31 May, 2016

इस ठहरे हुए वक़्त में ....!

किसलय का डोलता अंचल ,
नदी पर गहरी स्थिर लहरें चंचल
झींगुर की रुनक झुनक सी नाद ...
करती  हैं कैसा संवाद
पग  धरती विभावरी ,
धरती श्यामल शीतलता  भरी,
आ रही  रजनी परी ...!!
कोलाहल से दूर  का  कलरव ,
मन शांत प्रशांत नीरव
अनृत से प्रस्थान करते ,
नीड़ की ओर उड़ते पखेरू ,
मणिकार की मणि सा ...
स्निग्द्ध धवल मार्ग दर्शाता विधु
शब्द बुनते भाव इस तरह
फिर लरजती  लरजाती सी  उतरती है ,
मन में
जैसे
कोई मणि सी कविता ...!!



14 comments:

  1. अहा ! बहुत सुन्दर शब्द चयन ... कोमल भाव

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-06-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2361 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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    1. हार्दिक आभार आपका दिलबाग जी |इस मंच से मेरे शब्द ,मेरे भाव बहुत लोगों तक पहुँचेंगे ,कृतार्थ हूँ आपने मेरी अभिव्यक्ति को सम्मान दिया |

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  3. सुन्दर भावों को प्रस्तुत करती मनमोहक रचना.

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  4. सुंदर भावों से ओतप्रोत रचना , बधाई

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  5. सुन्दर कविता

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  6. हार्दिक आभार आपका आदरणीय !!

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  7. सच में मणि सी ही कविता ।

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  8. सच में अति सुन्दर भावमय कविता। बधाई।

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  9. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  10. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी!!

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  11. मनमोहक रचना संगीता जी | प्रकृति ही कविता की सबसे बड़ी प्रेरणा है |हार्दिक शुभकामनाएं आपको |

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  12. वाह ! संध्याकाल का सुरम्य चित्रण !

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