28 May, 2021

जाग री

 


जाग री ,

बीती विभावरी 

खिल गए सप्त रंग 


उड़ते बन पखेरू,

मन पखेरू 

विभास के संग ,

शब्द प्रचय से संचित,

मुतियन बुँदियन भीग रहा मन 

प्राची का प्रचेतित रंग ,

बरसे घन 

घनन घनन 

बन जलतरंग 

जीवन उमंग 

छाया अद्भुत आनंद  !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  ''सुकृति ''

25 May, 2021

वलय






उठती हुई पीड़ा हो ,
या हो 
गिरता हुआ ,
मुझ पर अनवरत बरसता हुआ 
सुकूँ ,
वर्तुल वलय के भीतर,
बनते अनेक वलयों की
जब जब 
यथा कथा कहती है
ये लहर , 
भाव मेरा इस तरह डूबता है 
कि फिर उभर आती है ,
कोई 
नई नवेली सी कविता !!

अनुपमा त्रिपाठी 
"सुकृति "

19 May, 2021

बारिश .....!!





बारिश .....!!

आच्छादित है बादलों से आकाश
कोइ व्यथा तो नहीं ,
बूँदों में कहता अपनी बात
कोइ कथा तो नहीं ...!

बोलो तो
चलते हुए समय को टोकोगे कैसे ?
बरसती हुई बूँदों को रोकोगे कैसे ?
कहीं भी कभी भी अलग अलग
हिस्सों में जो मिलती है
हँस हँस कर ,
झुक झुक कर
कभी रूठ कर
कभी मनाती
हुई ,
जिंदगी मेरी ही तो है
बिखरे हुए इन यादों के लम्हों को
जोड़ोगे कैसे ?

सरल हो भाषा तो  भी
अर्थ गहन होते हैं
अर्थ के भावों को माटी के मोल
तौलोगे कैसे ?

सुबह से शाम होती हुई जिंदगी को
लिख भी डालो लेकिन
जब तलक सूर्योदय न हो ह्रदय का 
रात की सियाही को
उजाले से जोड़ोगे कैसे  .....?

अनुपमा त्रिपाठी
   सुकृति

16 May, 2021

मेरे घर का रास्ता ........!!

जानते हो न ,
या फिर से बतलाऊँ ,
मेरे घर का रास्ता ...!!

देखो वो सड़क तुम्हें भटकने नहीं देगी
आस पास की हरियाली में
चहकते हुए पंछी ,
जीवन का गीत गाते हुए मिलेंगे !!
वही गीत जो तुम गाया करते हो !!

सुनहरी धूप की तपन
बहकने नहीं देगी!!

पलाश की फुनगी पर बैठी
तुम्हारी राह तकती
नन्हीं गौरैया ,
चहक चहक कर जतला देगी
कि मैं अभी भी यहीं रहती हूँ !!

जैसे इस समय
खिल उठा है मेरा उपवन ,
खिले हुए  रंगों में
रंग जायेगा अभ्युदित मन
वृक्षों की घनी छाया में
थोड़ा सुस्ताते हुए आगे बढ़ते आना ,
बहती हुई नदी की कल कल में
रम न जाना ......!!

बौराये हुए आम के वृक्ष पर
कुहू कुहू गाती कोयलिया ,
जब स्वागत गान गायेगी  ,
तुम्हारी चाल में फिर
 तेज़ी आ जाएगी ,
आँगन में माँ की साड़ी  के
आँचल से बँधी 
अचार की बरनी
धूप में भी जब 
मुस्कुराएगी,
घर पहुंचते ही
तुम्हें समझ आ जाएगी ,
प्रतीक्षा का एक एक पल  कैसे बिताया है मैंने !!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति ''

10 May, 2021

रात्रि की निस्तब्धता में ...!!

 रात्रि की निस्तब्धता में ,

अप्रमित कौमुदी मनोहर ,

लब्ध होते इन पलों में ,
अप्रतिम जीवन धरोहर !!

कांस पर जब यूँ बरसती 
चांदनी भी क्या कहो , 
है मधुर यह क्षण विलक्षण
कांतिमय अंतस गहो !!



सार युग युग का सुनाने ,
आ रही है चन्द्रिका ,
गीतिका सा नाद गुंजन
गा रही है चन्द्रिका

कौन है ऐसा जिसे यह
ज्योत्स्ना से  प्रेम न हो  ,
बह रही शीतल समीरण
उर्वी से अनुरक्ति न हो !!

बुन  रहा फिर आज बुनकर
रैन के अनुनेह को ,
है मधुर यह क्षण विलक्षण 
कांतिमय अंतस गहो !!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति "


05 May, 2021

जीवन ही तो है!!!

                                                                                    



 जीवन के पड़ाव और 

सूरज के उगने से 

सांझ के आने तक की यात्रा 

 तुम्हारे  मौन रहने से 

अनहद तक यूँ ही 

कुछ  कुछ कहते रहने की यात्रा ,

अनगिन शब्द 

कागज़ पर उकेरने की यात्रा

या 

मन के भाव 

कैनवास पर उभारने की यात्रा ,

मैं से मैं तक ,

अनेक यात्राओं में 

रहने ,बिखरने और सिमटने की यात्रा 

जीवन ,जीवन के लिए 

जीवन ही तो है !!!



अनुपमा त्रिपाठी 

 ''सुकृति ''