रे माया ठगिनी हम जानी ....!!
प्रेम पियासी आकुल कोयल ...
..बोलत मधुरि बानी ....
उन हिरदय पिघलत नाहीं इक पल ......
मन कछु और ही ठानी ...
रे माया ठगिनी हम जानी ....
पंच तत्व अवगुण मन अतहीं......
पीर न जिय की जानी ...
जानत नाहीं भरे गुण भीतर ...
जगत फिरत अभिमानी ...
रे माया ठगिनी हम जानी ....
झर झर पीर झरे नयनन सों........
प्रभु बिलोकि तब जानी .....
निर्गुण के गुण राम मिले जब .....
तज माया हुलसानी .....
रे माया ठगिनी हम जानी ......
प्रेम पियासी आकुल कोयल ...
..बोलत मधुरि बानी ....
उन हिरदय पिघलत नाहीं इक पल ......
मन कछु और ही ठानी ...
रे माया ठगिनी हम जानी ....
पंच तत्व अवगुण मन अतहीं......
पीर न जिय की जानी ...
जानत नाहीं भरे गुण भीतर ...
जगत फिरत अभिमानी ...
रे माया ठगिनी हम जानी ....
झर झर पीर झरे नयनन सों........
प्रभु बिलोकि तब जानी .....
निर्गुण के गुण राम मिले जब .....
तज माया हुलसानी .....
रे माया ठगिनी हम जानी ......
दीदी
ReplyDeleteशुभ प्रभात
एक अच्छी सारगर्भित कविता
सादर
इश्वर की माया के सामने इन्सान हमेशा ही बौना रहेगा . चाचा जी को श्रद्धाजलि सुमन अर्पित .
ReplyDeleteसब जानी पर कुछ न कर पानी ! :)
ReplyDeleteअपने मन हम सबहिं नचावत
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (08-08-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 79" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteराजेंद्र जी ...हृदय से आभार मेरी रचना ब्लॉग प्रसारण पर लेने के लिए ....!!
DeleteDivine!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteरे माया ठगिनी हम जानी ......सारगर्भित सुन्दर रचना..
ReplyDeleteउत्कृष्ट सारगर्भित प्रस्तुति
ReplyDeleteअति सुन्दर.
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR LIKHA
ReplyDelete
ReplyDeleteझर झर पीर झरे नयनन सों........
प्रभु बिलोकि तब जानी .....
निर्गुण के गुण राम मिले प्रभु .....
तज माया हुलसानी .....
हृदय से निकले उद्गार..
वाह.............
ReplyDeleteऔलोकिक.................
सस्नेह
अनु
माया तो ठगिनी ही होती है, बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव -गीत
ReplyDeletelatest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
latest post,नेताजी कहीन है।
badhiya, sundar...
ReplyDeleteबहुत सुंदर, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर भाव ... अलौकिक रचना ।
ReplyDeleteहृदय से निकले लाजबाब अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRECENT POST : तस्वीर नही बदली
बहुत ही सुंदर...... जाने फिर भी क्यूँ उलझे रहतें हैं हम ....
ReplyDeleteठगिनी को हम जानी पर करे है अपनी ही मनमानी.. अति सुन्दर..बहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteकबीर याद हो आये...और यह तो बस - "निर्गुण के गुण राम मिले जब.." - आनंद दे गया.. :) ___/\___
ReplyDeleteकबीर याद हो आये...और यह तो बस - "निर्गुण के गुण राम मिले जब.." - आनंद दे गया.. :) ___/\___
ReplyDeleteमाया महा ठागिनी हम जानी ,
ReplyDeleteत्रिगुण फांस लिए करि जोरी ,
बोले माधुरी वाणी।
याद आ गया सहज ही यह पद आपको बांचकर पोस्ट का भाव और सार अनुकरणीय है।
झर झर पीर झरे नयनन सों........
ReplyDeleteप्रभु बिलोकि तब जानी .....
निर्गुण के गुण राम मिले जब .....
तज माया हुलसानी .
बहुत ही सुंदर ...
चित्रित बारिश की बूंदों में ठगिनी माया …. बहुत बढ़िया
ReplyDeleteरे माया ठगिनी हम जानी ........ अति सुन्दर
ReplyDeleteमाया यह ठगिनी ही नहीं जादूगरनी भी है तभी तो सब सम्मोहित हो मंत्रमुग्ध से उसके इशारों पर अवश हो नाचते रहते हैं ! बहुत सुंदर रचना अनुपमा जी ! आभार !
ReplyDeleteझर झर पीर झरे नयनन सों........
ReplyDeleteप्रभु बिलोकि तब जानी .....
निर्गुण के गुण राम मिले जब .....
तज माया हुलसानी .
प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो की भांति सन्देश और आग्रह से भरी पोस्ट बधाई
आभार आप सभी का ....मेरे हृदय के इन भावों से जुडने का ....
ReplyDeleteझर झर पीर झरे नयनन सों........
प्रभु बिलोकि तब जानी .....
निर्गुण के गुण राम मिले जब .....
तज माया हुलसानी .
असत्य को ईश्वर रूपी सत्य मिल जाये तो माया अपनी माया भूल जाती है ...
बहुत सुन्दर अनु....
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDelete