10 May, 2021

रात्रि की निस्तब्धता में ...!!

 रात्रि की निस्तब्धता में ,

अप्रमित कौमुदी मनोहर ,

लब्ध होते इन पलों में ,
अप्रतिम जीवन धरोहर !!

कांस पर जब यूँ बरसती 
चांदनी भी क्या कहो , 
है मधुर यह क्षण विलक्षण
कांतिमय अंतस गहो !!



सार युग युग का सुनाने ,
आ रही है चन्द्रिका ,
गीतिका सा नाद गुंजन
गा रही है चन्द्रिका

कौन है ऐसा जिसे यह
ज्योत्स्ना से  प्रेम न हो  ,
बह रही शीतल समीरण
उर्वी से अनुरक्ति न हो !!

बुन  रहा फिर आज बुनकर
रैन के अनुनेह को ,
है मधुर यह क्षण विलक्षण 
कांतिमय अंतस गहो !!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति "


10 comments:

  1. रात की नीरवता में चाँदनी का कोमल स्पर्श सारी प्रकृति को नव प्राण से भर देता है, सुंदर सृजन !

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  3. प्राकृति का श्रृंगार ... रात की नीरव चांदनी में ...
    बहुत ही सुन्दर कल्पनाओं को नए बिम्ब से सजाया है ... सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (११ -०५ -२०२१) को 'कुछ दिनों के लिए टीवी पर बंद कर दीजिए'(चर्चा अंक ४०६३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर धन्यवाद अनीता जी ।

      Delete
  5. रात और चाँद ! अद्भुत व प्रकृति की अनुपम सौगात !

    ReplyDelete
  6. सार युग युग का सुनाने ,
    आ रही है चन्द्रिका ,
    गीतिका सा नाद गुंजन
    गा रही है चन्द्रिका

    कौन है ऐसा जिसे यह
    ज्योत्स्ना से प्रेम न हो ,
    बह रही शीतल समीरण
    उर्वी से अनुरक्ति न हो !! बहुत खूब

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर... कविता की यह शास्त्रीय विधा और इतने सुंदर शब्द लुप्त हो चुके हैं आधुनिक कविताओं से... उन्हें फिर से जिलाने के लिये धन्यवाद!!

    ReplyDelete
  8. सार युग युग का सुनाने ,
    आ रही है चन्द्रिका ,
    गीतिका सा नाद गुंजन
    गा रही है चन्द्रिका

    उत्कृष्ट सृजन।

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!