30 March, 2013

भांति भांति के रंग ....


जोगिया रंग ...
भर लाया  प्रभास ....
फैला उजास ....

छू कर मन ....
भाँती भाँती के रंग ....
भरते उमंग 
***

कागा सुहाए ...
द्वार सँदेसा लाये ...
जिया हर्षाए
***

स्वर्ग धरा ..
सुरभित सुमन .....
बांवरा मन ....

***


भोर की बेला ....
धुंधलका मिटाये .....
मन रमाए ......
***
ह्रदय शक्ति ...
अँधियारा मिटाए  ...
प्रभात खिले ..

***


स्निग्ध  ज्योत्सना ...
झर-झर बरसे ...
मन उमगे ...
***
निज घट  ..
जब  भोर मुस्काए ...
प्रकाश छाए 

***
मन मंदिर ....
प्रज्ज्वल ज्योति  जले 
जियरा  खिले ....
***
भोर जगाये ...
अंतःकरण खिले ....
मनवा गाये ...
***
धूप छाँव सा ...
है सबका जीवन ....
मन क्यूँ डरे ....?
***                                          




विविध रंग ....
सब मन में बसें ....
जीवन खिले ...
***
रंग चुरा लूं ....
भर  दे जो जीवन ....
घट-घट में ....

***
ये वसुंधरा ......
विविध रंग भरी ...
सहेजो इसे ...
***
रंगों से भरी ....
है प्रकृति  सबकी ... ..... 
संवारो  इसे ....
***




जीवन यात्रा ....
भटकूँ बन बन  .....
घने बिपिन .....


***                    





ओस से भरा ....
जीवन अनमोल ...
प्रेम में  पगा ...
***
ह्रदय सिक्त ...
मन प्रेम ही प्रेम ....
प्रकृति खिले .....

***
हृदय भक्ति  ....
मन ओस की बूंद ...
पावन लगे ...

25 March, 2013

हाइकु .....बसंत ......पर ......................!!

फाल्गुनी   रंग ......
निर्झर बहे धारा ...
मिले  किनारा ,,,,,






रंग बिरंगी ....
बसंत की सौगातें ...
फूलों की बातें ....













रंग गुलाबी ...
जब छाया बसंत ...
मन शराबी ....















बुन ले गुण ...
रंग झरे  बहार ....
भीगे  फागुन ....!!

















अलिखित है ....
जैसे मन की  प्रीत .....
जीवन गीत .....







ओ रे भ्रमर ...
मत गूँज इधर ...
पिया  न घर ... ....!!

20 March, 2013

तुम्हें पुकारती .......!!


राग के भाव ...मन के भाव कितने विचित्र हैं ...इतनी सुंदर राग बसंत में सुख और दुःख एक साथ कैसे गाया जा सकता है ....?आप  खुद भी सोचिये.. .......बहुत  हंसने  के  बाद  एक  घड़ी  शांत  बैठने  का  मन  करता  ही  है
...है न  ...!
क्यों सहसा मन के भाव बदल जाते हैं .....??क्या हमारे मन पर सिर्फ हमारा ही नियंत्रण है ....?या सच मे हम
सिर्फ कठपुतली मात्र .........!!ईश्वर ही रखते हैं हमारे मन पर नियंत्रण ....?


चौबीस घंटे ....इन आठों प्रहारों में क्या हम पूरे समय खुश रहते हैं ...?या ....क्या हम पूरे समय दुखी रहते हैं ...????ताज्जुब है .....एक ही दिन में....कभी मन खुश कभी उदास .......सभी भाव जीता है !....!!
मन की बातें निराली ही हैं ....

जितना ही ईश्वर के समीप हम  जाते हैं ....उतना ही दुख गहराता है .....ये सोच कर कि प्रभु से कितनी दूर
...........हैं हम ....!!
ऐसा ही तो ज्ञान मार्ग भी है ......
जितना पढ़ते हैं ...उतना ही समझ में आता है की हम कितना कम जानते हैं .....
जब राग का विस्तार लेती हूँ  ....तभी स्वयं का विस्तार भी समझ में आता है ....बड़े बड़े गायक जिस राग को गाते चले जाते हैं ,उसे थोड़ी देर ही गा कर लगता है स्वरों को दोहरा ही रही हूँ ....साधक के लिए उसकी कला ही प्रियतम है ....उसका सबकुछ ....!!कला तो एक  है ...कभी न खत्म होने वाली .....इसी कला को साधने हेतु निरंतर प्रार्थना की जाती है .....!!और हर कलाकार के अंदर रहता है एक सहज विरह भाव ...

