18 August, 2013

भज मन हरि हरि......!!




ईश्वर पर है पूर्ण विश्वास मुझे
मैं पत्थर में भगवान पूजती  हूँ ...!!

और  लिखती   हूँ
.....भज मन हरि हरि ......!!
अहम तुम्हारी सोच है
मेरी कविता नहीं

लिखी हुई बंदिश मेरी
निर्जीव है
कृति मेरी सूर्योदय है या सूर्यास्त है ...??

तुम पढ़ते हो और
फूंकते  हो उसमें प्राण
अपनी सुचारू भावनाओं के
सजल श्रद्धा ....प्रखर प्रज्ञा

तुम्हारे सुविचारों से ....सनेह से
 स्वयं के उस संवाद से
उपजती है संवेदना


और ये  संवेदना ही तो करती है प्रखर
मेरे सभी भावों को
तब ...समझती है
मुस्कुराती  है .....!!

जब संवेदना मुस्कुराती  है
तब ही तो निखरता है
मेरी कविता का सजल सा
शुभ प्रात  सा
उज्जवल सा ...स्वरूप
सूर्योदय  सा ......!!
खिला खिला सा ........!!


लिखे हुए शब्द तो मेरे
उस पत्थर की तरह हैं
जिसमें तुम अपनी सोच  से
फूंकते हो प्राण

पाषाण सी
मैं तो कुछ भी नहीं
पूज्य  तो  तुम ही बनाते हो मुझे
मील का पत्थर भी
फिर  क्यों ठोकर मारकर
बना देते हो राह पड़ा पत्थर कभी ...?????

सच ही है न
अहम तुम्हारी सोच है
मेरी कविता नहीं

मेरी सोच देती है
मेरी पत्थर सी कविता को तराश
और भर देती है
मेरी पत्थर सी कविता में झरने सी उजास
तुम्हारी सोच  देती है -
मेरी पत्थर सी कविता  को वजूद ......!!



हाँ .......और तब .......तुम्हारी ही सुचारु सोच देती है ...
मेरी कविता  को उड़ान  भी .........!!



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सोच से जुड़े ....समझ से जुड़े .........!!उसी से बनी हो शायद कोई कविता ......और हमारा आपका क्या रिश्ता है ...???सोच ही तो जोड़ती है हर इंसान को हर इंसान से ........!!!यही तो मानवता है .............!!!!!!!!!

14 August, 2013

एक सम्पूर्ण जीवन .....!!

दुर्गा रूप ....
शक्ति स्वरुप ...
सबल सक्षम ....
समाज की  व्यवस्था के .........
दुर्गम पथ पर सहर्ष चलती ...
.....मैं हूँ  भारतीय नारी  ....



आसक्ति से अनुरक्ति की ओर ....
अनुरक्ति   से  भक्ति की ओर .....
भक्ति से ही पुरस्कृत होती ...
काँटों में भी ...
मेरा .... खिलता है  मन ...
जीता सहर्ष एक  सम्पूर्ण   जीवन .....!!!!

धुरी परिवार की .....
समाज की .....
देश की ....
सकल ब्रह्माण्ड की ही ....

मैं हूँ भारतीय नारी ....!!

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आइये आज प्रण करें समाज में नारी को मान देंगे ,सम्मान देंगे ,वो स्थान देंगे जिसकी वो हकदार है ......!!कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में आवाज़ उठाएंगे ......!और  अपनी भारत माता का मान बढ़ाएँगे .....!!
जय हिन्द ...!!


10 August, 2013

लक्ष्मण राव जी से एक मुलाक़ात ...!!


ये जीवन एक यात्रा ......एक खोज ,,,,या शायद कुछ भी नहीं ......!!
यही सोचते सोचते एक प्रश्न पीछा करता है मेरा ...''ज्ञान हमे कैसे प्राप्त  होता है ...?क्या बहुत पढ़ने से ...?कैसे बढ़ जाती है हमारी समझ ...?इतनी कि उपलब्धियों का अंबार लग जाए ...!!और फिर क्या है ऐसा ,जो फिर भी हमे अपनी जड़ों से जोड़े रखता है ॥!!
कुछ तो है जो ईश्वरीय होता है !!जो हमारी आत्मा लिये  चलती है |कुछ पूर्व जन्म के संस्कार शायद ....!!

जीवन जीने का सबका तरीका कितना अलग अलग होता है ...!!हर इंसान की सोच अलग .....ख़्वाहिश अलग .....रास्ते अलग ...!!किन्तु कुछ लोग होते हैं ऐसे जो एक मुलाक़ात मे ही एक अमिट छाप छोड़ देते हैं ...!!जब किसी इंसान से सिर्फ एक बार मिलकर आप कभी न भूलें ....ज़ाहिर है उसमें कुछ तो अलग और बहुत खास होगा ही !
मेरा काव्य संकलन ''अनुभूति'' छप चुका था |मैं गंधर्व  महाविद्यालय (दिल्ली का संगीत महाविद्यालय )मे खड़ी उसी विषय पर अपनी मित्र निधि से ''अनुभूति काव्य संग्रह ''की चर्चा कर रही थी | गंधर्व  आने वाले लोग कुछ अलग जुनून लिए हुए आते हैं |कुछ जज़्बा अलग .....शायद वहाँ की हवा में ही कुछ है ....जो अपने सपनों के पीछे भागने की ताकत देती है !!
तभी किताबों के  संदर्भ  में निधि ने कहा  ''दी आप वो चाय वाले से मिली हैं जिनकी किताबें छप चुकी हैं ?मुझे लगा मैंने कुछ गलत सुना है ...!!मैंने फिर पूछा ''क्या ?"........
वो कहती है ''हाँ आप नहीं जानतीं ?हाँ हाँ उनकी 24 किताबें छप चुकी हैं |चलिये मैं आपको उनसे मिलवाती हूँ |

