24 July, 2022

उनींदी पलकों पर छाई !!



उनींदी पलकों पर छाई

सपनो की लाली ,

 भोर  से थी जो चुराई ,

आहट  सी

कानो में जो गूंजती थी ,

लगा ,फिर आने को है

अहीरभैरव सी ,

कोई रागिनी अनुरागिनी सी कविता !!


   अनुपमा त्रिपाठी 

     ''सुकृति "

20 July, 2022

बन पलाश !!


मुड़ती हुई सी राह की वो मुश्किलें 

 कर न पाईं थीं मेरे मन को हताश 

गूँज उठती आस  वही एक नाद बन 

रंग उठता था कि जैसे बन पलाश !! 


प्रकृति से सार पाने की क्रिया का

भोर से मन जोड़ने की प्रक्रिया का

नित नए अवगुंठनो को  खोलने का 

करती हूँ सतत अनूठा सा प्रयास !!


मुड़ती हुई सी राह की वो मुश्किलें 

कर न पाईं थीं मेरे मन को हताश 


मोर की टिहुँकार सुन मैं जाग जाती 

पपीहे की पिहु पिहु में गीत गाती 

बासन्ती हँसी में जाग जाती मेरे हृद की 

सोई हुई अप्रतिम उजास !!


मुड़ती हुई सी राह की वो मुश्किलें 

कर न पाईं थीं मेरे मन को हताश !!


अनुपमा त्रिपाठी 

"सुकृति ''





  

12 July, 2022

घन तुम बरसो ,


 घन तुम बरसो ,

घननन बरसो ,

ताल ताल में 

ग्वाल बाल की थाप  बनो 

मन राधा घनश्याम बनो 

प्रीत बनो तुम सरसो 

घन तुम बरसो !!


घन तुम बरसो ,

फूल फूल में 

पात पात में 

रंगों से मिल 

खिल खिल 

मेरे जिय में हरसो 

घन तुम बरसो 


अनुपमा त्रिपाठी 

  'सुकृति '

07 July, 2022

हाइकु


तुम पुकारो

गाओ प्रातः का राग

प्रीत महके


 भोर चहके

चिड़ियों की रागिनी

मन बहके


 प्रीत श्रृंगार

नवल अलंकार

गीत लहके


 भोर सुहानी

कहती है कहानी

शब्द संवारे


 पँख फैलाये

डोल रहा है मन

गुनगुनाये


 रैन बसेरा

क्यों मन लगाए रे

दुनिया मेला


 लिखते चलो

जीवन अभिलाषा

मन की भाषा


आई बहार

सकल बन फूले 

रंग बिखरे


पुष्प धवल 

सुगन्धित बयार 

खिले संसार 


 हुआ सवेरा

जागी फिर आशाएं

खिली दिशाएं


घूँघट खोला

नवल प्रभात ने

बिखेरे रंग


 पापीहा बोले

भेद जिया के खोले

मनवा डोले


 दिन बीतते

फिर भी न रीतते

स्वप्न सलोने


 आई बहार

सकल बन फूले

छाई बहार


 चंचल मन

जा रे पिया के देस

उड़ता जा रे


प्रकृति नटी 

रंग ज्यों बिखराये 

प्रीत सजाये 


तुमसे बनी 

आकृति प्रीत की 

झूमे प्रकृति 


अनुपमा त्रिपाठी

'सुकृति '

01 July, 2022

उमंग भरा मन ,जीवन !!


उमड़ते हुए भावों की 
वीथी से ,
चुनते हुए शब्दकार के -

शब्द की प्रतीति से ,

रचना से रचयिता तक ,

विलक्षण ,

खिलते कुसुमों से अनुराग लिए ,

पल पल बढ़ता है मन ,

गुनते हुए क्षण क्षण ,

अभिनव  आरोहण ,

बुनते हुए रंग भरे कात से ,

रंग भरा ,

उमंग भरा मन ,जीवन !!!

अनुपमा त्रिपाठी

   "सुकृति"