25 October, 2013

स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??


ताना बाना है जीवन का
भुवन की कलाकृति
आँखें टकटकी लगाए ताक रही हैं
अनंत स्मिति.....!!

घड़ी की टिक टिक चलती
समय जैसे  चलता चलता भी ...रुका हुआ

शिशिर की अलसाई हुई सी प्रात
झीनी झीनी सी धूप खिलती शनैः शनैः
शीतल अनिल  संग संदेसवाहक आए हैं
सँदेसा लाये हैं
उदीप्त हुई आकांक्षाएँ हैं
......ले आए हैं मधुमालती की सुरभि से भरे
कुछ कोमल शब्द मुझ तक
...अनिंद्य आनंद दिगंतर
तरंगित भाव शिराएँ हैं  ....!!

गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
सुरभित अंतर
कल्पना दिगंतर
भाव  झरते निरंतर
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??




19 October, 2013

क्या कहता है मन .....

बांधता है वक़्त  सीमा में मुझे ......
भावों की उड़ान तो असीम  है ....
अनंत  है .....
तो फिर ...  क्या है जीवन  ....??
चलती हुई सांस .....
अनुभूत होते भाव  ....
बहती सी नदी ...
सागर सा विस्तार ....
आज शरद पूनम की रात
 झरता हुआ चन्द्र का हृदयामृत ...
या रुका सा मन ....
जो मुसकुराता हुआ ....
खोज लाता है गुलाबी सुबह का एक टुकड़ा .....
अपनी किस्मत सहेज ...
मुट्ठी में भर कर ....!!

भरी दोपहर  भी  ढूंढ लेता है मन  ....
पीपल की छांव ....
वो अडिग अटल विराट वृक्ष के तले ....!!
घड़ी भर बैठ ....
मिल जाता है .........
ज़िंदगी के गरम से एहसासों को आराम ....
फिर कुछ गुनगुनाती हुई .....शाम की ठंडी बयार । ....

और फिर पहुँच जाता है मन .....
अम्मा (दादी)के चूल्हे के पास ...
हाथ से सेंकती हैं अम्मा ....
एक एक फूली फूली रोटी ....
चूल्हे पर ...
 बुकनू ...शुद्ध घी और गुड़ ....!!

और माँ भी तो आस पास ही हैं ....
चौका समेटतीं ....!!!!!!
जब माँ की आवाज़ कानो मे गूँजती है .....
परों से भी हल्का मन ....
कब नींद से  घिर जाता है ...
पता ही नहीं चलता ....!!
सुबह उठती हूँ फिर .....
जब  गुनगुनाता है जीवन ....!!!!!!
यही तो ज़िद है मेरी .....
जब तक जीवन गुनगुनाता  नहीं ....
मैं सोती ही रहती हूँ ....!!
देखो तो .....गुनगुनाने लगी है ....
गुलाबी शिशिर   सी प्रात की धूप अब ......!!



15 October, 2013

हाइकु ...संवेदना ....

ज्यों टूटकर ...
गिरती पीली पात  .....
बीतते लम्हें ...


 रैन  न बीते ....
ये  क्षण रहे रीते ....
आस न जाए ...

कुछ तो कहो ....
ऐसे चुप न रहो ....
नदी से बहो .....



संवाद से ही ....
मुखरित  होती है ...
संवेदनाएं ....


ठिठक गई ....
मूक सी हुई जब ...
संवेदनाएं ....



संवेदना ही ..
ज्योति है जलाये ...
जीवन खिले ....

मानवता ही ...
परम दया धर्म .....
एक मुस्कान ...


तरंग जैसी .....
छू जाती हैं  मन को .....
संवेदनाएं ....


सृजन खिला ... ..
संवेदनशील हो .....
तरंग बना ...





05 October, 2013

माँ मुझे आने तो दो ....

आद्या  शक्ति माँ सुखदायिनी ...!!
हे माँ मुझे आने दो ....
अपने  संसार में ...
नव राग प्रबल गाने दो ....

शक्ति दायिनी...
 माँ तुम  हो मेरी ...
आस मेरी ...मुझमें  उल्लास भरो ....!!

भाई जैसा ...
मेरी शिराओं में भी ....
चेतना का  संचार करो .....
माँ मुझसे भी तो प्यार करो ....!!

छल छल कर दुनिया छलती है ....
तुम तो न जग का हिस्सा बनो .....
मुझे जीवन दो पालो-पोसो ....
नव-शक्ति का किस्सा बनो ...


जब तुम जग से भिड़ पाओगी .....
अपनी छाया फिर देखो तुम ...
जग से मैं भी लड़ जाऊँगी ...
पोसूंगी तब अपने सपने .....
और एक उड़ान पा जाऊँगी ....!!

माँ मुझे आने तो दो ....
अपने संसार में ....
नव राग प्रबल गाने तो दो ...!!
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