नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

07 September, 2012

तोरी ये कारी ..कजरारी ....मतवारी .... अंखियाँ ...!!

 झील सी ...गहरी .....
बदरा सी नीर भरी ..
सावन सी भीगी ...
मृग सी चंचल ...
ज्योत्स्ना बरसाए ......
चमकें चम-चम ..
कुछ चमकीली ...
दुति दामिनि ज्यों ..
हृदय धड़काए  ....
मोरे मनवा बहुत लुभाए  ...
अंतस रच बस जाए  ...
ओ री धरा ...
तोरी  ये कारी ..कजरारी ....मतवारी .... अंखियाँ ...!!

वही धरा ....वही मैं ....वही दिन ...वही रात ....!!
सच कहूँ तो मुझे अपनी इस धरा से बड़ा प्रेम है ....!!इसका नयनाभिराम सौंदर्य मेरी आँखों मे बसा है ...!!
किसी तरह इसका सौंदर्य बना रहे ....यही प्रयास हमेशा करती हूँ ...इसी को ताकती हूँ ....इसी से प्रेरणा पाती हूँ और इस पर लिखती भी हूँ ......जैसे धरा से धरा तक ,धरा के इर्द गिर्द ही घूमता है मेरा मन .....

धरा से प्रेम है मेरा जो मुझे ये रात भी काली नगिन सी नहीं ,बल्कि कजरारी अँखियों सी प्रतीत हो रही है ...पर जानती हूँ ...मेरे भाव सदा यही थोड़ी रहेंगे ......


एक दिन   ........कुछ अलग से भाव थे मन के .........
इतनी बरसात और मन लिखता ही चला गया ...लग रहा है दोनों कविता साथ पोस्ट कर दूं ....ऐसा न हो बरसात ख़तम हो जाए ,ऋतु बीत जाए ....और मेरी कविता बिना पोस्ट किये ही रह जाए ...


                                                   क्यूँ रात बरसने आई ...??



हाय री ...
हाय री ...
आई  री ...
छाई  री .. ..
काली घनघोर अंधियरी ........
घिर-घिर आई ...घटा छाई ...

रिमझिम-रिमझिम मेघा बरसे ...
श्याम घनश्याम  की सुध लाई .......
मोरे मन के सागर  से नीर चुरा ...
भर-भर गागर ..झिर झिर झर ..
झर झर झर ...
भई साँझ  बरसने  आई ...

चहुँ ओर  घनघोर घटा छाई ....
कित जाऊं ...कैसे चैन पाऊं .....
श्याम की श्याम छब लाई ...
अब रात  बरसने आयी ....
मोरे मन की गागर से नीर चुरा ...
क्यूँ रात बरसने आयी ...????
हाय री ...मन तरसावन ...
जिया अकुलावन ...
बिनु श्याम ...क्यूँ आई ...?
क्यूँ रात बरसने आई ....??


********************************************************************************
आज बरखा पर दोनों अलग भावों की कवितायें एक साथ पोस्ट कर रही हूँ ....!!


32 comments:

  1. रिमझिम-रिमझिम मेघा बरसे ...
    श्याम घनश्याम की सुध लाई .......
    मोरे मन के सागर से नीर चुरा ...
    भर-भर गागर ..
    भई साँझ बरसने आई ...

    वर्षा ऋतू का सुन्दर वर्णन अद्भुत सुन्दर अद्भुत

    ReplyDelete
  2. प्रकृति के समीप और काव्य रस से सराबोर उत्कृष्ट रचना |

    ReplyDelete
  3. कल रात मैंने अपने सारे गम आसमान के हवाले कर दिए ,और देखो सुबह से आसमान रो रहा है और मेरी अँखियाँ हैं आंसुओं से बरी

    ReplyDelete
  4. मन के भीतर स्वरलहरी की तरह तुम्हारे भाव थिरक उठते हैं

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार दी ...स्वर लहरियां ही हर्षित मन करती हैं और काव्य रूप ले लेतीं हैं ....आपने बिलकुल ठीक पहचाना ....

      Delete
  5. बरखा आपके मन पर भी खूब जम कर बरसी है .... शब्द शब्द दर झरते जा रहे हैं .... दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार दी .....बरखा पुरजोर हो ....और संगीत प्रमी ह्रदय हो ...भाव और अभिव्यक्ति हर वर्ष तरल हो जाते हैं ...कलम रुकती नहीं ...

