उनींदी पलकों पर छाई
सपनो की लाली ,
भोर से थी जो चुराई ,
आहट सी
कानो में जो गूंजती थी ,
लगा ,फिर आने को है
अहीरभैरव सी ,
कोई रागिनी अनुरागिनी सी कविता !!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति "
''ज़िंदगी एक अर्थहीन यात्रा नहीं है ,बल्कि वो अपनी अस्मिता और अस्तित्व को निरंतर महसूस करते रहने का संकल्प है !एक अपराजेय जिजीविषा है !!''
सपनो की लाली ,
भोर से थी जो चुराई ,
आहट सी
कानो में जो गूंजती थी ,
लगा ,फिर आने को है
अहीरभैरव सी ,
कोई रागिनी अनुरागिनी सी कविता !!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति "
मुड़ती हुई सी राह की वो मुश्किलें
कर न पाईं थीं मेरे मन को हताश
गूँज उठती आस वही एक नाद बन
रंग उठता था कि जैसे बन पलाश !!
प्रकृति से सार पाने की क्रिया का
भोर से मन जोड़ने की प्रक्रिया का
नित नए अवगुंठनो को खोलने का
करती हूँ सतत अनूठा सा प्रयास !!
मुड़ती हुई सी राह की वो मुश्किलें
कर न पाईं थीं मेरे मन को हताश
मोर की टिहुँकार सुन मैं जाग जाती
पपीहे की पिहु पिहु में गीत गाती
बासन्ती हँसी में जाग जाती मेरे हृद की
सोई हुई अप्रतिम उजास !!
मुड़ती हुई सी राह की वो मुश्किलें
कर न पाईं थीं मेरे मन को हताश !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति ''
घननन बरसो ,
ताल ताल में
ग्वाल बाल की थाप बनो
मन राधा घनश्याम बनो
प्रीत बनो तुम सरसो
घन तुम बरसो !!
फूल फूल में
पात पात में
रंगों से मिल
खिल खिल
मेरे जिय में हरसो
घन तुम बरसो
अनुपमा त्रिपाठी
'सुकृति '
गाओ प्रातः का राग
प्रीत महके
भोर चहके
चिड़ियों की रागिनी
मन बहके
प्रीत श्रृंगार
नवल अलंकार
गीत लहके
भोर सुहानी
कहती है कहानी
शब्द संवारे
पँख फैलाये
डोल रहा है मन
गुनगुनाये
रैन बसेरा
क्यों मन लगाए रे
दुनिया मेला
लिखते चलो
जीवन अभिलाषा
मन की भाषा
आई बहार
सकल बन फूले
रंग बिखरे
पुष्प धवल
सुगन्धित बयार
खिले संसार
हुआ सवेरा
जागी फिर आशाएं
खिली दिशाएं
घूँघट खोला
नवल प्रभात ने
बिखेरे रंग
पापीहा बोले
भेद जिया के खोले
मनवा डोले
दिन बीतते
फिर भी न रीतते
स्वप्न सलोने
आई बहार
सकल बन फूले
छाई बहार
चंचल मन
जा रे पिया के देस
उड़ता जा रे
प्रकृति नटी
रंग ज्यों बिखराये
प्रीत सजाये
तुमसे बनी
आकृति प्रीत की
झूमे प्रकृति
अनुपमा त्रिपाठी
'सुकृति '
शब्द की प्रतीति से ,
रचना से रचयिता तक ,
विलक्षण ,
खिलते कुसुमों से अनुराग लिए ,
पल पल बढ़ता है मन ,
गुनते हुए क्षण क्षण ,
अभिनव आरोहण ,
बुनते हुए रंग भरे कात से ,
रंग भरा ,
उमंग भरा मन ,जीवन !!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति"