25 October, 2013

स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??


ताना बाना है जीवन का
भुवन की कलाकृति
आँखें टकटकी लगाए ताक रही हैं
अनंत स्मिति.....!!

घड़ी की टिक टिक चलती
समय जैसे  चलता चलता भी ...रुका हुआ

शिशिर की अलसाई हुई सी प्रात
झीनी झीनी सी धूप खिलती शनैः शनैः
शीतल अनिल  संग संदेसवाहक आए हैं
सँदेसा लाये हैं
उदीप्त हुई आकांक्षाएँ हैं
......ले आए हैं मधुमालती की सुरभि से भरे
कुछ कोमल शब्द मुझ तक
...अनिंद्य आनंद दिगंतर
तरंगित भाव शिराएँ हैं  ....!!

गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
सुरभित अंतर
कल्पना दिगंतर
भाव  झरते निरंतर
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??




33 comments:

  1. बिलकुल ... कुछ और नहीं बस ऐसी ही रचनाओं का सृजन कीजिये .... स्वप्न बुनेंगे तो काव्य यूं ही बहेगा ..... सुंदर प्रस्तुति

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  2. माहौल ऐसा हो तो स्वप्न भी स्वर्णिम सा आये..मन आह्लादित कर जाए. अति सुन्दर.

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  3. स्वप्न बुनिए और उनको पंख लगने दीजिये , अम्बर में ऊँची उडान विचारों को नई ऊंचाई देंगी . बहुत सुन्दर दी .

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  4. सुवासित हो रहा है ये स्वप्न भी.. अति सुन्दर..

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  5. हर दिन बुनता स्वप्न नया मैं,
    बना क्षितिज की चादर सा मैं।

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  6. बहुत ही सुंदर ..... आपके शब्द सम्मोहित करते हैं ....

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  7. शब्दों का सम्मोहन हैं भावों की सुर सरिता है ,बहुत खूब

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  8. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने..

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  9. स्वप्न बुनते रहिये .... सुन्दर रचना !!

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  10. Prakriti ke sur pratidhwanit ho rahe hain.. Ek painting si kavita..

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  11. बहुत बहुत आभार आपका ...हृदय से ....!!

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  12. गुनगुनाती ध्प्पो ओर प्रेम का एहसास ... स्वप्न स्वत: ही आ जाते हैं ...

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  13. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  14. सुंदर सम्मोहित करते शब्द ....

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  15. ताना बाना है जीवन का ......
    भुवन की कलाकृति ....
    आँखें टकटकी लगाए ताक रही हैं .....
    अनंत स्मिति.....
    घड़ी की टिक टिक चलती ......


    समय जैसे चलता चलता भी ...रुका हुआ ....

    शिशिर की अलसाई हुई सी प्रात ... .....
    झीनी झीनी सी धूप खिलती शनैः शनैः ........
    शीतल अनिल संग संदेसवाहक आए हैं ....
    सँदेसा लाये हैं ....
    उदीप्त हुई आकांक्षाएँ हैं .....
    ......ले आए हैं मधुमालती की सुरभि से भरे ...
    कुछ कोमल शब्द मुझ तक ....
    ...अनिंद्य आनंद दिगंतर ....
    तरंगित भाव शिराएँ हैं ....!!

    गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
    सुरभित अंतर ...
    कल्पना दिगंतर ....
    भाव झरते निरंतर ....
    स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??

    रूपकत्व लिए बेहतरीन रचना।

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  16. गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
    सुरभित अंतर ...
    कल्पना दिगंतर ....
    भाव झरते निरंतर ....
    स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    नई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )

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  17. गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
    सुरभित अंतर ...
    कल्पना दिगंतर ....
    भाव झरते निरंतर ....
    स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    नई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )

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  18. गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
    सुरभित अंतर ...
    कल्पना दिगंतर ....
    भाव झरते निरंतर ....
    स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
    ...वाह! कोमल अहसासों की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ...

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  19. शिशिर की अलसाई हुई सी प्रात ... .....
    झीनी झीनी सी धूप खिलती शनैः शनैः ........
    शीतल अनिल संग संदेसवाहक आए हैं ....
    सँदेसा लाये हैं ....
    उदीप्त हुई आकांक्षाएँ हैं .....

    वाह, प्रकृति ऋतु और मनोभावों का अदभुत संमिश्रण।

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  20. स्वप्न में ही जीवन के आशय हैं,बुनना ही होगा

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  21. खूब स्वप्न बुनिये....तारों जड़े स्वप्न बुनिए....
    बहुत सुन्दर!!

    अनु

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  22. स्वप्न जीने की प्रेरणा हैं स्वप्न तो बुन ' ने ही होगे .उम्दा रचना

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  23. वाह- बहुत सुन्दर!!

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  24. गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
    सुरभित अंतर ...
    कल्पना दिगंतर ....
    भाव झरते निरंतर ....
    स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
    ...वाह सम्मोहित करते भाव.....!!!!

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  25. अपने विचार देने हेतु आप सभी का हृदय से आभार ....!!!

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  26. बुना जाता रहे स्वप्न... बना रहे माहौल!

    सुन्दर अभिव्यक्ति, हमेशा की तरह!

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  27. ताना बाना है जीवन का
    भुवन की कलाकृति
    आँखें टकटकी लगाए ताक रही हैं
    अनंत स्मिति.....!!
    अतिसुन्दर।

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!