रात्रि की निस्तब्धता में ,
अप्रमित कौमुदी मनोहर ,
लब्ध होते इन पलों में ,
अप्रतिम जीवन धरोहर !!
कांस पर जब यूँ बरसती
चांदनी भी क्या कहो ,
है मधुर यह क्षण विलक्षण
कांतिमय अंतस गहो !!
सार युग युग का सुनाने ,
आ रही है चन्द्रिका ,
गीतिका सा नाद गुंजन
गा रही है चन्द्रिका
कौन है ऐसा जिसे यह
ज्योत्स्ना से प्रेम न हो ,
बह रही शीतल समीरण
उर्वी से अनुरक्ति न हो !!
बुन रहा फिर आज बुनकर
रैन के अनुनेह को ,
है मधुर यह क्षण विलक्षण
कांतिमय अंतस गहो !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
रात की नीरवता में चाँदनी का कोमल स्पर्श सारी प्रकृति को नव प्राण से भर देता है, सुंदर सृजन !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteप्राकृति का श्रृंगार ... रात की नीरव चांदनी में ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कल्पनाओं को नए बिम्ब से सजाया है ... सुन्दर रचना ...
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (११ -०५ -२०२१) को 'कुछ दिनों के लिए टीवी पर बंद कर दीजिए'(चर्चा अंक ४०६३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर धन्यवाद अनीता जी ।
Deleteरात और चाँद ! अद्भुत व प्रकृति की अनुपम सौगात !
ReplyDeleteसार युग युग का सुनाने ,
ReplyDeleteआ रही है चन्द्रिका ,
गीतिका सा नाद गुंजन
गा रही है चन्द्रिका
कौन है ऐसा जिसे यह
ज्योत्स्ना से प्रेम न हो ,
बह रही शीतल समीरण
उर्वी से अनुरक्ति न हो !! बहुत खूब
बहुत सुंदर... कविता की यह शास्त्रीय विधा और इतने सुंदर शब्द लुप्त हो चुके हैं आधुनिक कविताओं से... उन्हें फिर से जिलाने के लिये धन्यवाद!!
ReplyDeleteसार युग युग का सुनाने ,
ReplyDeleteआ रही है चन्द्रिका ,
गीतिका सा नाद गुंजन
गा रही है चन्द्रिका
उत्कृष्ट सृजन।
अनुपम कृति ।
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