31 May, 2016

इस ठहरे हुए वक़्त में ....!

किसलय का डोलता अंचल ,
नदी पर गहरी स्थिर लहरें चंचल
झींगुर की रुनक झुनक सी नाद ...
करती  हैं कैसा संवाद
पग  धरती विभावरी ,
धरती श्यामल शीतलता  भरी,
आ रही  रजनी परी ...!!
कोलाहल से दूर  का  कलरव ,
मन शांत प्रशांत नीरव
अनृत से प्रस्थान करते ,
नीड़ की ओर उड़ते पखेरू ,
मणिकार की मणि सा ...
स्निग्द्ध धवल मार्ग दर्शाता विधु
शब्द बुनते भाव इस तरह
फिर लरजती  लरजाती सी  उतरती है ,
मन में
जैसे
कोई मणि सी कविता ...!!