहुत अच्छी लगी !
ReplyDeleteसुन्दर भाव, गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकोमल और कठोर ...
ReplyDeleteस्वप्न और यथार्थ ...
दो पहलू जीवन के ...
दो किनारे सरिता के ...!!
ठीक शब्द और विचार की तरह ...........
न जाने कितनी दूर तक किनारों में सिमटी, प्रवाह में लिपटी, बही जा रही है नदी..
ReplyDeleteकोमल और कठोर ...
ReplyDeleteस्वप्न और यथार्थ ...
दो पहलू जीवन के ...
दो किनारे सरिता के ...!!
बहुत ही आसानी से बहुत ही कठिन बात समझा दी आपने,यथार्थ...
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सार्थक गहन भाव की अभिव्यक्ति सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
सुंदर , गहन भाव लिए पंक्तियाँ
ReplyDeleteजीवन की सुन्दर परिभाषा।
ReplyDeleteजीवन ही तो है अभिलाषा।
अनवरत बहते हुए भावों सा ..
ReplyDeleteछूते हुए दोनों छोर ...
कभी कोमल एहसास लिए ...
भर अपनी अंजुरी ..
कभी कठोर वायु के वेग से ..
विपरीत दिशा में भी बहते हुए ...
असहनीय वेदना ..सहते हुए ...!
ak prishkrit chintan ....badhai Anupama ji.
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकैसे बहता है ये निर्मल शीतल जल ...
ReplyDeleteसहनशीलता की पराकाष्ठा लिए हुए ..
मिलकर इसमें...घुलकर इसमें...
माटी भी मोक्ष पा जाती है...!!
जीवन की नदी और दो किनारों के बिम्ब को लेकर बुनी एक सुंदर मनन योग्य कविता !
वाह क्या बात है बहुत खुबू और बहुत ही गहन अभिव्यक्ति... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteइन्हीं दो किनारों के बीच ..
ReplyDeleteप्रवाहमान ...स्वच्छ पारदर्शी
नदिया का जल है जीवन ...
अपना ही मन है जीवन ...!
साक्षी भाव से सब कुछ को देखती एक अनुभूति सान्द्र रचना
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआभार.
आपके इस उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
ReplyDeleteसार्थक गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर आभार...
गहन अभिवयक्ति........ और सार्थक पोस्ट.....
ReplyDeleteमन, जीवन, नदी, मोक्ष....एक ही धारा के मध्य अहसास.
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति |गणतंत्र दिवस की बधाई |
ReplyDeleteजीवन भी इसी नदिया की तरह कल कल बहता रहे तो आनंद आ जाये ...
ReplyDeleteइन्हीं दो किनारों के बीच ..
ReplyDeleteप्रवाहमान ...स्वच्छ पारदर्शी
नदिया का जल है जीवन ...
अपना ही मन है जीवन ..
वाह...क्या खूब बात कही है...इस रचना के लिए ढेरों बधाई स्वीकारें
नीरज
बहुत ही सुन्दर रचना! गहन भावों से भरी हुई!
ReplyDeleteपहली बार आना हुआ, बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद!