दीनता नहीं
ये पलायन का समय भी नहीं ...
ये समय है कर्मठता का
निर्भर हैं हम सब की आशाएँ तुम पर ...
निर्भर हैं हम सब की मुस्कान तुम पर ..
आश्रित ही हैं मेरी उपलब्धियां तुम पर ,
तुम संतति मैं प्रकृति ,
माता तुम्हारी ,
मुझमे ही हो तुम ,
और मुझमें ही दिखते हो कितने रूप में तुम ,
उठो अब वक़्त है ,
ऊंची भरो उड़ान .
परवाज़ दो अपने पंखों को ,
भरो उड़ान इस तरह ,
मेरे बच्चों ,
गूंज उठे भारत का गौरव इस युग में ऐसे
कि सृजन जीवित रहे तुम्हारा सदा सदा ,
आँधी और तूफान से भी लड़ सको
कि हौसला बुलंद रहे तुम्हारा सदा सदा !!