मुझे बहुत  ताज्जुब हो रहा था उसकी बातें सुन !!तेज़ कदमो से चलते हुए हम पहुँच गए ....लक्ष्मण राव जी के पास !!
इंसान की लगन ,उसकी जिजीविषा ,उसे कहाँ से कहाँ तक पहुंचा देती है |एक छोटी सी चाय की दुकान जिसमे स्वयं लक्ष्मण जी चाय बनाते जा रहे थे और हमसे बात भी करते जा रहे थे |अपने बारे मे बताना शुरू किया ....

''मैं अमरावती डिस्ट्रिक्ट महाराष्ट्र से यहाँ आया |गुलशन नन्दा बहुत पढ़ता था |और गुलशन नंदा ही बनने के सपने लिए यहाँ चला आया |रास्ते में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा |मजदूरी तक की ,पेट भरने के लिए लेकिन ध्येय कभी नहीं भूला  | गाँव से मराठी माध्यम से हायर सेकंडरी की फिर दिल्ली से ही बी।ए॰और अब ignou   से एम ॰ए (हिन्दी)कर रहे हैं  !'अब अपना निजी पब्लिकेशन हाउस भी है |जिसमें अपनी लिखी ही किताबें छापते हैं |दिल्ली आने के बाद ही उन्होने बहुत हिन्दी साहित्य पढ़ा और अपने साहित्यिक ज्ञान को समृद्ध किया |
फेस बुक के इस लिंक पर ...
Laxman Rao  इस लिंक पर आपको उनके बारे में बड़ी रुचिकर जानकारी मिल जाएगी |
24 पुस्तकें छप चुकीं है |ढेर सारे पुरस्कार मिल चुके हैं |
शायद ही कोई ऐसा न्यूज़ पेपर होगा जिसमें उनका नाम न छपा हो |
लेकिन अभी भी चाय की दुकान चलती है |उसी आमदनी  से घर चलता है |उनका कहना है '' चाय बनाते बनाते ,इन्हीं लोगों से मिलते मिलते मुझे अपनी उपन्यास  के पात्र मिल जाते हैं |''
अभी पुनः 12 उपन्यास प्रकाशित हो रहे हैं |6 नए और 6 पुराने |
www.facebook.com/laxmanraowriter
www.facebook.com/ramdas.novel

ये लिंक्स पर उनके बारे मे विस्तृत जानकारी भी है और आप अगर उनकी कोई उपन्यास खरीदना चाहें तो वो भी जानकारी है |
कहते हैं कला और साहित्य को संरक्षण की आवश्यकता पड़ती ही  है |लक्ष्मण राव जी जैसे परिश्रमी और सरल इंसान के लिए समाज  जितना कर सके उतना कम है !
मैं हृदय से उनकी सराहना करती हूँ और ईश्वर से यह प्रार्थना करती हूँ कि उनकी लेखनी को असीम कीर्ति मिले .....!!

09 August, 2013

''मैं नीर भरी दुख की बदली ''........महादेवी वर्मा जी की कविता ....!!

सुश्री महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखी कविता ''मैं नीर भरी दुख की बदली ''


इसे सुनिए मेरी आवाज़ में....यहाँ से भी लिंक पर जा सकते हैं अगर नीचे दिया हुआ लिंक न खुले ....!!
..http://www.divshare.com/download/24362521-b6b

हमेशा एक ही नम्र निवेदन ....हैड फोन से सुनिएगा वरना आवाज़ फैलती है .....!!
स्वरबद्ध  मैंने  किया है ....।
आशा है आपको पसंद आएगा ....


07 August, 2013

रे माया ठगिनी हम जानी ....

रे माया ठगिनी हम जानी ....!!

प्रेम पियासी आकुल कोयल ...
..बोलत मधुरि  बानी ....
उन  हिरदय पिघलत नाहीं इक पल   ......
मन कछु  और ही ठानी ...

रे माया ठगिनी हम जानी ....

पंच तत्व अवगुण मन अतहीं......
पीर न जिय  की जानी ...
जानत नाहीं भरे   गुण भीतर ...
जगत फिरत अभिमानी ...

रे माया ठगिनी हम जानी ....


झर झर पीर झरे नयनन सों........
प्रभु बिलोकि तब जानी  .....
निर्गुण के गुण राम मिले जब  .....
तज माया हुलसानी .....


रे माया ठगिनी हम जानी ......