बसंत पर विरह की कविता न हो मन नहीं मानता ...या शायद बसंत चर्चा ही पूर्ण नहीं होती.....!!जितना आनंद बसंत की श्रृंगार रस की कविता पढ़ कर आता है ...उतना ही प्रबल अमिट भाव विरह श्रृंगार भी देता है ....!!और .....

जो छाया हो बसंत चाहूँ ओर ....
मेघ गरज गरज  मचा रहे हों शोर ....
फिर सहसा बरस भी जाएँ पुरजोर ....

और..... सुर ही ना  सधे .......अविरल अश्रुधारा सी बहती रहे ....बहती रहे .....

हृदय की वेदना का कोई अंत ही नहीं .....


*******

बिन मौसम जो छाए थे  ... बदरा ....
नैनन   बरस  घुलता था  कजरा  ....


निर्जन पथ, छाई ऐसी कारी अंधियारी ....
दामिनी प्रकाश पुंज वारती ...!!


 मैं सूने नयनन सों.....
पंथ थी बुहारती ...!!


देर तक खड़ी रही ...
दूर तक निहारती ....!!


मौन वेदना मेरी ....
थी तुम्हें पुकारती .......!!



सशक्त  वंदना   मेरी .....
है तुम्हें पुकारती ....!!
राग  बसंत तुम्ही से है ....
बसंत बाहर तुम ही से है ...
हे निर्गुण ...अब बन सगुण  ....
नाद मेरी.... स्वर मेरे ...
दरस दो ........ पथ के , जीवन रथ के  सारथी .....!!

14 March, 2013

अब मन छायो बसंत .......!!!!!!

किसलय अनुभूति देती .....
सागर सी ...
सुनील तरंग ...
सुशील उमंग ..!!!!

रंग भर भर ...  झर-झर निर्झर बहें....!
निसर्ग  झूम झूम गाए...
सुमंगल  स्वस्तिवाचन ....!!!!!


हुआ स्वर्ग सा  विस्तार  नयनाभिराम ...
सुलक्षण सुमन  ..सुविकसित सुवास ....
खिली खिली धरा ...
पा गई  ....सुनिधि सुहास ....!!!!

सुपर्ण सुनियोजित ....
प्रभास अनंत 


अहा ...आयो बसंत ....
मन भायो बसंत ....










अब मन छायो बसंत ...

08 March, 2013

फागुन की ऋतु घर आई .....!!

प्रकृति गाये  मधुवंती ....
और बहार राग ...
हरसूँ ऐसा छिटका ....
फाग के अनुराग का पराग ...

हृदय छंद हुए स्वच्छंद  ....
मंद मंद महुआ की गंध ......
तोड़ती मन तटबंध ....
निशा  रागवन्ती दिवस परागवंत ....
अलमस्त  मधुमास देख  .....
...वनिता लाजवंत ........
 पलाश मन रंग रंगा ...
पुष्प पंखुड़ियों से रंगोली सजाई ...
फागुन की ऋतु  घर आई .....!!

05 March, 2013

तुम आज भी जीवित हो वैसी ही ....हृदय में मेरे ....!!



निष्प्राण .....निस्तेज ....
यूँ ज़मीन पर क्यों पड़ी हो ....???
तुम पत्थर  क्यों हुईं ....?
बोलो न माँ ...

पत्थर  बनी ...ईश्वर स्वरूप ......
अब तुम ही संबल हो मेरा ....
स्थापित मंदिर में मूरत तुम्हारी ....
अनमिट थकान से भरी ...
अब भी  तुम ही से करती हूँ संवाद ...
और पा जाती हूँ ...
जीवन की हर अनबूझ पहेली का हल ....
जननी मेरी ....तुम ही तो करती हो...
पल पल रक्षा  ....मेरे अस्तित्व की ....मेरे मातृत्व की भी .....
तुम आज भी जीवित हो वैसी ही ...
हृदय में मेरे ....!!





याद आता है ....5 मार्च 2000 .......आज 5 मार्च 2013 ...... माँ की तेरहवीं पुण्यतिथी पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ......!