      Delete
  6. वाह बहुत खूब......
    दोनों अभिव्यक्तियाँ सुन्दर....

    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  7. दोनों ही बहुत सुन्दर.. compose किया जा सकता है गीत के लिए..
    और धरा की बारिश के साथ analogy अति उत्तम..
    सादर

    ReplyDelete
  8. वर्षा की बुँदे दग्ध ह्रदय को शीतलता देती हुई और आपके उत्कृष्ट भाव आत्मा को . पढ़कर आनद आता है आपकी राच्ग्नाएं. ऐसे लगता है जैसे मधुर संगीत कानों में घुली जा रही हो . उत्कृष्ट.

    ReplyDelete
  9. दोनों ही रचनाओं के भाव बहुत सुंदर हैं.....

    ReplyDelete
  10. यह मौसम ही ऐसा है जिसमें विरह और मिलन दोनों भाव अपने चरम पर होता है। इन भावों को समेटती ये रचनाएं अपना कथ्य प्रस्तुत करने में सफल रही हैं।

    ReplyDelete
  11. दोनों ही रचनाए के भाव अपनी बात कहने में सफल रही,,,,बधाई अनुपमा जी,,,,,

    ReplyDelete
  12. वर्षा की फुहार..धरा को ही नहीं भिगोती है मन भी भीग जाता है..बहुत सुंदर रचनाएँ..

    ReplyDelete
  13. आंचलिक शब्दों के सौन्दर्य के साथ प्रतीकों व बिम्बों के माध्यम से आपने जिस मनोदशा का वर्णन किया है वह अपूर्व है.
    इस सुन्दर रचना के लिए आभार अनुपमा जी !

    ReplyDelete
  14. मुझे दोनों भावों के अंतर ने आकर्षित किया .
    इसी को परिवर्तन कहते हैं,इसे महसूसने में बड़ा आनंद आता है.

    ReplyDelete
  15. नवीन भाव ... अलंकृत भाषा संसार ... सोंदर्य प्रतीकों से लबरेज ... सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete
  16. सुन्दर रचना के लिए आभार

    ReplyDelete
  17. sundar, atisundar

    fursat me kabhi mere blog par aayen.aapka mere blog me swagat hai. link:kpk-vichar.blogspot.in

    ReplyDelete
  18. दोनों ही रचनाये बहुत सुन्दर है...
    :-)

    ReplyDelete
  19. wah bahut hi sundar rachana tripathi ji .....abhar

    ReplyDelete
  20. काजल नैना जैसे बादल,
    ज्यों ज्यों गाढ़े, नीर भरे।

    ReplyDelete
  21. प्रकृति से आपका यह प्रेम देखकर मन खुश हो गया। रचना बने न बने, सुंदर हो न हो, मेरे हिसाब से कुछ फर्क नहीं पड़ता। बड़ी बात है प्रकृति को देखकर आह्लादित होना और अपने भावों को अपने सामर्थ्य भर अभिव्यक्त करना।

    ReplyDelete
  22. वर्षा ऋतू में एक मनभावन और सुन्दर रचना कि प्रस्तुति ..प्रभावशाली रचना के लिए बधाई..मन प्रसन्न हो गया ..धन्यवाद ..

    ReplyDelete
  23. रिमझिम-रिमझिम मेघा बरसे ...
    श्याम घनश्याम की सुध लाई .......
    मोरे मन के सागर से नीर चुरा ...
    भर-भर गागर ..झिर झिर झर ..
    झर झर झर ...
    भई साँझ बरसने आई ...
    bahut sundar bhav....

    ReplyDelete
  24. वाह ... खूबसूरत भावों का संगम ... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिए बधाई

    ReplyDelete
  25. प्रशंसनीय अभिव्यक्ति.......

    ReplyDelete
  26. मोरे मन के सागर से नीर चुरा ...
    भर-भर गागर ..
    भई साँझ बरसने आई ...

    वर्षा ऋतू का सुन्दर वर्णन अद्भुत सुन्दर !!!!!!!

    ReplyDelete
  27. ओ री धरा ... सुन्दर धरा !
    छाई घटा ... श्यामल घटा !

    ReplyDelete
  28. अति उत्तम काव्य छटा..

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!